मल्हार मीडिया/ममता यादव।
मौत का समय निश्चित नहीं है मगर मौत निश्चित है। मैंने अपने जीवन में अपने कई परिजनों की आकस्मिक मौतें देखीं। मगर आज भी किसी का अचानक जाना मुझे झकझोर जाता है। न ही ऐसे परिवार में जाने की हिम्मत कर पाती हूं जहां किसी के परिजन की मौत हुई हो। जहां भी रहती हूं बुजुर्गों का आर्शीवाद स्नेह खूब पाती हूं। इसे इत्तेफाक ही कहेंगे कि जिनकी किताब पर आज खबर लिखने बैठी आज ही उनका देवलोक गमन हो गया। यूं कोई रिश्ता नहीं था आपसे मगर हमारे कैंपस के सबसे बुजुर्ग सदस्य थे आप, श्री शिवपाल सिंह परिहार अंकल। बुमुश्किल एक महीना ही हुआ है जब आपने किताब के बारे में बताया था। आपको देखकर हमेशा एक प्रेरणा मिलती थी। चेहरे पर स्मित मुस्कान, सादगी और 80 पार की उम्र में भी बिल्कुल स्वस्थ] आज जब युवा भी शुगर ब्लडप्रेशर जैसी बीमारियों से पीड़ित हैं आप इन तमाम चीजों से मुक्त थे।अभी भी मुझे यकीन नहीं हो रहा कि आप कल से कैंपस में शाम को बैठे नहीं दिखेंगे। न ही ये कहेंगे कहां थी ममता बेटा दो-तीन दिन से दिखी नहीं। या शाम को जब भी मिले कहां जा रही हो बेटा? कभी-कभी बुंदेलखंडी में भी बतियाते थे आप। कई छोटी कहानियों में बड़ी बात बता देते थे आप। आप जहां भी रहें सुकून से रहें यही परमपिता परमेश्वर से प्रार्थना है। ओम शांति। श्री शिवपाल परिहार जी की किताब के बारे में जानने के लिये आगे पढ़ें
सारा जीवन तो यूं ही गुजार दिया अब जीवन संध्या में कुछ ऐसा किया जाये कि लोगों को सही दिशा दिखाने वाली कोई चीज दुनियां को कुछ देकर जायें। दुनियां में जब आये थे तो खाली हाथ आये थे मगर अब कुछ तो देकर जाये, जिससे छात्र प्रेरणा ले सकें और अपने जीवन में उतारकर लाभान्वित हो सकें। यह कहना है श्री शिवपाल सिंह परिहार का। 84 वर्षीय श्री परिहार शासकीय सेवा से रिटायर्ड श्री परिहार एक बेहतर और स्वस्थ जीवन जिये।
इसे भी इत्तेफाक कह लीजिए कि आज ही ये खबर लिखी गई और आज ही परिहार जी का देवलोकगमन हो गया। कभी—कभी हम वक्त की रफ्तार को समझ नहीं पाते। मौत के मामले में तो बिल्कुल भी नहीं। अभी 3 दिन पहले ही तो सब ठीक था। आप बिल्कुल वैसे ही शाम को बैठे थे कैंपस में।
2 जनवरी 1930 को जन्मे श्री परिहार ने प्रेरक विचारों की एक पुस्तक प्रकाशित कराई । यह उनके अपने डायरी संग्रह का एक रूप है। किताब का नाम है द फाउंटेन आफ नालेज। श्री परिहार ने बताया था कि उन्होंने कोटेशन संग्रह करने यानी डायरी में लिखने की शुरूआत 1957 से की। अंग्रेजों को बातचीत कर उन्हें अंग्रेजी सीखने की इच्छा जागी और उन्होंने अपने मीडिल स्कूल के शिक्षक श्री ओंकार सिंह चौहान की प्रेरणा और मार्गदर्शन से हाईस्कूल तक आते—आते पूरी डिक्शनरी याद कर ली थी।
अंग्रेजी में एमए एवं बीएड श्री शिवपाल परिहार ने बताया कि उस समय कहीं जाते तो अच्छे प्रेरक विचार लिखे होते जिसे मैं डायरी में नोट कर लेता। वे कहते हैं उचित ज्ञान अच्छे कर्मों की तरफ ले जाता है। यदि हमारी सोच सकारात्मक है तो वह सही रास्तों पर ले जात है।
जीवन के हर पहलू, हर भावना, हर समय से संबंधित कोटेशन द फाउंटेन आॅफ नालेज नाम की इस किताब में हैं। यह किताब नि:शुल्क है। पहले इसकी कीमत रखी गई थी मगर परिवार के सदस्यों ने इसे बाद में नि:शुल्क रखने की सलाह दी। श्री परिहार की पोती ऋषिता परिहार ने डायरी में से किताब का कंपोजीशन कार्य किया है। चूंकि डायरी काफी पुरानी हो गई थी और उसके पन्ने भी जीर्ण होने लगे थे इसलिये इस संग्रह को बचाने भी किताब प्रकाशित कराई। यह संग्रह युवा पीढ़ी के लिए लाभदायक साबित हो सकता है। यदि वे इसे अपने जीवन में उतार सकें तो।
श्री परिहार के अपने सबसे प्रिय ये दो प्रेरक विचार हैं:—
बुद्धिमान लोगों को अपनी बुद्धि का उपयोग जरुरतमंद लोगों की भलाई के लिये करना चाहिए।
हमारे जो पूर्वज मृत हो चुके हैं उन्हें तब तक मरा हुआ नहीं मानते जब तक उनको भूल नहीं जाते।
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