प्रस्तुति:रजनीश जैन।
देश के लाखों लाख रोहिथ वेमुलाओं! मेरी किताब तुम्हारा हथियार है! यह तुम्हें वह अधिकार और आधार देती है जो मुझे और मेरे पुरखों को नहीं मिला था। तुम इस किताब की ताकत से जितनी सीढियां चढ़ते हो, उतनी ही तुम्हारी जिम्मेवारियाँ बढ़ती जाती हैं...। अपने उन बंधुओं के लिए जिन्हें तुम अपने गांव, गली, मंजरों, टोलों और झुग्गियों में छोड़ आए हो। ऊँचे संस्थानों में पहुंच कर हताशा का रंग, रूप और ढंग बदल जाता है जिससे जूझने के तरीके तुम्हें ईजाद करना है...। संघर्ष और ज्ञान से उस मार्ग के कांटों को साफ करते चलना है ताकि जब भी तुम्हारा कोई बंधु तुम्हारे पीछे उसी मार्ग से गुजरे तो उसे तुम से कम तकलीफ़ उठाना पड़े।
इन माल और मल्टीप्लेक्स की भौतिकवादी चमक—दमक को तुम अपने दिलो—दिमाग पर हावी न होने दो। इसका आकर्षण और इसकी कुंठा दोनों तुम्हें विचलित करेंगी पर तुम्हें इस महीन जाल से बचना है।यह समझते हुए कि अभी तुम सब मोर्चों पर हो, विषमता के खिलाफ हमारी जंग अभी खत्म नहीं हुई है। तुम इस जंग के एक कुशल सैनिक हो और सैनिक आत्महत्या नहीं करता,...लड़ कर जीतता है या शहीद होता है।
तुम तब भी बेचैन मत होना जब तुम यह देखो कि मेरी वो तस्वीर जो तुमने अपने दिलों से सटा कर हाथों में पकड़ रखी है, वैसी ही तस्वीरों को और बड़ा करके तुम्हारा शोषक वर्ग मेरी आरती उतार रहा है, मेरे गीत गा रहा है। वे कर्मकांडी हैं जिससे खतरा महसूस करते हैं झूले झांझर लेकर उसे ही पूजने लग जाते हैं...। कर्मकांड उन्हें करने दो,तुम मेरा लिखा, बोला पढ़ो और उस पर अमल करो। दुर्गम बस्तियों तक सब को बताओ कि कर्मकांडी तुम्हें तुम्हारे पथ से भटकाने के लिए मेरे नाम की माला जप रहे हैं और भजन भंडारे कर रहे हैं। मैंने अपने जीते जी कभी जयजयकारे तलब नहीं किए। अतः तुम भी भ्रम में मत आना कि तुम्हारा भीम कर्मकांडियों के नारों और जयजयकारों से संतुष्ट हो जाएगा। मेरा लक्ष्य खुद का सम्मान नहीं तुम्हारा सम्मान और स्वाभिमान लौटाना है।
मेरी पूजा करने वाले इस्टमेन कलर में आयेंगे पर उनका चरित्र और अभीष्ट एक ही है ...तुम्हारा शोषण। इसे काटने के लिए सिर्फ शिक्षा और विवेक ही हथियार हैं। जब तुममें से एक भी पढ़ लिखकर आत्महत्या करता है तो वह अपने पीछे खड़े हजारों बंधु—बांधवों के संघर्ष को और और पीछे ले जाता है। और पीछे तो अत्याचारों, अमानवीयता से भरी अंधेरी कोठरियाँ है बस।
इसलिए जिंदगी की लौ को ऊँची करके चलो...। समय लगेगा लेकिन हम असमानता की सारी बेड़ियों को काट कर फेक देंगे। किसी के प्रति मन में क्रोध पाल कर या प्रतिशोध की भावना रखे बिना हम सभी एक दिन एक पायदान पर खड़े होंगे।
( तुम्हारा बाबा-डा.भीमराव आंबेडकर)
Comments