मल्हार मीडिया भोपाल।
कभी शाम ढलते ही लालटेन लोगों के घरों की रौनक हुआ करता था। लालटेन से झरती पीली रोशनी घर,दहलान से लेकर पूरे गांव को रोशन करती थी। आज बिजली की चकाचौंध के आगे यह लालटेन सिर्फ याद बनकर रह गया है। गुजरे जमाने की ऐसी कई चीजों की झलक संजोए एक प्रदर्शनी गुरुवार को माधवराव सप्रे संग्रहालय की दीर्घा में मेरा दुर्लभ संग्रह शीर्षक से सजी।
विश्व संग्रहालय दिवस के निमित्त लगी इस प्रदर्शनी में शहर के करीब 25 संग्रहाकों ने अपने निजी संग्रह की चीजों को प्रदर्शित किया गया। इनमें पुराने सिक्के, की रिंग्स, प्रस्तर औजार, डाक टिकिट, पुराने बरतन, माचिसें, पुरानी सामग्रियों से तैयार कला आदि शामिल थीं।
प्रदर्शनी का औपचारिक शुभारंभ अनूठी वस्तुओं के संग्राहक पूर्व डीजीपी सुभाष अत्रे, पुरातत्चविद् डॉ. नारायण व्यास तथा इतिहासविद् डॉ. शंभूदयाल गुरु की मौजूदगी में हुआ। प्रदर्शनी के बारे में संग्रहालय के संस्थापक निदेशक विजयदत्त श्रीधर ने बताया कि शहर में बहुत से लोगों ने अपने व्यक्तिगत् शौक के चलते कई दुर्लभ वस्तुएं एकत्रित की हैं। इनमें से ज्यादातर संग्रह लिमका बुक आफ रिकार्ड्स या अन्यत्र दर्ज हैं। इनका यह बहुमूल्य कलेक्शन ज्यादा से ज्यादा लोगों की नजरों से गुजरे इस मंशा से यहां प्रदर्शित की गई हैं।
प्रदर्शनी में राकेश वैद्य की रिंग्स का कलेक्शन लेकर आये थे। इसमें विश्व के सभी प्रमुख संग्रहालयों तथा पुराने अखबारों को की रिंग्स में लगाया गया था। इसी तरह अरुण सक्सेना ने महापुरुषों की याद में निकाले गए सिक्कों को प्रदर्शित किया था। आफताब अहमद ने लालटेन की किस्में और डिजायन प्रदर्शित की थीं। डॉ. नारायण व्यास ने प्रस्तर तथा औजार प्रदर्शित किए। मृद् भाण्ड, सुधीर पाण्ड्या - देश-विदेश के नोट, सुनील कुमार भट्ट - माचिसें, डी.पी. तिवारी - कवाड़ की कला, अरुण कुमार सक्सेना - सिक्के, आशीष कुमार भण्डारी - डाक टिकिट, आयुषि श्रीवास्तव - शादी कार्ड, मन्नान अहमद - बरतन, टेलीफोन एवं छापे, ब्रजेश गर्ग - विजिटिंग कार्ड, रणजीत कुमार झा - बाँट एवं पोस्ट कार्ड, रवीन्द्र जैन - सिक्के, आतिया सालेह - सिक्के, विजय मोहबे - नाखून, आई.बी. पन्त - सिक्के, आर.जी. ठाकुर - डाक टिकिट, खुर्शीद खान - डाक टिकिट, कीर्ति कुमार जैन - पोस्ट कार्ड, चिन्मय मालवीय - टेग एवं केन, एस.एम. हुसैन - हेट एवं बटन प्रदर्शित किए। दिन भर में करीब सैकड़ों दर्शकों ने प्रदर्शनी का अवलोकन किया। इस अवसर पर दर्शकों तथा संग्रहकों के बीच संवाद भी हुआ। अंत में सप्रे संग्रहालय की ओर से संग्राहकों को प्रमाण-पत्र भी वितरित किए गए।
अतीत से जोड़ते हैं संग्रहालय
कार्यक्रम में विशेष रूप से मौजूद पूर्व डीजीपी सुभाष अत्रे ने कहा कि भले ही आज विश्व भर में संग्रहालय दिवस मनाया जाता हो लेकिन इस तरह के आयोजन हमारी पंरपरा का हिस्सा रहे हैं। इस तरह का संग्रह पहले राजा-महाराजाओं का शौक रहा, लेकिन यह आज ज्यादातर लोगों का शौक हो चला है। उन्होंने सप्रे संग्रहालय की यात्रा का भी जिक्र किया। इतिहासविद् शंभूदयाल गुरु ने कहा कि इस तरह के संग्रहालय हमें हमारे इतिहास से जोड़ते हैं। नई पीढ़ी हमारी परंपराओं को इनके जरिए ही समझ सकती है।
कार्यक्रम का संचालन निदेशक मंगला अनुजा ने किया। अंत में केन्द्रीय मंत्री अनिल माधव दवे को दो मिनट का मौन रखकर श्रृद्धांजलि दी गई।
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