मल्हार मीडिया ब्यूरो मुंबई।
वर्दी वाला गुंडा, इंटरनेशनल खिलाड़ी, सबसे बड़ा खिलाड़ी समेत कई फिल्मों के लेखक रहे वेदप्रकाश शर्मा (62) का शुक्रवार रात करीब 12 बजे उनके शास्त्रीनगर के-ब्लॉक स्थित आवास पर निधन हो गया। उनके निधन से साहित्य जगत में शोक की लहर छा गई। 6 जून 1955 को जन्मे वेदप्रकाश शर्मा हिन्दी के लोकप्रिय लेखक,उपन्यासकार रहे। वर्दी वाला गुंडा उनका सफलतम थ्रिलर उपन्यास है। इस उपन्यास की लगभग 8 करोड़ प्रतियां बिक चुकी हैं।
वेदप्रकाश के पिता पं. मिश्रीलाल शर्मा मूलत: मुजफ्फरनगर के बिहरा गांव के रहने वाले थे। परिजनों के मुताबिक, 62 वर्षीय वेदप्रकाश लंबे समय से कैंसर से पीड़ित थे। मुंबई स्थित हॉस्पिटल में उनका इलाज चल रहा था। पिछले करीब डेढ़ माह से वह घर पर ही थे। शुक्रवार रात करीब 12 बजे उनका निधन हो गया। जीवन और समाज को करीब से देखने वाले वेदप्रकाश की तीन बेटियां करिश्मा, गरिमा और खुशबू और उपन्यासकार बेटा शगुन शादीशुदा हैं। वेदप्रकाश तुलसी पॉकेट बुक्स के मालिक भी थे।
खास बातें
पहली कहानी 1971 में ‘पेनों की जेल’ स्कूल मैग्जीन में प्रकाशित हुई। वे उस पत्रिका के छात्र संपादक बनाए गए थे।
हाईस्कूल में पढ़ रहे थे, तभी 1972 में पहला उपन्यास ‘सीक्रेट फाइल’ छपा, लेकिन बतौर लेखक वेदप्रकाश काम्बोज का नाम छपा।
फिल्म ‘वर्दी वाला गुंडा’ के पहले संस्करण की 15 लाख प्रतियां छापी गईं। बाद के संस्करणों की प्रतियों की गिनती नहीं रखी गई।
साल में दो-तीन नॉवेल लिखते थे और पहली बार में 1.5 लाख कॉपी छपती थी।
जब लिखने बैठते थे, तो करीब आठ घंटे तक लगातार लिखते थे। इस बीच न खाते-पीते और न किसी से बातचीत करते थे।
1972 में हाईस्कूल का पेपर देने के बाद गर्मी की छुट्टियों में वेदप्रकाश शर्मा को उनके अपने पैतृक गांव बिहरा भेज दिया गया। वे अपने साथ कोई एक दर्जन उपन्यास ले गए थे लेकिन दो घंटे में एक नॉवेल पढ़ डालने वाले वेदप्रकाश का वहां न कोई दोस्त था और न कोई फ्रेंड सर्कल। उन्होंने वहां लिखना शुरू किया और लिखते-लिखते एक कॉपी, दो कॉपी, कई कॉपी भर गईं। मेरठ पहुंचने पर यह बात उनके पिता को मालूम हुई। वे शाम को घर आए और पिटाईकर दी। मां ने पिटाई की वजह पूछी तो जवाब था ‘अब तक तो पढ़ै था, अब इसनै लिख दिया, यह लड़का तो बिगड़ गया’। हालांकि पिता ने जब वेदप्रकाश की कॉपी देखी तो वह भी हैरत में रह गए। इसके बाद धीरे-धीरे वेद प्रकाश शर्मा उपन्यास लिखने लगे और अब तक दो सौ से ज्यादा उपन्यास लिख चुके थे। कई फिल्मों और सीरियलों के लिए भी उन्होंने लेखन किया।
6 जून, 1955 को मेरठ में जन्मे वेदप्रकाश शर्मा के पिता पं. मिश्रीलाल शर्मा मूलत: मुजफ्फरनगर जिले के बिहरा गांव के रहने वाले थे। वेदप्रकाश एक बहन और सात भाइयों में सबसे छोटे हैं। एक भाई और बहन को छोड़कर सबकी मौत चुकी है। 1962 में बड़े भाई की मौत हुई और उसी साल इतनी बारिश हुई कि किराए का मकान टूट गया। फिर गैंगरीन की वजह से पिता की एक टांग काटनी पड़ी। घर में कोई कमाने वाला नहीं था, सारी जिम्मेदारी मां पर आ गई।
भारत में लोकप्रिय थ्रिलर उपन्यासों की दुनिया में ‘वर्दी वाला गुंडा’ क्लासिक का दर्जा रखता है। इस उपन्यास की देशभर में करीब आठ करोड़ प्रतियां बिकी थीं। उनके सौंवे नॉवेल ‘कैदी नंबर-100’ की ढाई लाख प्रतियां छपी थीं। माधुरी, जंग बहादुर, ज्योति प्रकाशन उनके लिखे उपन्यास छापते थे। 1985 में वेदप्रकाश ने खुद अपना प्रकाशन शुरू किया ‘तुलसी पॉकेट बुक्स’, उनके 176 उन्यासों में से 70 इसी ने छापे हैं।
उन्हें सबसे ज्यादा लोकप्रियता 1993 में वर्दी वाला गुंडा से मिली। 1985 में उनके उपन्यास ‘बहू मांगे इंसाफ’ पर शशिलाल नायर के निर्देशन में ‘बहू की आवाज’ फिल्म बनी। इसके दस साल बाद सबसे बड़ा खिलाड़ी (उपन्यास ‘लिल्लू’) और 1999 में इंटरनेशनल खिलाड़ी बनी। इतना ही नहीं उन्होंने बाद की दो फिल्मों का स्क्रीन प्ले और डायलॉग खुद लिखे, लेकिन सिर्फ फिल्म के लिए कोई कहानी कभी नहीं लिखी।
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