राकेश शर्मा।
कला मनीषी विष्णु पाठक केवल सागर अपितु समूचे बुंदेलखंड को देश दुनिया के कला जगत में पहचान दिलाकर कला गुरु विष्णु पाठक दैहिक रूप से हमसे विदा हो लिये।
अभी दो दिन पहिले ही बैंक में मिल गये सदा की तरह खुशरंग।
बोले म्यूजियम की बिल्डिंग तैयार है बस उद्घघाटन करवाना है दिल्ली से किसी को बुलाना है।तुम घर आओ अपन बात करेंगे।
साथ रही पत्नीजी से अलग से बोले तुम भी आना। भला कोई कभी कल्पना भी करेगा कि ये हमारा उनसे अंतिम संवाद बन कर रह जायेगा।
सागर विश्वविद्यालय में 1975 छात्र जीवन से लेकर अब तक अलग अलग स्तर एवं भिन्न भिन्न भूमिकाओं में पाठकजी से निरंतर सम्पर्क-संवाद बना रहा।
जब भी मिलना हुआ सदैव ख़ुश मिज़ाज, उत्साहित भाव व कुछ नया कर गुज़रने को तत्पर पाया उन्हें! कोई नई योजना-आयोजना कार्यरत रहती थी उनके दिल दिमाग़ में।
उनका मन सर्वदा नई प्रतिभाओं की तलाश में सक्रिय रहता था। किसी नई प्रतिभा को तलाशना, तराशना और फिर चमकाना ही मानो उनका शग़ल था।
मई 1964 में सागर विश्वविद्यालय में खोले गये युवक कल्याण, सांस्कृतिक गतिविधियाँ तथा प्रदर्शनकारी कला विभाग के संस्थापक अध्यक्ष नियुक्त हुए विष्णु पाठक।
अब उनके मन माफ़िक़ शग़ल को जैसे पर लग गये। बुंदेली बधाई नृत्य को पाठक जी ने विश्वविद्यालयीन युवा उत्सव में न केवल शामिल करवाया बल्कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर इसे नई पहचान भी दिलाई।
पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु, इंदिरा गांधी व अटलजी द्वारा विश्वविद्यालय को इसके लिए सराहना मिली।
सागर विश्वविद्यालय ने पाठकजी के कुशल व प्रेरणादायी मार्गदर्शन-निर्देशन में राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय युवा महोत्सव में अनवरत प्रथम स्थान अर्जित कर विश्वविद्यालय के संस्थापक हरीसिंह ग़ौर के सपनो को नई ऊँचाइयाँ हासिल कीं।
लेकिन पाठकजी सफलता या लोकप्रियता की अग्नि में नहीं पिघले। वे बुलंदियों को यूँ पार करते रहे मानो रोज़मर्रा का काम हो।
“नई उम्र की नई फ़सल”एवं “शायद” फ़िल्म में विट्ठल भाई पटेल के गाने दो ही दिलों को ऐसे मिला लो.....की कोरियोग्राफ़ी विष्णु पाठक ने की।
बुंदेली ढीमरयाई और बधाई नृत्य को उन्होंने अन्तर्राष्ट्रीय पहचान दी। प्रतिभा किसी भी क्षेत्र की हो वे उसे उभरता हुआ देखना चाहते थे। इस हेतु उनसे जो बन पड़ता था, प्रयास करते थे।
वे मुझे राजनीति में आगे जाने हेतु सदैव प्रेरित करते रहे ,कहते थे मैं महेश जोशी से बात करूँगा, दिल्ली जाऊँगा..राजीव गांधी को मिलूँगा..तुम हमाये साथ चलना.! अभी घर बुलाकर ख़ुद लंबे सफ़र पे चल दिये..।
भारत के फ़िल्म जगत में सागर का नाम रोशन कर रहे गोविंद नामदेव , मुकेश तिवारी, आशुतोष राणा सहित अनेक कलाकारों को विष्णु पाठक से ही प्रेरणा मिली है।
नरयावली नाका मुक्ति धाम में आज कला गुरु विष्णु पाठक को अत्यंत भावपूर्ण कलात्मक विदाई दी गई।
बधाई नृत्य के जनक को उनके शगिर्दो ने जब बधाई पेश की तो शब्द वाणी स्वर सभी अवरुद्ध हो गये, वातावरण अत्यंत बोझिल व भाव विहल हो गया। उनकी बेटी मयूरिका और नाती ने उन्हें मुखाग्नि दी।
आँखें पनीली हो गईं....!!! महसूस हुआ जैसे छूट गया साथ फिर भी छूटा नहीं वे चले गये फिर भी गये नहीं ।
“पाठकजी जहाँ भी जायेंगे रोशनी लुटायेंगे
किसी चिराग़ का अपना मकाँ नहीं होता”
ऐसे विलक्षण कला मनीषी को विनम्र सादर नमन...
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