याद-ए-अनुरागी: जब पापा टीचर से बोले सजा जरूर दें मगर...

वीथिका            Apr 12, 2016


richa-anuragi-1ऋचा अनुरागी। अगर जीवन में किसी से कोई चीज़ दुबारा मांगने को कहा जाये तो वह हर-हाल में अपना बचपन दुबारा चाहेगा। जगजीत सिंह जी की गज़ल याद आ रही है -

ये दौलत भी ले लो ,ये शौहरत भी ले लो भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी, मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन वो कागज की कश्ती वो बारिश का पानी ।

सच बचपन से अच्छा कुछ नहीं, जिसे अपना बचपन याद हो तो उससे बड़ी दौलत उसके पास कुछ ओर नहीं। इस मामले में मैं मालामाल हूँ। मेरे खजाने में अनगिनत जवाहरातों के साथ-साथ मेरे पापा की यादों का अनमोल कोहेनूर शामिल है। एक बेटी अपने पिता के दिल के कितने करीब हो सकती है अगर मैं वह सब बतलाऊं तो आपको अतिशोक्ति लगेगी। मैं यहाँ यह जरुर कहना चाहूँगी कि मेरे पापा मेरे सबसे प्रिये सखा हैं ,मार्गप्रदर्शक ,साथी और प्यारे यार पापा हैं ,जिनसे मैं आज भी अपने दिल की हर बात बता सकती हूँ अपनी कमियां खुल कर दिखा सकती हूँ ,उन्हें सुधारने का तरीका मिल जाता है। उन्होनें मुझे समुद्र की गहराई और आसमां की ऊँचाई से अधिक प्यार किया है ,शायद यही वजह है कि आज भी मैं उन्हें सदा अपने पास महसूसती हूँ । मेरा जन्म माखन नगरी यानी बाबई में नाना के घर हुआ। नाना समाज सेवी और आस-पास के गाँवो के निशुल्क चिकित्सक थे ,छोटे नाना स्वतंत्रता सेनानी श्री गौतम प्रसाद गिल्ला थे ।माँ बतलाती है जिस कमरे में मेरा जन्म हुआ उस कमरे की दीवारें गाँधी,नेहरू,सुभाष,भगत सिंह,चन्द्रशेखर आजाद और अनेकों स्वातंत्रता सेनानियों की तस्वीरों से सजी हुई थी। मैंने जन्म के बाद रोया नहीं बल्कि उन तस्वीरों को देखने लगी। यह सबके लिये कौतुहल था , यह बेटी सबकी और छोटे नाना की तो जान से ज्यादा प्यारी हो गई । ननिहाल और पापा के लाड़ ने मुझे नटखटता की चरम सीमा पर पहुँचा दिया था । यूं तो माँ-पापा के ढ़ेर सारे बच्चे हैं,उनका कोई बेटा मॉरिशस का है तो कोई गोवा,कोई पन्ना तो कोई असम या केरल या कहीं ओर से हैं यह अनुरागी परिवार वासुदैव कुटूम्बंकम वाला परिवार है पर मैं यहाँ हम छ:बहनों की बात कर रही हूँ ,अभी नवरात्रि चल रही है और मुझे भोजन जीमते हुये हर निवाले पर पापा याद आते हैं ,अक्सर लोग कहते थे अनुरागी जी छ:-छ:कन्या ,तो वे बड़े शान से कहते तुम लोग मात्र नवरात्रि में ढूँढ कर पाँच-छ: कन्या जिवा कर अपने को धन्य समझते हो ,मैं तो रोज छ: कन्याओं को भोजन कराता हूँ यह मुझ पर उस परम शक्ति का आर्शिवाद ही तो है ,कहने वालो को वे बड़े ही प्यार से बेटियों के सम्मान के लिये आदेशित भी कर देते । यहाँ आज मैं उन दो घटनाओं का जिक्र करना चाहती हूँ जिनकी वजह से पापा ने हमें समझाया कि बच्चों को प्रताड़ित करने की जगह प्यार से समझाना चाहिये ।आज हमें अक्सर देखने सुनने में आता है कि किस तरह स्कूलों में,समाज में बच्चों को प्रताड़ित किया जाता है कभी अभिभावकों को सड़कों पर प्रदर्शन करना पड़ता है तो कभी मानव आयोग को बीच में आना पड़ता है । मैं शैतानों की ख़ाला हुआ करती थी ,मेरे डर से ना चाहते हुये भी सीधे सादे बच्चे भी मेरी शैतानियों में शामिल हो जाते। मुझे आज भी वो पाँचवी कक्षा की शैतानी याद है ,मेरा साहपाठी और मेरा परम सखा अनिल महेश्वरी जी हाँ वही जो आज भोपाल का पुलिस अधिक्षक है उसने मुझे बहुत मना किया समझाया पर मैनें एक ना सुनी अगर वो मुझे स्कूल में शैतानी करने को मना करता तो मैं घर पहुँच कर मगर मच्छी आंसू बहा कर अंटी-अंकल से उसकी शिकायत करती उसे ड़ाट खिलवाती ,मरता क्या ना करता। मेरे कहने पर गोखरु के कांटे एकत्र कर दिये और हम पहुँच गये क्लास रुम में ,धीरे-धीरे सारे बच्चों के बालों में गोखरु के कांटे लग चूके थे ,गणित की मेम माकोड़े ब्लेक बोर्ड पर समझा रही थी और मैं उनके जूडे को गोखरु के कांटे से सजाने में लगी थी अनिल अगर रोकने की कौशिश करता तो उसे भी कांटों की चुभन सहना पड़ती। सब बच्चे खिलखिलाने लगे तो शुरु हुई खोजबीन,अनिल के बस्ते से गोखरु के कांटे बरामद हुये पर मेरा ईमान आढ़े आ गया कि एक निर्दोष को सजा नहीं मिलनी चाहिये पापा भी हमेशा सच बोलने को कहते थे तो खड़े होकर अपनी करनी स्वीकारी। सजा में मैडम ने गाल और हथेलियाँ लाल कर दी ,कान पकड़ कर मुर्गा बना दिया गया। अनिल मौका पा रोते हुये घर जा पापा को सारी घटना बतलाई ,स्कूल घर के पास ही था तुरंत ही पापा स्कूल में थे।पापा मेरी हर गलती स्वीकार रहे थे पर मुझे मारने पर वे सहमत थे ,वे बच्चों पर शारीरिक प्रताड़ना के खिलाफ थे।आखिर में मेम को अपनी गलती स्वीकारनी पड़ी। पर मैंने भी इस तरह की शैतानी फिर नहीं की । दूसरी घटना जब मैं नवमीं कक्षा की छात्रा थी,कभी-कभी मेरी सायकल खराब होने पर पापा मुझे स्कूल छोड़ देते थे उस दिन भी वही हुआ ,मेरी सायकल खराब थी,पापा और दुष्यंत अंकल घर पर ही थे ,बोले हम छोड़ देंगे और दोनो बातों-बातों में लेट हो गये ,मै पाँच मिनट लेट पहुँची छुपकर जा रही थी खन्ना मेम ने पकड़ लिया ,धूप में कंकरीट पर घुटनों के ऊपर बैठा कर सौ बार लिखवाया कल से देर नही होगी स्कूल आने में। मेरे घुटने कंकरीट की वजह से जख्मी हो गये थे उनमें से खून रिस आया था। घर पहुंच कर मेरी शिकायत पापा से थी की आपके कारण मुझे देरी हुई और सजा मिली। दूसरे दिन में समय पर स्कूल पहुंच गई ,कुछ देर बाद पापा और दुष्यंत त्यागी अंकल भी स्कूल में थे, हाथ में पेपर और पेन थे ,खन्ना मेम से पूछ रहे थे कितनी बार कहाँ बैठ कर लिखें कल से अपनी बेटी को देर से नही पहुँचाएगें , गलती हमारी थी सजा भी हमें मिलनी चाहिये ।प्रिसिंपल शुक्ला मेम और खन्ना मेम दोनों ही हाथ जोड़े खडी थीं। पापा ने कहा सजा जरुर दें पर स्वरूप बदल दें बच्चों को शारीरिक यातना ना दें । उन्होंने हमें से कभी जोर से भी बात नहीं की । हर गलतियों को छोटी कहानियों से रहीम कबीर के दोहों से समझा दिया ।वे यही कहते कि जो ताकत प्यार में है वह मार में नहीं ।


इस खबर को शेयर करें


Comments