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व्यंग्य:देश में दलितोत्स्व का अरण्यरोदन

वीथिका            Jun 23, 2017


राकेश अचल।
ये न हास्य है और न व्यंग्य,ये सियासी लेख भी नहीं है, इसे ग्राउंड रिपोर्ट की तरह भी मत पढ़िए,ये दरअसल देश में हो रहे दलितोत्स्व का अरण्य रोदन है। दुनिया मंगल पर पहुँच गयी। हम भी पीछे नहीं है लेकिन हमने आज भी दलितोत्स्व मानना नहीं छोड़ा। अब हम राष्ट्रपति चुनाव के बहाने दलितोत्स्व मना रहे हैं।

दलितोत्स्व आखिर है क्या ? ये सहज और अछूत प्रश्न आप कर सकते हैं.ऐसा करने से आपको कोई रोक नहीं सकता। रोकना भी नहीं चाहिए,आखिर हमारे देश में लोकतंत्र है! वैसे अब प्रश्न करना देशद्रोह की श्रेणी में आता है लेकिन दलितोत्स्व और उससे जुड़े प्रश्न देशद्रोह की श्रेणी से बाहर रखे गए हैं, इसलिए आप प्रश्न कर सकते हैं की आखिर ये दलितोत्स्व क्या है ?इस प्रश्न का सही जबाब आपको गूगल-डूगल पर भी नहीं मिलेगा। ऐसे टेढ़े यानि वक्री प्रश्न का उत्तर केवल हम जैसे खिसके हुए लेखक ही दे सकते हैं, इसलिए निश्चिन्त होकर आप पूछ ही लीजिये, हम सब कुछ तफ्सील से बता देंगे।

हाँ ! तो आप पूछ रहे थे कि ये दलितोत्स्व क्या है? जबाब बड़ा सीधा और दलित है कि,ये दलितोत्स्व दलित को देश के सबसे बड़े पद पर बैठाने का ठठकर्म है। देश के दलितों को जब भी झांसा देना होता है ऐसा ही दलितोत्स्व मनाया जाता है। बीते सत्तर साल से ये मनाया जाता है,और आज भी मनाया जा रहा है। हमारी सरकार भले ही पुरानी सरकार को कोसती हो लेकिन इस मामले में अनुशरण पुरानी सरकार का ही करती है ।मजबूरी है मौजूदा सरकार की। नकल न करे तो क्या करे? कोई ख़ास तजुर्बा तो है नहीं सरकार चलाने का? इसलिए नकल सबसे बेहतर और सुरक्षित रास्ता है।

देश के दलितों के लिए खुश खबरी है कि वे राष्ट्रपति चुनाव के बहाने देश का सबसे बढ़िया दलित चुनकर खुद को राष्ट्रपति पद पर बैठा हुआ मान सकते हैं। देश में कोई भी सरकार रही हो उसने देश के दलितों से अनुभूति का सुख कभी नहीं छीना। आज भी ये विशेषाधिकार बरकरार है। सरकारी पार्टी ने किन्ही रामनाथ कोविद को राष्ट्रपति पद के लिए अपना उम्मीदवार बनाया तो गैर सरकारी पार्टियों ने भी सुश्री मीरा कुमार को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बना दिया मीरा जी भी कोविद की तरह दलित हैं किन्तु उनके सामने कोविद होने का संकट नहीं है।
लोकसभा अध्यक्ष रह चुकने के कारण वे सर्वविद हैं।

यानि भारत के लोग ही नहीं दुनिया के लीग उन्हें जानते हैं।वैसे भी उनके पिताश्री स्वर्गीय बाबू जगजीवन राम तीन दशक तक देश के अखंड दलित नेता रहे और देश ने उन्हें भी उप प्रधानमंत्री बना कर एक दलितोत्स्व मनाया है।

देश के इस सर्वोच्च पद पर दलित पहले भी बैठ चुके हैं। लोकसभा अध्यक्ष के पद पर भी उनकी ताजपोशी हो चुकी है लेकिन दुर्भाग्य ये की देश के दलित आज भी दलित ही हैं। मुझे तो लगता है कि इतने दलितोत्स्व मनाने के बाद भी दलित केवल दलित नहीं बल्कि पद दलित हो गए हैं। उन्हें हरिजन बनाने वाले बापू को बनिया बताया जा चुका है। बापू के दलितोत्स्व के बाद भी लोग थक नहीं रहे,रोज दलितोत्स्व मना रहे हैं,ताकि दलित मानते रहें कि देश उनकी उपेक्षा नहीं कर रहा।

सवाल ये है कि देश या और कोई दलितों की उपेक्षा करेगा भी क्यों ?जिसे देश चलना है उसे दलितों का साथ चाहिए। दलितों को साथ लिए बिना देश चल ही नहीं सकता। कांग्रेस को तो ये मूल मन्त्र ज्ञात था ही अब भाजपा ने भी इस मूल मन्त्र की मूल पकड़ ली है और बनियों की पार्टी होते हुए भी कोविंद जैसे महादलित को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया। दलितों को सरकारी पार्टी का अहसान मानना चाहिए,अन्यथा सरकारी पार्टी में एक से बढ़कर एक महारती नहीं, महारथी इस पद के लिए योग्य उम्मीदवार बैठे थे? अब सबके सब घर बैठे हैं,उनकी उम्मीदों पर पानी फिर चुका है। मुमकिन है की वे अपने आपको सिर्फ इसलिए कोस रहे हों की वे दलित क्यों न हुए ?

बहरहाल कांग्रेस समेत दूसरी गैरसरकारी पार्टियों ने भी एक दलित महिला को राष्ट्रपति का उम्मीदवार बना कर दिखा दिया की दलितों से प्रेम करने में वो भी किसी से पीछे नहीं बल्कि आगे है। अब देश को तय करना है की वो कौन सा दलित चुने? कोविंद या सर्वविद? चूंकि हमारा तो इस दलितोत्स्व से कोई लेना-देना है नहीं इसलिए हम केवल तमाशबीन की हैसियत से इसका आनंद ले रहे हैं। असली आनंद तो उनको लेना है जिनके पास इस दलितोत्स्व में शामिल होने का बाकायदा निमंत्रण पत्र है।

देश के दलितों के लिए ये ऐतिहासिक अवसर है क्योंकि ये श्रेष्ठ दलित के चुनाव का अवसर है।इससे पहले जब एक अन्य दलित के आर नारायण को इस सर्वोच्च पद के लिए चुना गया था तब विपक्ष ने उनके खिलाफ एक गैर दलित को अपना उम्मीदवार बनाया था। अबकी दोनों तरफ दलित ही दलित हैं। जाहिर है की देश की सियासत भी आज तक दलित है। जातिवाद से ऊपर उठ ही नहीं पायी। उठती भी कैसे ?उठना भी नहीं चाहिए.यदि हम या हमारा देश जातिवाद से ऊपर उठ गया तो फिर जातियों का,दलितों का राजपूतों का ब्राम्हणों का क्या होगा? सबका धंधा मारा जाएगा भाई?

बेहतर हो कि हम देश में मनाये जा रहे इस दलितोत्स्व में शामिल हों। मन्त्र जाप करें,आहुतियां दें और इस महा दलितोत्स्व को कामयाब बनायें। कामयाब इसलिए क्योंकि यदि ये दलितोत्स्व फ्लॉप हो गया तो देश की सियासत फ्लॉप हो जाएगी,नेता फ्लॉप हो जायेंगे। देश का भविष्य फ्लॉप हो जाएगा और ऐसा किसी भी सूरत में होना नहीं चाहिए। दलितोत्स्व में आप -:ॐ दलिताय नम:मन्त्र की 108 मालाएं फेर कर अपना योगदान कर सकते हैं। ॐ दलिताय स्वः:का उच्चारण कर 108 आहुतियां देकर अपना दलित प्रेम दर्शा सकते हैं। देश बीते सत्तर साल से यही तो करता आ रहा है भाई !

मुमकिन है कि इस दलितोत्स्व के बाद देश में लम्बे समय तक कोई दलितोत्स्व न हो.आने वाली सरकारें इसे कुछ समय के लिए मुल्तबी कर दें। क्योंकि उनके सामने मुमकिन है की दलितोत्थान से बड़ा कोई मुद्दा आ जाये जैसे राम मंदिर बनाना है कि नहीं बनाना? कश्मीर को आमिर बनाना है कि नहीं बनाना,राष्ट्रवाद चलना है कि नहीं चलना। इसलिए चूकिए मत! देश के लिए श्रेष्ठ दलित चुनिए,शायद इसी से देश के दलितों का उत्थान हो जाये।

हालाँकि इससे पहले तो हुआ नहीं, जो दलित चुने गए उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। देखते तो दलित ही दलित दिखाई देते। भूखे-नंगे दलित। अगर ये ही न रहे तो देश आखिर भविष्य में अपना दलित प्रेम कैसे उजागर करेगा। दलित तो सबको चाहिए,हर हाल में चाहिए। आपकी आत्मा या अंतरात्मा इस मामले में चाहे कुछ भी कहती रहे उसकी सुनना मत।

 



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