सपनों में रोते शब्दशिल्पी
वीथिका
Jan 24, 2015
डॉ.लक्ष्मीनारायान पांडे
इधर कुछ दिनों से सपनों में
दिवंगत कवि शायर, साहित्यकार, गीतकार
जिन्हें मैं जानता हूं, मानता हूं,पढता हूं,
जिन्हें सुनकर,गुनगुनाकर रूह को सुकून मिलता है,
वे सब शब्दशिल्पी रोते दिख रहे हैं,
उनके जो गीत, जो शेर,जो बन्ध
कानो के रास्ते दिल में उतरकर मुस्कराते थे,
झूमने पर मजबूर करते थे,
जीने का हौसला और तरीका सिखाते थे,
उनको राजनेताओं ने बेहूदा भौडी उबकाई भरी बाहियाद
तुकबन्दी बना डाला है।
हरेक दल हरेक प्रत्याशी
आजकल गीतों की, कविता की हत्या पर उतारू है,
अभी तक मीरा तुलसी कबीर रसखान के भजनों की,
पैरोडी के नाम हत्या हो रही थी
नचनियों की छमछमाती वाली फिल्मी धुन पर,
ये नेता,ये दलदलदल,
कविता में, गीतों में, लाजबाव शेरों में, भावभरे बन्धों में
अपना नाम घुसेड कर, पार्टी का पुछल्ला जोडकर,
चुनाव चिन्ह का मुलम्मा लपेट कर,
बेहूदे कानफोडू अन्दाज में
कविता के साथ बलात्कार कर रहे हैं,
ये कविता की हत्या है, मै इन सबको धिक्कारता हूं॥
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