स्मृतयो न भवेयुश्चेत् किं भवेत् ????? यादें न होती तो क्या होता ???

वीथिका            Jan 12, 2015


संस्कृत में ज्यादातर लोगों का हाथ तंग से भी तंग होता है, लेकिन इस रचना को पढ़कर लगता है कि नहीं अभी संस्कृत के मामले में इतनी तंगी भी नहीं आई है। गौर फरमायें इस कविता पर जो संस्कृत में लिखी गई और साथ में उसका हिंदी अनुवाद भी। डॉ लक्ष्मीनारायण पांडे इस कला में माहिर हैं एक नजर आप भी डालें इधर संस्कृत कर्णे स्खलितस्वरेण मन्दं मन्दं मदिरगीतं गायन्ती सहसा कर्णे हसन्ती मन्दं दंशति काSपि, भ्रमरेण हठाच्चुम्बितां कलिकां विलोक्य हठाच्चुम्बनोत्कं तर्जन्या तर्जयन्ती काSपि, प्रतीक्ष्यामुद्विग्नं वेगेन निरर्थकमटन्तं सहसा पृष्ठतो नयने निमील्य विहसन्ती काSपि, क्रोडे निद्राब्याजस्थितम् उष्णोच्छ्वासफूत्कारैः जागरयितुं चेष्टयन्ती काSपि, ओह.! स्मृतयो न भवेयुश्चेत् किं भवेत् ????? हिंदी अनुवाद थरथराती मद्धम आवाज में पुराना वही गीत गुनगुनाते अचानक कोई धीरे से काटकर शरमा जाए, जबरदस्ती भौंरे द्वारा चूमी कली को देखकर चूमने उतावले को तर्जनी से बारता कोई, इन्तजार में बैचेन इधर-उधर बेवजह टहलते हुए को पीछे से आकर आंखें बन्द करके खिलखिलाता कोई, गोद में सोने का बहाना बनाए मुग्ध को गरम गरम सांसों की फूंक से जगाता कोई, ओह.! यांदें न होती तो क्या होता ??? (कसम से)


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