मुझे अपनी खबर कब थी तुम्हारे साथ मैं जब था। यही अब तो नहीं मालूम तुम्हारे साथ मैं कब था ।
वहाँ तू भर नहीं था और बाकी तो जहाँ सब था। यहाँ अब तू ही तू है और बाकी तो जहाँ कब था ।
ठीक यही हाल होता है जब मैं पापा की यादों को सहेजती हूँ या यूं कहूँ जब आप सब के साथ उनकी यादों को बांटती हूँ। उनकी यादों के साथ रहना एक पुर-सुकूं माहौल,भीनी-भीनी सी खुशबू और मन किसी आकाश गंगा में विचरने लगता है। एक-एक कर अनगिनत यादें तैरने लगती है ,किसे आपके लिये सहेजू किसे अपने पल्लू में बांध लूं। उन से दूर फिर जाया नहीं जाता। जैसे कोई तट पर खड़ा व्यक्ति जब तक नदी में नही कूदता तब तक ही ठीक है ,जो एक बार कूदा तो फिर बाहर आने का मन ही नही होता ,हर तैराक का यही हाल होता है।यादों की मीठी गंगा का भी यही हाल है जो डूबा सो डूबा --गर्दिश-ए-जिन्दगी ने कहां कश्ती डूबेगी तेरी मैंने कहा कमबख्त पार किसे जाना है?
काश वो आ जायें और जिन यादों को मैं आप सब से साझा कर रही हुँ,उन्हें पढ़े फिर मेरे पीछे भागे और कहें-ऋछू दीदी की पिटाई होगी ,यूं तो उन्होनें कभी हमें जोर से भी नहीं बोला ,पिटाई तो बहुत दूर की बात है। मेरी शैतानियों पर अक्सर कहते थे ऋछू दी छुप जाओ वरना माँ पिटाई करेगी । कहते हैं कि कई सूफी संत या सीधी सी बात कहूँ कुछ महान आत्माओं ने जन्म से परे हो एक रिश्ता बुना और यह रिश्ता अपनी प्रेम बाहों को फैलाता हुआ अनंत में विलीन हो गया। जब तक लोग इसे समझ पाते वे अनंत में समाते हुये अनंत मे विलीन हो जाते हैं। रेत के मानिन्द हाथ से सब फिसल जाता है ,हथेली पर कुछ चिपके कण रह जाते हैं उन्हें सहेज कर रखा जाता है और वे फिर अनमोल यादों की धरोहर होती हैं। ये तो सभी जानते हैं कि आचार्य रजनीश और पापा बचपन के दोस्त,भाई-सखा थे।इन दोनों का कोई रूहानी रिश्ता था ,जो कोई नहीं समझ सका। पापा की शादी के बाद एक बार पापा और रजनीश जी दोनों मेरे नाना के घर यानी पापा की ससुराल जा पहुंचे। नाना का घर बहुत बड़ा था। घर का एक दरवाजा एक मोहल्लेे में तो दूसरा दरवाजा किसी दूसरे ही मोहल्ले खुलता ।दोनों ओर कमरे बड़े-बड़े आँगन बीच में बहुत सारी गायों की गौशाला और फिर एक आँगन में एक विशाल कुआं। कुुये के चारों ओर पक्का चबूतरा बना हुआ था।दामाद और उनके सखा भाई की खातिर-दारी में पूरे घर के सदस्यों के साथ-साथ सारे नौकर -चाकर भी आगे पीछे लगे हुये थे।सुबह पापा तो सो रहे थे पर रजनीश जी उठ कर गौशाला में थे ,नौकरों से हर गाय के बारे में जानकारी ले रहे थे ,रिसर्च अभी जारी था कि नाना वहाँ पहुँच गये,नाना ने उन्हें वहाँ देखा तो पूछ ही लिया आप यहाँ ,इतने सुबह? बगैर किसी लाग-लपेट बोल दिया मैं भी बछड़ो के जैसा दूध पी कर देखना चाहता था ,पर मुझे जानकारी मिली है कि आपकी कोई गाय सीधी नहीं है अतः आइडिया कैन्सिल।नाना मुस्कुरा दिये और रजनीश जी गुनगुनाते हुऐ कुऐं के पास पहुँच गये। जब तक पापा सो कर जागे ये महाशय उस विशाल घर के लगभग हर कोने से परचित हो गये थे। चाय -नाश्ते के बाद दोनों मित्रों की सलाह हुई और माँ की छोटी बहन से पापा ने कहा तेरी शादी की बात करते हैं और माँ को बुला नाना से बात करने को कहा। इसी बीच कुएं पर मालिश की तैयारी हो गई ,दामाद और उनके सखा की मालिश शुरू हो गई।सेवक तैयार थे नहलाने के लिये।माँ नाना को पापा की इच्छा से अवगत करा चुकी थी।नाना भी वहीं मौजूद थे।अचानक रजनीश जी उठे और एक जोरदार झपाक की आवाज आई ,रजनीश जी कुएं के अन्दर थे ,नाना के हाथ-पैर फूल गये ,झट दो सेवक भी कूदें उन्हें बचाने को। कुएं में झांक कर देखा तो वे मस्त नहा रहे थे। नाना जो अब तक सत्कार में लगे थे ,गुस्से में थे ,और पापा ने हँसते हुये माँ से कहा--गई भैस पानी में। वही हुआ जब पापा ने ड़रते हुये शादी की बात छेड़ी तो नाना ने दो टूक जबाब दिया।एक बेटी कविवर आपको सौंप दी अब दूसरी इन्हें नहीं आप माफ करें।खैर रजनीश जी का तो मार्ग ही दूसरा था ,पर शादी रह गई। कई दिनों तक दोनों खूब हँसे । फ्लाइट लेफ्टिनेंट रविन्द्र जैन जो पापा के छोटे भाई थे ,वे उस समय जबलपुर इंजीनियरिंग कालेज के छात्र थे और रजनीश जी दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर।अपनी यादों को सहेजते हुये बताते शाम जब भी अच्छा खाना हो तो हम सब मित्र इक्ट्ठा हो पहुँच जाते रजनीश भाई के कमरे पर और उनका प्रवचन-भाषण कुछ देर सुनते और फिर सर खुजलाते कहते.भैया हम सब बहुत भूखे हैं कुछ समझ नहीं आ रहा पहले पेट पूजा बाद में कुछ और। हमारे कहने भर की बात होती और होटल पर आदेश जारी हो जाता। शानदार भोजन, रबड़ी और फिर सब नौ-दो-ग्यारह ।बचपन की यह दोस्ती अंतिम समय तक जस की तस थी। बहुत सी बातें और यादें हैं जो फिर कभी आपसे साझा करूँगी । यादों की बरसात में कौन कितना भीगा,वो जाने मेरा अन्दर बाहर सब तर है। झड़ी अभी तो लगने दो ।
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