याद नहीं आती अपने पत्रों की?

वीथिका            Feb 05, 2016


mahesh-darpanमहेश दर्पण जरा सोचिए, अंतिम पत्र आपने कब लिखा था? एसएमएस, ईमेल और वॉट्सऐप के इस जमाने में हो सकता है यह सवाल आपको परेशान ही कर दे। लेकिन समय की इस तेज रफ्तार के बीच आज बहुत कम लोगों को याद होगा कि उनका अंतिम पत्र कब लिखा गया था। इनमें से बहुतेरे लोग वे भी होंगे जो एक समय खुद तो बड़े चाव से पत्र लिखते ही होंगे, दोपहर के वक्त घर के बाहर धूप में बैठे-बैठे बेसब्री से डाकिए की प्रतीक्षा भी करते होंगे। कौन जाने, पत्र आते ही उसे पहले पढ़ने के लिए वे भी घर के सदस्यों की छीनाझपटी में शामिल होते रहे हों।   letter-writing पत्र चीज ही ऐसी हुआ करती थी। लोग अपने लिए लिखे गए पत्र ही नहीं, दूसरों के लिए लिखे गए पत्रों के प्रति भी खासी दिलचस्पी रखते थे। बहरहाल, अगर ऐतिहासिक रिकॉर्ड देखे जाएं तो पहला पत्र 500 ईसा पूर्व का लिखा परशियन रानी अतोसा का बताया जाता है। पत्तों और पेड़ की छाल के बाद जब लिनन के रेशों से बने कागज का बेहतरीन साधन मिल गया तो पत्र लेखन और तेज हो चला। पत्र लिखने के बाद उसे पहुंचाने को लेकर बड़ी-बड़ी दास्तानें लिखी गईं। लेकिन जब 1840 में ब्रिटेन में पहली बार व्यवस्था बनी, तब क्वीन विक्टोरिया के चित्र वाला टिकट जारी किया गया। बाद में तो खैर दूसरे देशों ने भी धीरे-धीरे यही व्यवस्था अपना ली। धीरे-धीरे फिर पत्र-साहित्य का एक अलग इतिहास तैयार होने लगा। शायद इसीलिए जब सातवें दशक के बीच ‘ज्ञानोदय’ ने और नौवें दशक में ‘सारिका’ ने पत्र विशेषांक प्रकाशित किए, तब उनमें दुनिया भर के बड़े लोगों के ऐतिहासिक पत्रों को एक साथ पढ़ने का अवसर हिंदी के पाठकों के हाथ लगा था। इन अंकों की विशेषता ही कही जाएगी कि कहानी, समीक्षा और चुहल भी पत्र शैली में ही की गई थी। आपके लिखे अंतिम पत्र की जिज्ञासा के पीछे भी ऐसा ही एक आयोजन है। ‘नवनीत’ ने ‘चिट्ठी आई है…’ के जरिए पत्रों की दुनिया में उतार दिया। आप ही सोचिए, अगर ऐन फ्रैंक, हेलन केलर, वॉन गॉग, चाऊ एन लाइ, फिराक गोरखपुरी और रिल्के जैसे बड़े लोगों के साथ अनेक नामचीन लोगों के खत पढ़ने को मिल जाएं तो क्या आप भी अपने पत्रों को याद करना नहीं चाहेंगे? पत्र, जो आपके बाद भी जिंदा रहेंगे।


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