सागर से रजनीश जैन।
कल दोपहर से मास्टर बलदेव प्रसाद याद आ रहे हैं। 1923 में मध्यप्रदेश का पहला दैनिक अखबार ' प्रकाश' सागर से छापने वाले मास्टर जी।...वही जो उस दौर की ब्रेकिंग न्यूज मिलते ही ' मिनट मिनट की डायरी' नाम का पर्चा छाप कर सागर की गलियों में बांटने निकल जाया करते थे। उनकी एक तस्वीर मेरे संग्रह में है जिसमें वे सफाईकर्मियों वाली लंबी झाड़ू लेकर शहर के गली मोहल्ले साफ करने निकले हैं। संतों जैसे दाढ़ी बाल, खादी का पहनावा। पत्रकारिता का इतिहास पढ़ाते हुए हमारे शिक्षक स्व भुवन भूषण देवलिया जी जब मास्टर जी के बारे में बताते थे तो मेरे रोंगटे खड़े हो जाते थे। लेकिन न तो देवलिया जी ने कभी बताया और न ही किसी किताब में यह तथ्य मिल सका कि मास्टर बल्देव प्रसाद की जाति क्या थी।
सब उन्हें गंगेले ही समझते हैं क्योंकि उसी परिवार से उनको जोड़ा जाता है। बीते हफ्तों में कवि पद्माकर के रहवास और मराठा मंदिर की जिज्ञासा को लेकर बरियाघाट और पुरव्याऊ इलाकों में जाना हुआ तो मेरे मित्र पत्रकार संतोष गौतम ने एक मकान की तरफ इशारा करते हुऐ जानकारी दी कि ये मकान मास्टर बल्देव प्रसाद का है जो वे गंगेले परिवार को दे गये थे !...मैंने सवाल किया दे गये थे मतलब ...!? उन्होंने बताया कि मास्टर जी को सब गंगेले ही समझते हैं पर हम बरियाघाट वालों को ही पता है कि वे सोनी समाज से थे, उन्होंने परिवार नहीं बसाया था...गंगेले परिवार ने ही उनको अपना कर सेवा की सो मास्टर जी उन्हीं को सब दे गये थे। यह मेरे लिए एक नई जानकारी थी जो मुझे सागर के स्वर्णकार समाज के योगदान के बाबत् नये सिरे से सोचने को प्रेरित कर चुकी थी।
अब बरियाघाट मास्टर जी के अलावा एक और शख्स के लिऐ जाना जाता है वे हैं अभय दरे। उसी बरियाघाट इलाके में जन्मे , पले बढ़े। दरे जी भी सोनी समाज से ही हैं।...सागर नगर निगम के महापौर पद पर जब वे आसीन हुए थे तो शहर के सोनी समुदाय का उत्साह और जोश देखने लायक था। दरे भी सामुदायिक एकता को निभाते हुए सारा सर्राफा उठाकर निगम के दफ्तर की वीथिकाओं में ले आये।लगा जैसे सब चमक जाएगा, निगम में 'स्वर्णयुग' का अवतरण हो चुका है।...ढाई साल में 'बट्टा' लग गया। ...एक ही समुदाय की दो शख्सियतें। एक मास्टर जी...आजादी के लड़ाके, शहर की सफाई के लिए 67 साल पहले झाड़ू लेकर निकल पड़ने वाले, ...24 कैरट के स्वर्ण से तपे तपाए और खरे, जिनके जिक्र मात्र से ही हम पत्रकारों की आँखें गौरव से चमकने लगती हैं। और दूसरी तरफ अभय दरे जी जिन्होंने नगरनिगम को सर्राफे की दूकान की तरह चलाया। बट्टे पर चर्चा करते धरे गये और बट्टा लगा बैठे। बैन्टेक्स की तरह राजनीति में उतरे और जल्द ही पानी उतार लिया।
यह कहानी एक समुदाय या जाति विशेष की नहीं। सभी पर लागू है। खुद को कसौटियों पर कसते हुए सार्वजनिक जीवन अपनायें तो ही साख और सामाजिक स्वीकृती मिलती है।
लेखक मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं।
नोट मास्टर बल्देव प्रसाद को मध्यप्रदेश का पहला दैनिक प्रकाशित करने के लिये याद किया जाता है।
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