ज्योति तिवारी।
हाँ तो चालाक प्रजातियों यह आज का दिन आपका है ताकि आप थोडी कम चालाक प्रजातियों को बेवकूफ या मूर्ख बना सकें...चलिए आज मूर्ख बना लीजिये आप मगर यह भी तो सोचिये की मूर्ख आप उन्हें ही बनायेगे जो आप पर भरोसा करेंगे..अक्सर मुझे अपने मित्र की कविता की एक पंक्ति याद आती है कि 'यह विश्वास के संकट का समय है'...जब-जब आसपास की घटनाओं को देखती हूँ मुझे यह पंक्तियाँ सच लगने लगती है...।
चलिये आज आप जी भर के मूर्ख बनाइये सबको मगर आत्मा को जिन्दा रख खुद से यह वादा जरुर कर लीजियेगा की प्रगतिशीलता की ओट में किसी लडकी का शारिरीक ,मानसिक,आर्थिक,सामाजिक शोषण कर उसका खुद से भरोसा मत तुडवा दीजियेगा...प्रेम करियेगा मगर प्रेम में शादी का झांसा देकर देह व्यापार मत करियेगा...लडकियों आप भी जानबूझकर मूर्ख मत बनियेगा कम से कम दिमाग के दरवाजे इतने तो खुले रखियेगा ही कि कौन आप के लिए सही है और कौन गलत यह फैसला आप कर सकें.....।
एक मूर्ख बनाने वाला इंसान कभी विश्वासपात्र नहीं हो सकता....समाज के भविष्य निर्माताओं एक बार अपनी आत्मा से जरुर पूछियेगा कि बेवकूफ बनाने वालों के सरगनाओं को पाल पोसकर आप कैसा भविष्य समाज को दे रहे है?......सुनिये चालाकी में ओतप्रोत प्राणियों किसी ठेले खोमचे वालों को तो एकदम बेवकूफ मत बनाइयेगा...आप किसी छोटे बच्चे को बेवकूफ बना बदतमीजी मत करियेगा...किसी बूढे बुजुर्ग को बेवकूफ मत बनाइयेगा...माँ बाप को तो कत्तई बेवकूफ मत बनाइयेगा...यह पोस्ट कोई आदर्शवादी भाषण नहीं है...आप अपना छल-कपट,साम,दाम,दंड,भेद सबकुछ आज लागू कर लीजिये..आज ही उनका भरपूर लाभ उठा लीजिये...।
मगर खुद से अगर नजर मिलाने की हिम्मत है तो कम से कम मरी हुई आत्मा से प्रगतिशीलता की चादर हटा कर सच को सच और झूठ को झूठ कहने की हिम्मत बटोर लीजिये......आज आप अपनी चालाकी का उत्सव जरुर मनाइये...मगर आज के बाद दूसरों को बेवकूफ बनाकर,मूर्ख बनाकर,ठगकर अपने काइयां होने का प्रमाण मत दीजियेगा...कि बेवकूफ बनने की तकलीफ बडी खतरनाक होती है....कि लाख कोशिशों के बावजूद वह दिल में हुये किसी लाइलाज जख्म की तरह कसकता... रिसता....और डभकता है।
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