ममता यादव
कपूर परिवार को हिंदी फिल्मों की दुनिया में अभिनय का एवरेस्ट कहा जा सकता है! क्योंकि, जिस तरह हर पर्वतारोही एवरेस्ट की ऊंचाई लांघना चाहता है, उसी तरह हर एक्टर कपूर परिवार की तरह अभिनय के शीर्ष पर पहुँचने की ख्वाहिश रखता है। पृथ्वीराज कपूर से लगाकर राज कपूर और रणवीर कपूर तक अभिनय की गंगा बहती रही है। इसी परिवार में अभिनय का एक स्तम्भ है शशि कपूर, जिन्हें भारत सरकार ने 2014 के दादा साहेब फाल्के पुरस्कार के लिए चुना है। शशि कपूर दादा साहेब फाल्के पुरस्कार पाने वाले 46वें व्यक्ति होंगे। पृथ्वीराज कपूर के छोटे बेटे शशि कपूर को 'कभी-कभी', 'दीवार', 'सत्यम शिवम् सुंदरम', 'त्रिशूल' जैसी फिल्मों में यादगार अदाकारी के लिए जाना जाता है। उनकी फिल्म 'जुनून' को साल 1978 की सर्वश्रेष्ठ हिन्दी फ़िल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था। अपना 77वां जन्मदिन मना चुके शशि कपूर ने अपनी अदाकारी से 100 से अधिक फिल्मों में जलवा दिखाया है। शशि कपूर का जन्म 1938 में हुआ और वह कपूर परिवार से आने वाले जाने-माने अभिनेता हैं। कपूर परिवार से दादा साहेब फाल्के पुरस्कार पाने वाले तीसरे अभिनेता हैं शशि कपूर। शशि कपूर, राज कपूर और शम्मी कपूर के छोटे भाई हैं। फाल्के पुरस्कार की घोषणा पर ऋषि कपूर ने ट्वीट किया कि 'शशि कपूर को भारतीय सिनेमा में योगदान के लिए दादा साहेब फाल्के पुरस्कार दिया जाएगा। परिवार में अब तीन पद्मभूषण और तीन फाल्के अवॉर्ड हो गए हैं। इससे पहले यह सम्मान पृथ्वीराज कपूर और राज कपूर को मिल चुका है।'
शशि कपूर चार साल की उम्र से ही अपने पिता पृथ्वीराज कपूर के पृथ्वी थिएटर के नाटकों में अभिनय करने लगे। पहली बार 1948 के में उन्होंने बाल कलाकार की भूमिका निभाई। आग (1948) तथा आवारा (1951) में उनकी भूमिका को बहुत सराहा गया था। उन्होंने 50 के दशक में सहायक निर्देशक का भी काम किया। शशि कपूर ने कई ब्रिटिश उर अमेरिकी फिल्मों में काम किया है। जिनमें हाउसहोल्डर (1963), शेक्सपियर वाला (1965), बॉम्बे टॉकी (1970) तथा हीट ऐंड डस्ट (1982) जैसी फिल्में शामिल हैं।
हीरो के रूप में 'धर्मपुत्र' शशि कपूर की पहली फिल्म थी। वे 60, 70 और 80 के दशक तक हिंदी फिल्मों के लोकप्रिय अभिनेता बने रहे। शशि कपूर ने 1961 में यश चोपड़ा की फिल्म 'धर्म पुत्र' से करियर की शुरुआत की थी। लेकिन, उनकी पहली सफल फिल्म रही 1965 में 'जब जब फूल खिले।' गीत, संगीत और अभिनय से सजी इस फिल्म की कामयाबी ने न नंदा समेत गीतकार आनंद बख्शी और संगीतकार कल्याणजी-आनंदजी को भी शोहरत की बुंलदियों पर पहुंचा दिया।
फिल्म की सफलता ने शशि कपूर को भी स्टार के रूप में स्थापित कर दिया। कल्याणजी और आनंदजी के संगीत निर्देशन में आनंद बख्शी रचित सुपरहिट गाना 'परदेसियों से न अंखियां मिलाना', 'यह समां समां है ये प्यार का', 'एक था गुल और एक थी बुलबुल' जैसे गीत श्रोताओं के बीच काफी लोकप्रिय हुए। फिल्म को सुपरहिट बनाने में इन गानों ने अहम भूमिका निभाई थी।
वे पहले ऐसे अभिनेताओं में से एक हैं जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काम किया। 1978 में शशि कपूर ने अपना प्रॉडक्शन हाउस 'फिल्म वाला' शुरू किया। उन्होंने जुनून (1978), कलयुग (1981), 36 चौरंगी लेन (1981), विजेता (1982) और उत्सव (1984) जैसी फिल्में बनाई, जिन्हें समीक्षकों ने खूब सराहा। उन्होंने अन्य ब्रिटिश और अमेरिकी फिल्मों जैसे कि सिद्धार्थ (1972) एवं मुहाफिज (1994) में भी अभिनय किया।
शशि कपूर ने 'अजूबा' नाम की एक फंतासी फिल्म भी बनाई। उन्होंने इसका निर्देशन भी किया। 2011 में भारत सरकार ने शशि कपूर को पद्मभूषण से भी सम्मानित किया। उन्होंने तीन राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी प्राप्त किए हैं। 90 के दशक में ख़राब सेहत के कारण शशि कपूर ने फिल्मों में काम करना बंद कर दिया। 1998 में प्रदर्शित फिल्म 'जिन्ना' उनके करियर की अंतिम फिल्म है।
शशि कपूर ने 100 अधिक फिल्मों में काम किया है। उनके करियर की कुछ अन्य प्रमुख फिल्में प्यार किए जा, हसीना मान जाएगी, प्यार का मौसम, कन्यादान, 'अभिनेत्री, शर्मिली, वचन, चोर मचाए शोर, फकीरा, हीरालाल पन्नालाल, सत्यम शिवम सुंदरम, बेजुबान, क्रोधी, क्रांति, घुंघरू, घर एक मंदिर, अलग अलग, इल्जाम, सिंदूर और फर्ज की जंग!
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