साहित्य अकादमी ने माना बढ़ी है असहिष्णुता, पूछा कौन सी फैक्ट्री में लेखक गढ़े जाते हैं?

वीथिका            Oct 24, 2015


मल्हार मीडिया ब्यूरो साहित्य अकादमी के बाहर दो धड़ों में बंटे रचनाकारों के विरोध प्रदर्शन के बीच आखिरकार अकादमी ने चुप्पी तोड़ी है। अकादमी ने कन्नड़ साहित्यकार एमएम कलबुर्गी की हत्या की कड़े शब्दों में निंदा की और इसके विरोध स्वरूप पुरस्कार लौटा रहे लेखकों से इसे वापस लेने की अपील की। अकादमी के कार्यकारी मंडल की आपात बैठक हुई जिसमें हाल के घटनाक्रम को लेकर विचार विमर्श किया गया। बैठक में साहित्यिक इकाई ने इस्तीफा देने वाले सदस्यों से इस्तीफे वापस लेने की भी अपील की। बैठक में पारित प्रस्ताव में कहा गया, अकादमी कलबुर्गी की हत्या की कड़े शब्दों में निंदा करती है तथा अन्य बुद्धिजीवियों एवं विचारकों की हत्या पर शोक प्रकट करती है। यह भारतीय भाषाओं की एकमात्र स्वायत्त संस्था के रूप में देश के किसी भी हिस्से में लेखकों के खिलाफ किसी भी तरह के अत्याचार या उनके प्रति क्रूरता की कड़े शब्दों में निंदा करती है। अकादमी ने केंद्र और राज्य सरकारों से अपराधियों के खिलाफ तुरंत कार्रवाई करने का अनुरोध किया और कहा कि भविष्य में लेखकों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए। कार्यकारी मंडल के सदस्य कृष्णास्वामी नचिमुतू ने कहा कि अकादमी कलबुर्गी की हत्या की कड़ी निन्दा करती है और राज्य सरकारों तथा केंद्र सरकार से भविष्य में इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए कदम उठाने की अपील करती है। बैठक में अकादमी के कार्यकारी मंडल के 24 सदस्यों में से 20 शामिल हुए। डोंगरी के ललित मंगरोत्रा, अंग्रेजी के के सच्चिदानंदन, नेपाली के प्रेम प्रधान और मराठी के भालचंद्र नेमाड़े इसमें शामिल नहीं हुए। साहित्य अकादमी की आपात बैठक से पहले यहां रचनाकारों और उनके समर्थकों ने मुंह और हाथ पर काली पट्टी बांध कर एकजुटता रैली निकाली और इन लोगों ने अकादमी के अध्यक्ष को ज्ञापन सौंपा। कार्यकारी मंडल के सदस्य और उर्दू लेखक चंद्रभान ख्याल ने कहा, साहित्यकारों के जान-माल की सरकार को फिक्र करनी चाहिए और किसी को भी अपनी बात कहने से रोका नहीं जाना चाहिए। इसके साथ ही अमन और भाईचारे का माहौल बरकरार रहना चाहिए। कभी भी साहित्य को सियासत का अखाड़ा नहीं बनाना चाहिए। कवि केकी एन दारूवाला ने कहा कि हम लेखकों और कलाकारों के विरोध में बढ़ रही असहिष्णुता देख रहे हैं...जैसा कि पुणे के फिल्म संस्थान में हुआ। पुरस्कार लौटाये जा रहे हैं..कुछ लोगों का दावा है कि यह ‘गढ़ा’ जा रहा है। क्या गढा जा रहा है? ऐसी कौन सी फैक्ट्री है जहां लेखक गढे जाते हैं? इस बैठक में के. सच्चिदानंदन शामिल नहीं हुए जिन्होंने यह कहते हुए साहित्य अकादमी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया था कि यह लेखकों के साथ खड़े होने का अपना दायित्व निभाने और संविधान प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बरकरार रखने में विफल रही है। अकादमी अब 17 दिंसबर को इस संबंध में बैठक करेगी। 36 लेखकों द्वारा अकादमी पुरस्कार लौटाने के बाद यह आपात बैठक बुलायी गयी थी। पुरस्कार लौटाने वाले लेखकों में कृष्णा सोबती, काशीनाथ सिंह, अशोक वाजपेयी, उदय प्रकाश, नयनतारा सहगल, मुनव्वर राणा और के. सच्चिदानंदन शामिल हैं।


इस खबर को शेयर करें


Comments