मैं बात कर रही थी पापा के दोस्त प्रभु श्रीवास्तव की जिन्दादिली की जीती जागती मिसाल। इस बार जब वे आये तो हमारे लिये कहानियों की पोटरी बहुत बडी और खास थी उम्र में बहुत छोटी थी पर कहानियों के लिये यही उम्र भी सबसे अच्छी होती है जब उसमें हीरो जाना-पहचाना हो तो सुनने का मजा कुछ अधिक ही होता है।वे जोश में कह रहे थे–इस बार हमें मौका मिला । हम आसमान में अतिशबाजी कर रहे थे , दुश्मन का हर ठिकाना तबाह कर रहे थे। पाकिस्तान ने सोचा था कि वे घुसपैठ कर कश्मीर की जनता को भ्रमित कर भारत के खिलाफ खडा कर देंगे। इस तरह कश्मीर का हिस्सा भी पाकिस्तान के पास आ जायेगा। वे कश्मीर में घुसते चले आ रहे थे और हमारी फौज उन पर हमला करती जा रही थी। पहले तो हमने अपनी तीन पहाड़ियों को उनके कब्जे से आजाद कर लिया।पर उनकी तरफ से भारी घुसपैठिये और सैनिक थे और उन्होंने हमारे कुछ महत्वपूर्ण इलाकों पर कब्जा कर लिया।उन्होंने भारतीय सेना की और भारतीयो की वेश-भूषा बना कर घुसपैठ की हमें इस वजह से भी परेशानी हो रही थी, लेकिन 15 अगस्त और भाई हमने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में आठ किलोमीटर अंदर घुस कर हाजी पीर दर्रे पर अपना प्यारा तिरंगा फहरा दिया।
भाई एक मौका आया और हमने हवाई हमले तेज कर दिए, जोर का ठहाका लगते हुए कहते- भाई, पाकिस्तान इतना घबरा गया कि बीच लडाई मे अपना सेन कमांडर ही बदल दिया। छः सितंबर को तो हम उनकी इच्छोगिल को पार करके हम लाहौर हवाई अड्डे तक पहुंच गये। अमेरिका ने चाल चली और भारत से अपील की कि वे अपने नागरिकों को सुरक्षित निकालना चाहते हैं अतः कुछ समय के लिए रोका जाये। भारतीय सेना ने दया की और युध्द रोक लिया और इसका हमें नुकसान हुआ।फिर भी हम फायदे में थे , हमारे पास उनकी सात सौ वर्ग किलोमीटर से अधिक पर कब्जा कर लिया था।आखिरकार अमेरिकी चाल चली गई और संयुक्त राष्ट्र की पहल पर हमें राजी होना पड़ा। फिर जोश में कहानी सुनाने वाले चाचा कुछ गंभीर हुए और बोले–पर इस सबके बीच एक दुखद घटना यह हुई कि मैं तो आसमान में था और पत्नी दो दिन की मासूम के साथ बंकर में छिपी थी, बमों की गूंज से धरती कांप जाती थी एक दिन बंकर के ठीक मुंह पर ही बम फट गया और उसका असर यह नन्ही बेटी सारी उम्र भुगतेगी अब यह बोल-सुन नहीं पायेगी। मुझे छः साल की उम्र में पापा की यह कविता समझ नहीं आती थी पर जब समझ आई तो प्रभु चाचा -चाची नन्हीं गुड़िया , खौफ-डर से सहमें दूध मुंहे बच्चे, बंकरों में कैद जिन्दगियाँ, पशू-पक्षी, बंकर सब समझ आता है।
रेशम के मकरंदी कोश अभी भीगे हैं,
अरुन-बरन-कलियों ने किरन-परस पाया है।
चन्दा को गया हुआ धरती का हरकारा
प्यार का संदेश ले धरती पर आया है।
ऐसे में आवारो,
प्यार की तलैया में,
कीच मत उछारो!
बन्द करो उद्जन की शैतानी बन्द करो!
बन्द करो एटम की शैतानी बन्द करो!
मैना की मुनियाँ ने अभी चोंच खोली है,
धौरी की बछिया ने पहला तृण चाबा है,
झबरी के पिल्लों की अभी आँख उघरी है,
हिरनी के छौनों ने अभी चौक लाँघा है।
ऐसे में हत्यारो,
गर्भिणी चिरैया को
मत गुलेल मारो!
बन्द करो उद्जन की शैतानी बन्द करो!
बन्द करो एटम की शैतानी बन्द करो!
ताल-गाछ-चोटी पर अभी भोर चहकी है,
ऊषा ने घर- आँगन केशर से सींचा है,
गुलगुली रजैया में साधों भरे यौवन ने
सपनीली-बाँहों में अभी स्वर्ग भींचा है।
ऐसे में दईजारो,
फूस की मढ़ैया के
द्वार मत उघाड़ो!
बन्द करो उद्जन की शैतानी बन्द करो!
बन्द करो एटम की शैतानी बन्द करो!
अब हम सब का ध्यान उस नन्हीं सी गुड़िया पर था कि प्रभु चाचा अब्दुल हमीद की वीरता के गुणगान करते हुए कहते हैं-पाकिस्तानी पैटन टैंक गोले दागते हुए आगे बढ़ रहे थे और सभी को आदेश था कि उससे दो किलोमीटर दूर रहना होगा, पर भाई हमीद ने तो जैसे उन्हें खत्म करने की ठान ही ली थी और वह आगे बढ़ता गया, 200-300मीटर तक पहुँच कर वो पाकिस्तानी पैटन टैंको को ध्वस्त कर रहा था ,मानो वह उनका काल बन गया था। उन्होंने पाकिस्तानी पेंटन टैकों की कब्रगाह बना दिया और भारतीय सैना में जोश भर वीरगति को प्राप्त हो गये। उनकी बातों का असर ऐसा हुआ कि पापा के छोटे भाई इंजीनियर रविन्द्र जो भारतीय सिविल सेवा की परीक्षा पास कर ली थी और बस इन्टरव्यू शेष था, पापा से बोले -भैया आपकी क्या आज्ञा है सिविल सेवा या भारतीय सेना? पापा ने बस इतना ही कहा-तुम देश की सेवा जहाँ से भी अच्छी तरह कर सको। पापा के मित्र परमानंद पैठिया जो स्वयं भी आई.ए.एस थे और उनके पुत्र आदित्य भी वही बनने की तैयारी में था इरादा बदल कर रवि चाचा के साथ ही भारतीय वायु सेना के सैनिक बन गये। उसके बाद तो चाचा और आदित्य भैया के बहुत सारे दोस्तों ने भारतीय सेना को ज्वाइन किया। कोई थल सेना में तो कोई जल सेना में तो कोई वायु सेना का हिस्सा था।जब कभी यह सब एक साथ भोपाल आते तो घर की रौनक दस गुना बढ़ जाती घर के पीछे वाले बगीचे में दाल-बाटी, चूरमा, बैगन का भरता,चटनी और चूरमा का लड्डू ,वाह मजा ही आ जाता। रवि चाचा को दादी के हाथ की गुड़ की रोटी बहुत पसंद थी दादी के मुलायम नाजुक हाथ गरम-गरम गुड-घी-रोटियां मलते हुए लाल हो जाते और हम सबका पेट ही नहीं भरता। वो दादी का चूल्हा, कईला, गर्म राख पर भूने आलू-बैगन, अमरुद का स्वाद आज तक मुंह में पानी आ जाता है। हमारा स्कूल जाना दो-चार दिनों के लिए बंद हो जाता और बस ढ़ेर सारी मस्ती ,पापा की कविताएं और वीर सैनिकों के किस्से।पापा की वो जोशीली आवाज आज भी मेरे कानो में गूंजती है—
परमवीर अब्दुल हमीद का सलाम
आज हम इतिहास का कुछ खास-सा क्षण जी रहे हैं
और बलिदानी बही में
नये पन्ने सी रहे हैं।
एक पन्ने में लिखा था
अभी ही कुछ बरस पहले
ब्रिगेडियर उस्मान का शुभ नाम
अब लिखो, कौमी तिरंगे को
कसूरी मोर्चे से
वीर अब्दुल का सलाम।
टैंकों की गड़गड़ाहट से यही आवाज़ आती है
हिचकियों की सर्द आहट से
यही आवाज़ आती है,
सलाम, अय, मादरे हिन्दोस्ताँ तुझको
सलाम, अय गुलो-बुलबुल, गुलिस्ताँ औ’ बागबाँ तुझको
वतन के नौजवाँ तुझको
वतन के पासवाँ तुझको।
सलाम ऐसा ही किया था गौस ने
सौ बरस पहले
बुर्जे झाँसी से।
भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव ने भी
तख्ते फाँसी से
यही आवाज़ आराकन के बीहड़ गुँजाती थी
हमारी फौज़ जब, “दिल्ली चलो”, नारा लगाती थी
यही तेवर, यही अन्दाज
थे उस वक्त एकट्ठा
हमारी कौम ने नारा दिया-
‘पगड़ी सम्हाल जट्टा’।
और अब फिर आ रहे हैं सर
हमारे सामने इन शाहज़ादों के
हमीद, मंजीत जैसे
कौम के रोशन चिरागों के।
देख, दिल्ली देख,
अपने लाड़ले फिर सुर्खरु हो आ रहे हैं
और हम शाहेज़फर का नाम लेकर गा रहे हैं-
‘हिन्दयों में हैं अभी भी खुशबुएँ ईमान की
तख्ते दुश्मन तक चलेगी तेग़ हिन्दुस्तान की’।
निरन्तर………
Comments