बुंदेली व्यंग्य:पनवाड़ी चले सिंहस्थ नहावे साधु चला रय गोली

वीथिका            May 17, 2016


shirish-pandeyश्रीश पांडे। पनवाड़ी सिंहस्थ नहाबे की तैयारी कर रये हते कि उके पैलां उते साधू-संतन में गोली-गाली, गारी-गुप्ता, लाठी-डंडा, ऐसो चलो कि सबरे वैराग्य की बखिया उधड़ गई। 'अहिंसा परमोधर्मा:’ को संदेश देबे बारे देश में ऐसी हिंसा देख कें पनवाड़ी मनई-मन उलझ गए कि कैसे हो गए हमाए धर्म-संस्कृति के रखवारे। इत्ते में पनवाड़ी के परम मित्र प्यारे दिखा परे, सो उने टेर के ई चर्चा में सोई शामिल कर लओ और कान लगे देखो तो प्यारे- धर्म की आस्था के महाकुंभ में साधू-संतनन में आपसई में गुत्थमगुथा हो गई। बा भी उनमें जिनके आचरण समाज के नाए आदर्श माने जात। प्यारे ने कई पनवाड़ी धर्म अपनी जगा उसई है जैसो सदियन से हती। धर्म के मानबे वारन में फर्क आ गओ। अब तो नहा के पुण्य परताप लूटबे को अंधविश्वास को कारो जादू छाओ है। जिए देखा वोई अपने-अपने अधर्म के पाप पानी में डुबकी मार के पापन से निवृत्ति चाय रओ। मनौ जा तो बताओ के का जे लंगोटी धारियन खां नई पतो कि नहाबे का मिलत जनता खां और का मिलत उने। जे साधू तो सबरे कुंभन में पैंला कूद पड़त फिन गंदले पानी में जनता। लेकिन इनके बीच में भई कलह ने इनके पापन की कलई खोल दई कि जे भीतर से कितेक भरे हैं। मंचन से भगवान के नाए, धर्म के नाए, माया मोह त्यागबो को ज्ञान बांटत फिर रए ओई खां पाबे वे एक-दूसरे की जान के दुश्मन सोई बने फिरत। अपने पुरखा कात्ते कि पैलां कौनउ आचरण जिंदगी में उतारो फिन औरन खां ऊ पे चलबे की नसीहत देओ। लेकिन 'दिखाबे दांत और, खाबे के और’ जैसी पोजीशन आज के साधू-संतन की दिख रई। सई कै रये पनावाड़ी काए से जनता से माल त्यागबे को प्रवचन और खुद माल पेलबे के जुगाड़ जेई रए गओ आज को आध्यात्म। तनक तुम देखो कि जितने साधू संत हैं उनकी तोंद और चमड़ी की चिकनाहट। माल खा-खा के सबरे मोटा रए और ताकत बढ़ा रए और ताकत खां आपसी रंजिश में आजमा रए। सिंहस्थ में गोली चली साधु की दुनाली से। जो सवाल शोध को विषय है प्यारे कि साधुअन को बंदूक की जरूरत काय से पड़न लगी। जिनकी समाज सेवा कर रहो, का समाज से रक्षा के नाए उने बंदूक रखने पड़ रई? प्यारे ने कई ऐसो नईयां पनवाड़ी एक साधू दूसरे साधू ज्यादा कमा रओ। साधुअन के बीच कमाबे को धंधा खूब पनप रओ और जिते धंधा है उते माल है, जिते माल, उते सुरक्षा चाउने। काय से सुरक्षा बोल कें तो हो नई सकत। उके नाए ताकत चाने। सो जे बंदूकें धरन लगे और मौका परबे पे गोली चलाउत में उने कौनऊ संकोच नईयां। पनवाड़ी को मूड़ चढ़ आओ से एक नओ पान लागाओ गलुआ में दबाओ और प्यारे खां सोई खबाओ... फिन बोले कि सांची कई प्यारे ऐई से हमाओ कुंभ में जाबो को मन नई भओ। जिए देखो वोई चूतिया बना के अपनी लाग-बाग में जुटो है। मजे की बात तो जा है कि जो सबरो करोबार भगवान को भय दिखा के कराओ जा रओ। लेकिन जो काम साधुअन अबकि कर दओ उसे नाक पुछ गई हिन्दू धरम की। फिन लम्म्म्म्बी पीक मारे पनवाड़ी अपने धंधा में जुट गए। लेखक जनसंदेश उपसंपादक हैं। सम्पर्क- ०9424733818


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