मल्हार मीडिया भोपाल।
मुख्य आयकर अधिकारी आर के पालीवाल की 12 वीं किताब "कस्तूरबा " और " गांधी की चार्जशीट प्रकाशित होकर आ गई है। जिसका लोकार्पण 24 अप्रैल को मुंबई में होगा।
श्री पालीवाल के अनुसार "कस्तूरबा " और " गांधी की चार्जशीट " नाटक अब एक पुस्तक के रूप में इस नई किताब के साथ किताबों की संख्या एक दर्जन हो गई।
उन्होंने अपने फेसबुक पेज पर लिखा, कुछ मित्रों ने दो नाटकों की मेरी नई किताब की पृष्ठभूमि के बारे में जिज्ञासा व्यक्त की है। वैसे तो किताब पढ़कर ही यह ठीक से जाना जा सकता है लेकिन संक्षिप्त में इन दो नाटकों की पृष्ठभूमि यह है -
"कस्तूरबा" और "गांधी की चार्जशीट" मेरे दो शोधपरक नाटक हैं जो गहन शोध के बाद क्रमशः कस्तूरबा गांधी और महात्मा गांधी को केंद्र में रखकर लिखे गए हैं।
"कस्तूरबा" नाटक का परिवेश भारत के स्वाधीनता संग्राम के निर्णायक दौर का है, जिस समय 1942 मे महात्मा गांधी ने "करो या मरो" और "अंग्रेजों भारत छोड़ो" नारे के साथ बड़ा आंदोलन शुरू किया था।
इस आंदोलन को कुचलने के लिए अंग्रेजों ने देश भर में दमन चक्र चलाकर गांधी और कस्तूरबा को अनिश्चित काल के लिए नजरबंद कर दिया था और आजादी के आंदोलन के लगभग सभी बड़े नेताओं को जेलों में ठूंस दिया था।
नजरबंदी के दौरान कस्तूरबा एक तरफ गम्भीर बीमारी से जूझ रही थी और दूसरी तरफ महादेव देसाई की असमय मृत्यु और बड़े बेटे हरिलाल के गलत पथ पर भटकने से। नाटक में कस्तूरबा की मनःस्थिति का चित्रण है।
"गांधी की चार्जशीट" नाटक में उन सभी मुद्दों पर रौशनी डाली है जिनको लेकर गांधी के विरोधी जब तब तरह तरह के आरोप लगाते रहते हैं। इन तमाम संवेदनशील मुद्दों को तार्किक ढंग से एक जीवंत मुकदमे के माध्यम से चित्रित किया है।
"कस्तूरबा" और "गांधी की चार्जशीट" मेरे दो शोधपरक नाटक हैं जो गहन शोध के बाद क्रमशः कस्तूरबा गांधी और महात्मा गांधी को केंद्र में रखकर लिखे गए हैं।
"कस्तूरबा" नाटक का परिवेश भारत के स्वाधीनता संग्राम के निर्णायक दौर का है, जिस समय 1942 मे महात्मा गांधी ने "करो या मरो" और "अंग्रेजों भारत छोड़ो" नारे के साथ बड़ा आंदोलन शुरू किया था।
इस आंदोलन को कुचलने के लिए अंग्रेजों ने देश भर में दमन चक्र चलाकर गांधी और कस्तूरबा को अनिश्चित काल के लिए नजरबंद कर दिया था और आजादी के आंदोलन के लगभग सभी बड़े नेताओं को जेलों में ठूंस दिया था।
नजरबंदी के दौरान कस्तूरबा एक तरफ गम्भीर बीमारी से जूझ रही थी और दूसरी तरफ महादेव देसाई की असमय मृत्यु और बड़े बेटे हरिलाल के गलत पथ पर भटकने से। नाटक में कस्तूरबा की मनःस्थिति का चित्रण है।
"गांधी की चार्जशीट" नाटक में उन सभी मुद्दों पर रौशनी डाली है जिनको लेकर गांधी के विरोधी जब तब तरह तरह के आरोप लगाते रहते हैं। इन तमाम संवेदनशील मुद्दों को तार्किक ढंग से एक जीवंत मुकदमे के माध्यम से चित्रित किया है।
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