वचन पत्र के वचन निभाना जरूरी है मगर सरकार के निर्णय में बदलाव दिखे बदला नहीं

खरी-खरी            Dec 21, 2018


राकेश दुबे।
मध्यप्रदेश सरकार अर्थात मुख्यमंत्री कमलनाथ रोज नये निर्णय ले रहे हैं। निर्णय लेना उनका और 2-4 दिन में बनने वाली उनकी कैबिनेट का अधिकार भी है। निर्णय कठोर हो या नाजुक, दोनों ही हालतों में निर्णय जरूरी हैं।

साथ ही यह संदेश जाना भी जरूरी है कि सरकार बदल गई है, वो निजाम बदल गया है। कुछ निर्णय जो अब तक किये हैं, जरूरी थे। कुछ में जल्दबाजी भी सामने आई है और कुछ जो होने जा रहे उनकी फैली सूचनाएं “ वक्त है बदलाव का “ को “वक्त है बदले का “ जैसा बना रही है, सरकार को इससे बचना चाहिए। सरकार स्वभाव नारियल की भांति होना चाहिए, कड़ा प्रशासन और लोकहित के निर्णय।

वचन पत्र के वचन निभाना जरूरी है, क्योंकि वही पैमाना होगा आने वाले लोकसभा चुनाव में। सावधानी भी जरूरी है, क्योंकि बिगड़ी नौकरशाही, सत्ता के इर्द-गिर्द मंडरा रहे दलाल सक्रिय हैं और इनके झांसे में कुछ इतना गलत भी हो जाने की उम्मीद से इंकार नहीं किया जा सकता, जो सरकार के ‘बदलाव’ के निर्णय ‘बदला’ जैसा दिखाने लग ।

जैसे सचिवालय में इन दिनों लोक सेवा आयोग द्वारा चयनित और नियुक्ति आदेश की प्रतीक्षा में घूम रहे सहायक प्राध्यापक। इन के बीच यह बात फैल गई है कि सरकार चयन सूची रद्द करने जा रही है। यदि यह सही है तो खतरनाक और अफवाह है तो और ज्यादा खतरनाक।

लोक सेवा आयोग के कुछ नतीजे आने भी वाले हैं, उनके साथ भी ऐसे ही सवाल चस्पा है। इस बारे में सरकार को यह सूचना देना और सरकार का यह मानना दोनों ही खतरनाक है कि इन परीक्षार्थियों में सबकी विचारधारा किसी एक दल से जुड़ी है, नीर-क्षीर विवेक की जरूरत है।

सरकार का काम निर्णय और प्रतिपक्ष का काम निगहबानी होता है। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ट्विटर पर लिखा, “मैं सोया नहीं हूं, मैं जाग रहा हूं और मेरी पैनी नज़रें सरकार पर ही हैं.'' उनके इस भाव का स्वागत है, लेकिन वे देर से जागे हैं।

जब मसनद पर थे, तब जागते तो बेहतर था, मसनद पर अब कोई और है अब आपके जागने या सोने से कोई अंतर नहीं होने वाला। जनता ने आपकी बादशाहत किसी और को सौंप आपको चौकीदारी दी है, उसे भी अब ईमानदारी से निभाएं, इसमें गफलत आने वाले चुनाव में भारी पड़ सकती है।

गफलत में कांग्रेस को भी नहीं रहना चाहिए। सरकार पार्टी की हो सकती है, पार्टी सरकार नहीं हो सकती। हर निर्णय पार्टी के वचन के अनुसार हो पर शैली सरकार की हो। सरकार का स्वरूप कल्याणकारी होता है, उसके निर्णय समाज में जो छबि निर्माण करते हैं उसका प्रतिसाद सरकार का स्थायित्व होता है।

पार्टी को अपनी भूमिका तय कर लेना चाहिए और सरकार को भी,जिससे ठीक निर्णय हों, ‘बदलाव’ दिखे ‘बदला’ नहीं।

 



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