रिचा अनुरागी
हिन्दी हमारी मातृ भाषा यानी भाषाई माँ । इस एक शब्द की स्तुती गाते हम थकते नहीं ,थकना भी नहीं चाहिए । किन्तु आज का कटु सच यह भी है कि माँ वृद्धाश्रम में अपने जीवन के अंतिम पलों का इंतजार कर रही होती है। यही हाल कहीं हमारी भाषाई माँ हिन्दी का तो नहीं ?
इसे देश का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि अंग्रेजो ने हमें गुलाम बनाया और हम आज तक उसी अंग्रेजी के गुलाम हैं । भाषा को लेकर झगडे होते हैं, मातृभाषी लोगों के साथ मातृभाषा भी लहूलुहान होती है और देश के नेता ,अफसर ,न्यायपालिका सब आँख,कान'मुंह बंद कर चुप रहते हैं । मातृभाषा हिन्दी को राष्ट्रभाषा कहना ज्यादा उचित होगा इस पर दंगे होते हैं पर देश में अंग्रेजी को लेकर अगर कोई बात उठती है चुप्पी छा जाती है । हम अंग्रेजी बोलने में गर्व महसूस करते हैं ,हिन्दी बोलने वालो को कमतर आँकते हैं। क्या यह हमारी राज्य भाषा मुझे लिखते हुए शर्म आती है कि हम आज भी इसे राष्ट्रभाषा नही लिख कह सकते,का अपमान नही ?
अपने को देश भक्त कहलाने वाले ये लोग कैसा दुमुखोटा लगाऐ हैं कि एक तरफ छोटी छोटी बातों को लेकर देश का झंडा ऊंचा किए होते हैं वही लोग हिन्दी में लिखे नामो को जलाते हैं। हम सिह को मोर को राष्ट्रीय पशू पक्षी मान सकते हैं स्वयं को हिन्दू कहलाने के उदघोष करते हैं पर हिन्दी को राष्ट्रभाषा नही मानेगे।
दरअसल हमारे देश के नेताओं ने बहुत सी ऐसी बातों को महत्व ही नहीं दिया जिसे उन्हें देना था ,जैसे कि आजादी के बाद हिन्दुस्तान को दुनिया के नक्शे पर हिन्दुस्तान या भारत नाम से अंकित कराना था ना कि इंडिया यानी भारत लिखना था । यह थी पहली गलती दुनिया का हर देश एक नाम से जाना जाता है और हमारा देश तीन तीन नामों से। दुसरी गलती जब उन्नीस सौ पचास में भारत का संविधान लागू हुआ तब ३४३ के उपबंध १ के अनुसार देवनागरी लिपी में लिखी जाने वाली हिन्दी को भारतिय संघ की राज भाषा का दर्जा तो दे दिया लेकिन अनुच्छेद ३के अनुसार यह भी कह दिया गया कि राज भाषा हिन्दी के साथ साथ सहभाषा के रुप में अगले १५वर्षो तक अंग्रेजी के प्रयोग का अधिनियम संसद बाना सकती है ,और हम आज तक अंग्रेजियत के गुलाम बने हुऐ हैं ।
गांधी जी इस बात को अच्छी तरह समझ रहे थे उन्होने अनेको बार कहा कि जिस देश की कोई राष्ट्र भाषा नही होती वह देश कभी सम्मान नही पा सकता । उन्होंने यह भी कहा था कि " आज की पहली और सबसे बडी समाज सेवा हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रुप में प्रतिष्टित करें ।"महात्मा गांधी दूरदर्शी थे वे जानते थे कि अगर हिन्दी को अभी नहीं प्रतिष्टित किया गया तो इस देश की अपनी कोई राष्ट्रभाषा नही होगी और जिस देश की अपनी कोई भाषा नहीं होती वह देश गूंगा है जाता है । तीसरी बडी गलती इसे राज नही शुरुआत में ही राष्ट्रभाषा लिखना था और पूरे देश में इसे अनिवार्य होना था । अगर ऐसा होता तो इस देश में तमिल भाषी ,तेलगु भाषी,बंगला भाषी ,गुजराती ,मराठी ,कन्नड भाषी के साथ लोग पहले हिन्दी भाषी होते और बाद में अनेक भाषा वाले होते और जब भाषा एक होती तो यह भाषावाद का झगड़ा ही नहीं होता ।
अभी तीन दिन पहले ही पूरे भारत के साथ—साथ दुनिया भर से हिन्दी को चाहने वाले भोपाल में एकत्र हुए खूब शोर भी हुआ तामझाम का तो पूछिए ही मत सब कुछ शानदार थां देश के प्रधानमंत्री भी पधारे थे हिन्दी तो धन्य हो गई ,पर यह देश आज भी अपनी राष्ट्रभाषा के लिए मौन खड़ा है । इस प्रगतीशील विकासवान देश को अब तो हम उसकी जुबान दे दें ।
अगर १०वें विश्व हिन्दी सम्मेलन के मंच से यह घोषणा हो जाती कि आज से हमारी अधिकृत राष्ट्रभाषा हिन्दी है तो हम समझते की सम्मेलन पूर्णरुप से सफल रहा ।
जिसे मेरी तोतली जुबां ने
तुतलाते हुए बोला था
वह हिन्दी मेरे दिलोजान में बसती है
माँ की लोरियों
पापा की नसीहतों की
भाषा वही प्यारी हिन्दी है ।
मेरे लाड़ दुलार की भाषा
मेरे भावों संवेदनाओं की भाषा
मेरे शब्दों के श्रंगार की भाषा
मेरी माँ बस माँ है हिन्दी
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