ऋतुपर्ण दवे।
वो शख्सियत जो अन्जानों से भी यूं गले मिले जैसे कोई अपना अजीज हो। किरदार यूं निभाए कि मानो हकीकत हो। थिएटर से लेकर पर्दे तक बालीवुड से लेकर हॉलीवुड, यहां तक कि समानान्तर फिल्मों से व्यावसायिक फिल्मों तक में, धाकदार अभिनय कर देश-विदेश में अपनी काबिलियत का लोहा मनवाया। उस महान अभिनेता ओमपुरी का एकाएक यूं चले जाना सबको हतप्रभ गया। शायद इसलिए भी कि मृत्यु को लेकर उन्होंने जो कहा था, सत्य हो गया! कितना अजीब संयोग था, मानो उन्हें अपनी मौत की खबर थी और जैसी जिन्दगी चाही वैसी जी। हां, मौत भी वही मिली जिसकी उन्होंने कामना की थी। वो मौत से नहीं बीमारी से डरते थे।
मार्च 2015 में उन्होंने छत्तीसगढ़ में बीबीसी के लिए एक साक्षात्कार में वरिष्ठ पत्रकार आलोक पुतुल से कहा था –“ मृत्यु का भय नहीं होता, बीमारी का भय होता है। जब हम देखते हैं कि लोग लाचार हो जाते हैं, बीमारी की वजह से, दूसरों पर निर्भर हो जाते हैं। उससे डर लगता है। मृत्यु से डर नहीं लगता। मृत्यु का तो आपको पता भी नहीं चलेगा। सोए-सोए चल देंगे। (मेरे निधन के बारे में) आपको पता चलेगा कि ओम पुरी का कल सुबह 7 बजकर 22 मिनट पर निधन हो गया।” यह वाकई सच हो गया। उन्होंने मृत्यु पूर्व संध्या पर अपने बेटे इशान्त को भी फोन किया और कहा कि मिलना चाहते हैं। अफसोस सुबह हुई कि वो जा चुके थे। घर पर अकेले थे न किसी सेवक को मौका दिया न किसी की मदद का इंतजार। बिस्तर पर बेजान शरीर और पीछे बस यादें ही यादें।
ऐसे भावुक इन्सान थे ओमपुरी। जिन्होंने खुद को उस दौर में फिल्मों में स्थापित किया, जब सफलता के लिए सुन्दर चेहरों का बोलबाला था। साफ और सीधा कहें तो बदशक्ल सूरत की भी धाक जिसने मंच से लेकर बड़े और छोटे पर्दे पर जमाकर न जाने कितनों को प्रेरित किया, मौका दिया, जिन्दगी बदल दी, कहां से कहां पहुंचा दिया खुद उनको भी नहीं पता होगा। ऐसे बेमिशाल ओमपुरी का जन्म 8 अक्टूबर 1950 को हरियाणा के अम्बाला में हुआ था। पुणे की फिल्म एण्ड टेलीविजन इंस्टीट्यू (एफटीटीआई) से उन्होंने प्रशिक्षण लिया। फिल्मी अभिनय की शुरुआत मराठी फिल्म ‘घासीराम कोतवाल’ से की। विजय तंदुलकर के मराठी नाटक पर यह फिल्म बनी थी। फिल्म का निर्देशन के. हरिहरन और मनी कौल ने किया था। मजेदार बात यह है कि फिल्म एफटीटीआई के 16 छात्रों के सहयोग से बनी थी और बेहतरीन काम के लिए एक्टर को मूंगफली दी गई।
पद्मश्री सम्मान, बेस्ट एक्टर सम्मान सहित तमाम पुरुस्कारों, सम्मानों से सम्मानित ओमपुरी एक जिन्दा दिल और भावुक इन्सान थे। उनके चाहने वाले और फिल्म इण्डस्ट्री के सहयोगी, मित्र इस शख्सियत को मिले सम्मानों और पुरुस्कारों को ऐसी प्रतिभा के लिए नाकाफी मानते हैं। उनके प्रशंसकों का मानना है कि ओमपुरी, सम्मानों से कहीं आगे थे। पाकिस्तान में भी वहां के लोग और फिल्म इण्डस्ट्री उनकी मौत से अहत है, सदमें में है। कोई उन्हें लीजेण्ड बता रहा है तो कोई भारत-पाक रिश्तों का सच्चा एम्बेसेडर तो कोई दोनों के लिए शांति दूत। बहुत सी फिल्मों में ओमपुरी ने पाकिस्तानी किरदार की भूमिका भी निभाई है।
ओमपुरी अपने आप में एक सम्पूर्ण अभिनेता थे। उन्होंने हर वो अभिनय किया जो उन्हें पसंद आया। चरित्र अभिनेता से लेकर खलनायक और कॉमेडियन की भूमिका को वो बखूबी निभाया कि एक दौर वो भी आया कि उन्हें ये भेद कर पाना भी मुश्किल होने लगा कि उन्हें किस तरह की श्रेणी में रखा जाए। ओमपुरी ने ब्रिटेन और अमेरिका की फिल्मों में भी बेहतरीन अभिनय किया है। वो अपने अभिनय के हर रोल की बड़ी ईमानदारी और समर्पण से एकदम जीवंत सा जीते थे। चाहे रिचर्ड एटनबरो की चर्चित फिल्म ‘गांधी’ में छोटी सी भूमिका हो या ‘अर्धसत्य’ में पुलिस इंसपेक्टर का दमदार किरदार रहा हो। टेलीविजन की दुनिया में भी वो हमेशा दमदार अभिनय में नजर आए चाहे भारत एक खोज, यात्रा, मिस्टर योगी, कक्काजी कहिन, सी हॉक्स और अंतारल, तमस और आहट रहा हो।
उनकी काबिलियत का सभी ने लोहा माना। कलात्मक फिल्मों में भी उनका कोई सानी नहीं रहा। उन्होंने 300 फिल्मों में काम किया। जिनमें कई बेहद सफल और चर्चित रहीं। अर्धसत्य, आक्रोश, माचिस, चाची 420, जाने भी दो यारों, मकबूल, नरसिम्हा, घायल, बिल्लू, चोर मचाए शोर, मालामाल और जंगल बुक में भला ओमपुरी का किरदार किसे याद न होगा? सनी देओल की घायल रिटर्न्स उनकी आखिरी फिल्म थी। उन्होंने लगभग 300 फिल्मों में काम किया। यह भी सच है कि इस बेहद सजग और संजीदा कलाकार की निजी जिन्दगी बेहद खामोश थी।
1993 में उन्होंने नंदिता से शादी की थी लेकिन 2013 में तलाक हो गया। उनका एक बेटा ईशान है। निश्चित रूप से अभिनय के हर क्षेत्र में अपना लोहा मनवाने वाले ओमपुरी ने जो भी काम किया बेहद ईमानदारी से और यही संदेश भी दिया। भले ही वो आज हमारे बीच नहीं है लेकिन रामलीला मैदान में अन्ना के समर्थन का मौका हो या सरहद पर दिए बयान के बाद माफी मांगना हो या फिर भारत-पाकिस्तान के 95 प्रतिशत लोगों को धर्म निरपेक्ष कहना हो, आमिर खान की पत्नी के देश छोड़ने की बात पर लताड़ हो, बीफ मसले पर लाखों डॉलर कमाने और पाखण्ड से जोड़ने की बात हो, नक्सलियों का फाइटर कहने जैसी बातें एक दमदार और काबिल इंसान ही कह सकता है। ऐसी शख्सियत को न भूल पाना नामुमकिन है। सभी किरदारों को एकसाथ देखना, समझना, सीखना और स्वीकारना ही ओमपुरी को असली श्रध्दांजलि होगी।
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