ऋचा अनुरागी।
बहुत प्यारा, बहुत प्यार करने वाला , हर ख्वाहिश पूरी करने वाला वह मेरा प्यारा सांता। सफेद दुधिया दाढ़ी, मुस्कान बिखेरते हुये गाते-झूमते प्यारे सांता। सचमुच मैंने बहुत करीब से देखा है सांता को। जिनका नाम श्री राजेन्द्र अनुरागी है। किसी को अपने हाथों से पेन में नगीना सजा कर देते ,किसी को भोज पत्र पर आशीष वचन लिख देते,अपने हाथों से मुंह में निवाला खिला देते, तो कभी कुर्ते की जेबों से छूमंतर कर टाँफी निकलने लगती। कोई तो आज भी उनके पान का रसास्वाद याद कर रहे हैं तो कोई उनकी बारीक-महीन सुपाड़ी की याद ताजा कर रहा है। सबकी यादों में आज भी अपने-अपने अनुरागी हैं।
अभी हाल ही में आदरणीय कैलाश पंत अंकल से मुलाकात हुई। उनके साथ साहित्यकार प्रो. रमेश दवे, साहित्यकार रमेश शाह,और भी विशिष्ट जन मौजूद थे। अचानक मुझे देख सबको श्री राजेन्द्र अनुरागी जी याद आ गये। पंत जी बोले भाई अनुरागी जी क्या महान शख्सियत थे, पूरे के पूरे प्यार ही प्यार। सर से पांव तक बस प्यार से भरे हुए और कुछ नहीं। कभी उनके मुंह से किसी की बुराई तो सुनी ही नहीं। तभी पंत अंकल ने सरोता- सुपारी निकाली तो किसी ने कहा- अनुरागी जी के हाथों से लगा कपूरी पान और उनकी जैसी महीन सुपारी तो फिर कभी देखी ही नहीं। छोटी सी सरोती से महीन सुपारी काटते उसमें लोंग के भी बारीक टुकडे करते ,इलायची के दाने और फिर पीपरमेंट डाल कर हथेली पर मल कर सबके सामने हथेली बढा देते ।सब ही उनके और अपने बारे में बतिया रहे थे ,तभी अवस्थी जी ने उनकी एक गज़ल सुनाई जो मुझे कतई याद नहीं थी .......
वे वहाँ नदी-तट पर
-----------------------------
शाम को ग़ज़ल कहते, सुबह भूल जाते हैं।
हम कहाँ मुहतसिब के दायरों में आते हैं।
अंजुमन गमकती है, फूल महमहाते हैं
संदली चरन उनके, जब यहाँ को आते हैं।
रोम-रोम राधा-सी, बेकली का आलम है
वे नदी - तट पर, पर बाँसुरी बजाते हैं।
साँस-साँस जीते हैं, मसलहतन लुटाते हैं
साहिबों की महफिल में, हम कहां सुनाते हैं।
अभी तक सही सब था क्या हुआ, नहीं मालूम
हम भी मुसकुराते हैं, वे भी मुस्कुराते हैं।
इस तरह समाई है, जिन्दगी दरख्तों में
रात सुन - सपाटों में, पेड़ गीत गाते हैं ।
आपने तो पी ली है, और हम पीये-से हैं
जाइये खुदा हाफिज़, और हम भी जाते हैं।
बिन पिये बहकते हैं, पी के होश आते हैं
ये वो मय है 'अनुरागी' खुद सनम पिलाते हैं।
तभी किसी ने कहा- हम सब ने यह 'अनुरागी' मय छककर पी है और उसे भूल पाना नामुमकिन है। यह सब जिस कार्यक्रम के लिए आये थे उसके बाद चाय की चुस्कियों के साथ 'याद—ए—अनुरागी ' कार्यक्रम शुरु था ,और विशेष बात यह थी,इस याद—ए—अनुरागी की शुरुआत करने वाली मल्हार मीडिया की संस्थापक ममता यादव और इसे कलम का अमलीजामा पहनाने वाली ऋचा अनुरागी यानी मैं दोनों ही वहाँ मौजूद थे और अपने इस यादें अनुरागी कालम से ,धरातल पर रू-बरू हो रहे थे। तभी पापा के किसी मित्र ने कवि श्री श्याम बिहारी सक्सेना का नाम लेकर कहा--क्रिसमस की तैयारी चल रहीं हैं और श्याम बिहारी जी अनुरागी जी के बारे में कह रहे थे--"अनुरागी जी का व्यक्तित्व बहुत आकर्षक था। सधे हुए बाल,घनीभूत दाढ़ी, लम्बी सी नाक, दिल में, जुबां पर ढ़ेर सा प्यार और अधरों पर स्थाई मुस्कान को उनकी डाढ़ी-मूंछें भी छुपा नहीं पाती थी। लम्बा सा कुर्ता और सघुड़ तरीके से पहनी धोती में ठुमुक-ठुमुक चलते। अनुरागी जी अभिवादन स्वीकारते हुए मंचासीन होते तक सबका मनमोह लेते।"मुझे श्याम जी की बातें और दादा अनुरागी की स्मृति को याद करते हुए लग रहा है कि सचमुच वे हमारे हिन्दुस्तानी सांता ही थे। उनके घर से कभी कोई खाली नहीं लौटा था। जब जाओ भरपूर मेहमान नवाजी, जो जिस काम के लिए गया सब पूरा। सबकी बातें सुनते हुए मैं वहाँ से लौट तो आई पर मुझे मेरा प्यारा सांता बहुत याद आने लगा और इस बार .....
मोजे नहीं कुर्ते की जेबें लटका दी हैं
दरवाजे पर
सिर्फ अपने लिए नहीं, सबके लिए
आशायें भर दी हैं
मेरा प्यारा अनुरागी सांता आएगा
जरुर आएगा
हमेशा की तरह प्यार ,प्यार प्यार
की सौगात दे जाऐंगे।
Comments