आज़ादी के इतने बरस बाद भी भारत में लोग भाषा और प्रदेश के नाम से जाने जा रहे हैं

खरी-खरी            Oct 13, 2018


राकेश दुबे।
यह कितनी बुरी बात है कि आज़ादी के इतने बरस बाद भी भारत में लोग भाषा और प्रदेश के नाम से जाने जा रहे हैं। भारतीय होने से पहले लोगों को उनकी भाषा और रहन—सहन से पहचान देकर यहाँ से वहां खदेड़ा जाता है। केंद्र सरकार मौन है और उसके सामने ताल ठोंक, प्रतिपक्ष इसी भावना को हवा दे रहा है। उसका उद्देश्य सरकार बदलना है, पर जो रक्त बीज वो बो रहा है उसकी फसल कैसी होगी सब जानते हैं ?

भाषावाद और क्षेत्रवाद की जिस आग को हवा दी जा रही है, उसमे एक सहज सवाल उठता है कि ऐसे में मध्यप्रदेश कहाँ रहेगा ? जिसमें हर भाषा भाषी और हर क्षेत्र के लोग है। भाषाओँ के इस गुलदस्ते के साथ यह समस्या है कि वो अपनी पहचान किस भाषा या प्रान्त से जोड़े।


बहुत लंबे समय से उत्तर प्रदेश और बिहार के मूल निवासियों पर देश के अलग-अलग भागों में हमले हो रहे हैं।असम के तिनसुकिया इलाके में २०१५ में संदिग्ध उल्फा आतंकवादियों के हाथों एक हिंदी-भाषी व्यापारी और उसकी बेटी की हत्या कर दी गयी थी। यह शुरुआत थी।

दरअसल, जब भी किसी को अपनी ताकत दिखानी होती है, वह निर्दोष हिंदी भाषियों को ही निशाना बनाने लगता है। यह देश के संघीय ढांचे को ललकराने के समान है। यह स्थिति हर हालत में रुकनी ही चाहिए। इसे न रोका गया, तो देश बिखराव की तरफ बढ़ेगा।

गुजरात में अभी जो हिंसा हो रही है, उसमें हिंदी भाषी लोगों के साथ असमिया, मणिपुरी, उड़िया और बंगाली भी पिट रहे है। महाराष्ट्र में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के नेता और उसके कार्यकर्ता उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों के साथ कभी भी मार-पीट करने से बाज नहीं आते। वे इन प्रदेशों के नागरिकों को ‘बाहरी’ कहते हैं।

यह प्रमाणित तथ्य है कि सिर्फ समावेशी समाज ही आगे बढ़ते हैं, अमेरिका इसका उदाहरण है। इस मामले में पूरा विश्व अमेरिका को अपना आदर्श मानता है। उसकी यह स्थिति इसलिए बनी, क्योंकि वहां पर सबके लिए आगे बढ़ने के समान अवसर हैं। वहां पर दुनिया के कोने-कोने से लोग आकर बसते हैं और अमेरिकी हो जाते हैं। हम भारत में पैदा होकर भी भारतीय होने से पहले कुछ और होते हैं, ऐसा क्यों हैं ?

जो लोग इस मामले को किसी क्षेत्र विशेष के लोगों से जोड़कर देख रहे हैं, वे अपनी संकीर्ण मानसिकता का ही परिचय दे रहे हैं। ये देश ‘हम’ और ‘तुम’ के हिसाब से नहीं चलेगा। अगर इस तरह से कोई चलाने की मंशा रखता है, तो उसे हम सबको नकारना चाहिए। किसी के साथ भारत में कहीं भी उसकी जाति, धर्म, रंग आदि के आधार पर भेदभाव किया जाना असहनीय है।

हिंदी भाषियों के साथ जो हो रहा है, इस मानसिकता पर तुरंत रोक लगाना जरूरी है। देश को कानून के रास्ते से नहीं चलाया गया, तो अराजकता की स्थिति पैदा हो जायेगी।

यह देश सबका है, यहां के संसाधन हर भारतीय के हैं। साथ ही मध्यप्रदेश जैसा राज्य जो विभिन्न भाषाओं का गुलदस्ता है को अपने यहाँ रोजगार के वृद्धि करना चाहिए जिससे उसके युवा किसी अन्य राज्य में नौकरी के लिये न भटके। घुन की तरह मध्यप्रदेश के युवा हर बार पिसते हैं।

हाल की हिंसा से गुजरात का हजारों करोड़ का नुकसान हुआ है। जीआइडीसी के अध्यक्ष राजेंद्र शाह के अनुसार, गुजरात में ७० प्रतिशत से ज्यादा श्रमिक हिंदी भाषी भारतीय हैं, जिनमें मध्यप्रदेश से भी हैं।

वहां दंगा किसने भड़काया यह भी जान लेना जरूरी है। इस शख्स का नाम है अल्पेश ठाकोर, जो अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का राष्ट्रीय सचिव और राहुल गांधी का चहेता है, अल्पेश खुद को गुजरात का राज ठाकरे बनाना चाहता है।



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