रजनीश जैन।
नीचे की एक भी तस्वीर साधारण नहीं है। यह स्टेशन, पटरियों पर मरा पड़ा शख्स, अदालत के कटघरे में दिख रहे दो 'चोर' और यदि स्टेशन पर दिख रही ट्रेन को पठानकोट एक्सप्रेस मान लें तो वह भी। इसी स्टेशन पर 11-12 फरवरी 1968 की सर्द रात ढाई बजे के करीब पश्चिमी ट्रैक्शन पोल के निकट एक मृत शरीर पड़े होने की खबर मिली। तीन स्वेटर, एक शाल ओढ़े जूते मोजे पहने यह मृत देह आठ घंटे यूँ ही पटरियों पर पड़ी रही। मृत देह की मुट्ठी में पाँच रु का नोट थमा हुआ था।जेब से मिले टिकट के सहारे दिन के 9:40 बजे रेलवे कंट्रोल आपरेटर ने लखनऊ से पता करके बताया कि यह टिकट किन्हीं पंडित दीनदयाल के नाम से जारी हुआ था। इस सूचना पर मुगलसराय से जनसंघ के कुछ कार्यकर्ता मौके पर पहुँचे और उन्होंने मृत शरीर को पहचाना। वे राष्ट्रीय जन संघ के अध्यक्ष पं दीनदयाल उपाध्याय थे।
दोपहर तीन बजे शव पोस्टमार्टम के लिए बनारस लाया गया और शाम पाँच बजे जनसंघ के नेता अटलबिहारी वाजपेयी को सौंप दिया गया। शरीर की चोटें साफ बता रही थीं कि यह हत्या है। इतनी सर्द रात को कोई शख्स ट्रेन का दरवाजा तक नहीं खोलता लेकिन 52डाऊन पठानकोट एक्सप्रेस के दो बर्थ वाले कूपे में अकेले यात्रा कर रहे पं. दीनदयाल के साथ उनका बिस्तर वाला होलडाल भी सीट पर नहीं था लेकिन उनका सूटकेस अब भी बर्थ पर था।
इस समय तक पं दीनदयाल जी के नेतृत्व में जनसंघ के गठबंधन की तीन सरकारें उत्तरप्रदेश, बिहार और पंजाब में बन चुकी थीं। लिहाजा मामला साधारण न था। जनसंघ ने माँग की कि यह हत्या राजनैतिक कारणों से की गयी है अतः राज्यसरकार की जाँच टीमों के साथ सीबीआई भी जुड़कर मामले की जाँच करे। रेलवे के अफसरों की भी घटना में संबद्धता के चलते केंद्रीय जाँच एजेंसी की सहभागिता उपयोगी सिद्ध हो सकती थी ऐसा जनसंघ का मानना था। लेकिन इस मांग की आड़ में केंद्र सरकार ने एक हफ्ते के भीतर 18 फरवरी को पूरी जाँच सीबीआई को सौंप दी और सीबीआई ने उसी दिन सक्रिय होकर राज्यसरकार की जाँच एजेंसियों को मामले से अलग कर दिया। जनसंघ के अनुसार सीबीआई का पहले दिन से ही मोटिव था कि इस घटना के राजनैतिक पहलू को जाच के दायरे से बाहर निकाल देना।
सीबीआई ने अपनी जाँच के बाद दो स्थानीय आदतन चोरों भरत और रामआसरे पर हत्या और चोरी का मामला बनाया।चोरी का सामान खरीदने, साक्ष्य छुपाने वगैरह के मामले में ललता कलवार, भल्लू, मोती, अब्दुल अजीज और इंदू नामक महिला के खिलाफ भी अलग चाजर्शीट की गयी। एक लाइन में कहानी यह बनी कि कूपे में चोरी के इरादे से घुसे दोनों चोरों से पंडित जी की बहस हुई, पुलिस को बुलाने की धमकी के कारण चोरों ने उन्हें ट्रेन से फेक दिया। 8अक्तूबर,1968 से 9 मई ,1969 तक चले मुकदमे में 133 गवाहियों के बाद दोनों को स्पेशल सेशन जज बनारस श्री मुरलीधर ने हत्या के आरोप से मुक्त करते हुए सिर्फ भरत को चोरी का आरोपी माना और उसे चार साल की सजा दी।
बावजूद इसके कि चोर गिरोह के पास से स्थानीय पुलिस द्वारा बरामद सामानों के पंडित जी का ही होने की शिनाख्त जनसंघ की ओर से नानाजी देशमुख, श्रीमती लता खन्ना,श्रीमती सरला रानी ने की थी। इस पूरी कहानी में ट्रेन के भीतर और बाहर के किरदारों में बहुत से विरोधाभास थे। फोरेंसिक सबूत कुछ और ही कहानी कह रहे थे। फैसले में जज ने लिखा, "पंडित दीनदयाल के हत्या के संबंध में सचाई का पता लगाना अभी बाकी है।"
22 जून, 1969 को कांग्रेस,जनसंघ, प्रसोपा, संसोपा,भाक्रांद,द्रमुक तथा निर्दलीयों सहित कुल 72 दिग्गज सांसदों ने एक संयुक्त वक्तव्य जारी करके कहा,' देश के एक बड़े नेता की हत्या को सदा के लिए एक रहस्य बने रहने देना हमारी स्वतंत्रता तथा जनतंत्र की दृष्टि से बड़ी गंभीर बात है। हम मांग करते हैं कि एक ऐसा न्यायिक जांच आयोग गठित किया जाये, जिसे पुनः नये सिरे से खोज करने का भी अधिकार हो।'
और आज भी 50 साल के उस करिश्माई नेता की हत्या का रहस्य बरकरार है जिसकी बनाई पार्टी ने आगे चलकर आज की भाजपा का रूप लिया। जिसका देश भर में इतना बड़ा बहुमत है कि वह उस स्टेशन मुगलसराय का नाम उस व्यक्तित्व के नाम पर बदल देना चाहती है जिसकी पटरियों पर उसकी लाश आठ घंटे तक लावारिस पड़ी थी। ...हो सकता है कल को पठानकोट एक्सप्रेस का भी नाम बदला जाऐ जिसके कूपे में उनकी हत्या हुई थी।
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