डा० राम श्रीवास्तव।
सुना था कभी "बिल्ली के भाग्य से छींका टूटा "पता नहीं छींका टूटा या नहीं पर हमारे बड़े साहब ने डिग्री लौटाकर बहती गंगा में मैला हाथ धोने का आनन्द जरूर लूटा। ऐसे तथाकथित महान साहब लोगों को डिग्रियाँ विलक्षण प्रतिभा से नहीं उपहार में मिला करती हैं। मेहनत तो दूर पसीने की एक बूँद भी नसीब नहीं होती।
ऐसी डिग्रियाँ जब बँटती हैं तो कुलपति दिल्ली के सरकारी आवास पर परीक्षकों के साथ आता है
और आने के पहिले मिलने का समय पूछता है। साहब आप कब फ़्री होगे,हमें आपका व्हायवा लेने आना है?
जब कुलपति रजिस्ट्रार और तीन लोग बंगले के बरामदे तक आते हैं,उन्हे ड्राइंग रूम की कुर्सी तक नसीब नहीं होती है। पूरा एक घण्टा सब लोग बग़ीचे के फूलों को गिनकर बिताते हैं
साहब लंच के बाद आराम करके अँगड़ाई लेते पान चबाते आते हैं। इतवार की छुट्टी भी साहब जो मनाते हैं।
फिर नमस्कार चमत्कार करके पूछा जाता है,कहिए कैसे आना हुआ है?
बुदबुदाते हुए कुलपति कहते हैं सर जी आपसे फोन पर बात हुई थी, वो क्या है जी आपको सबसे बडी उपाधि प्रदान करके हम कृतज्ञ होने आए हैं। फिर रजिस्ट्रार को इशारा होता है,
रजिस्ट्रार बैग में से तीन जिल्द बन्द थीसिसें निकालता है। बड़े अदब से झुक कर खड़े होकर साहब के सामने उँगली से बताता है,जहाँ साहब को थीसिस पर दस्तखत करना है।
साहब पान का ज़ायक़ा लेते लेते बोलने के पहिले पान की लार गटकन को थूकने को इधर उधर कुछ झाँकते हैं। कुलपति लपककर साहब की कुर्सी के पास रखे पीकदान को उठाकर साहब के आगे करते हैं। साहब पिचकारी मारकर गुलगुलाते हुए कहते हैं,अरे आप क्यों तकलीफ़ करते है्र
अरे साहब इसमें क्या हुआ यह तो हमारा सौभाग्य ही है।
साहब मुस्कुराकर दस्तखत कर थीसिस कुलपति के हाथ में थमा देते हैं। पूछते हैं इतना मोटा ग्रन्थ किसने लिख दिया? कुलपति कुर्सी पर हाथ जोड़े बैठे प्रोफेसर 'फ़लाँ अली ' की ओर इशारा करते हैं।
यह समकालीन साहित्यिक हस्तियों के प्रख्यात आलोचकाचार्यविद हैं श्रीमान। अभी तक 121 शोधशास्त्रियो के गाइड रह चुके हैं श्रीमान। यही आपके चरणों की धूल है और इस थीसिस में आपके गाइड हैं श्रीमान। इन्होंने अपने उसी शोधछात्र से थीसिस तैयार कराई है श्रीमान जिसे आपने मॉरीशस सम्मेलन में जाने की ग्रान्ट स्वीकार की थी श्रीमान। और तुरंत फुरत साहब की डिग्री पर दस्तखत करके कुलपति उन्हे उपाधि भैंट कर देते हैं।
साथ ही इशारा करके दूर खड़े फोटोग्राफर को पास बुलाते हैं, कहते है ज़रा ठीक से खींचना फोटो कल पूरे देश के अख़बारों में छपाना है। इस तरह साहब लोगों को उपाधियाँ मिला करती हैं। इसमें कोई अजूबा नहीं यह तो हमारे देश की परम्परा गत होता रहता है
हॉ....पर जाते जाते कुलपति इतना बोल जाते हैं। अगस्त में मेरा टर्म पूरा हो रहा है साहब
मेहरबानी करके दूसरे टर्म के लिए मुझे आपकी सेवा करने का मौक़ा जरूर से जरूर दीजिए
मैं जीवन भर आपका आभारी रहूँगा मेरे बच्चे आपको दुआ देंगे।
(भोपाल वि० वि० व्दारा म०प्र० के पूर्व मुख्य सचिव को दिल्ली जाकर दी गई पी०एच०डी० की उपाधि की कहानी पर आश्रित सत्य कथा )
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