राकेश दुबे।
छत्तीसगढ़ के सुकुमा में हुई नक्सली धमक से मध्यप्रदेश भी चौकन्ना हो गया है। आनन-फानन में पलिस की कुमुक मंडला और बालाघाट भेजी गई है। सुकुमा में जो हुआ वो भयंकर है। मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और केंद्र की सरकारें कितने ही दावे नक्सल उन्मूलन के करें नतीजा हमेशा शून्य ही रहता है।
इस वर्ष की शुरुआत में छत्तीसगढ़ में अभियान की कमान संभालने वाले पुलिस महानिदेशक ने बस्तर को जल्द ही माओवादी हिंसा से मुक्त कर देने की बात कही थी। लेकिन 24 जनवरी को माओवादियों ने नारायणपुर में हमला कर चार जवानों को मार डाला था। उसके बाद अभी चार दिन पहले ही दंतेवाड़ा में छतीसगढ़ मुख्यमंत्री रमन सिंह ने अगले पांच साल में प्रदेश को नक्सल मुक्त कर देने का दावा किया।
अब सुकमा हमले ने उनके इस दावे पर सवालिया निशान लगा दिया है। एक साल में यह पांचवां बड़ा हमला है।
पिछले वर्ष इसी सुकमा जिले में ही एक महीने के भीतर दो बड़े हमले कर माओवादियों ने छत्तीस जवानों को मार डाला था। इससे पता चलता है कि चुनौती से निपटने के मामले में सरकार शायद पंगु हो चुकी है। सुकमा हमले के बाद केंद्रीय गृह राज्यमंत्री हंसराज अहीर ने भी माना कि माओवादियों से निपटने के लिए हमारे जवानों को अत्याधुनिक हथियारों की जरूरत है। सरकार सुरक्षा बलों को नए साजो-सामान से लैस करना चाहती है।
जाहिर है, कहीं न कहीं सुरक्षा बलों के पास जरूरी हथियार और प्रशिक्षण की कमी है, जिसकी वजह से माओवादी आसानी से हमलों को अंजाम दे जाते हैं।
माओवादी हिंसा से प्रभावित इलाकों में सुरक्षा बलों के जवानों के समक्ष सबसे बड़ा खतरा बारूदी सुरंगों का है। सुरक्षा बलों को निशाना बनाने के लिए अक्सर बारूदी सुरंगों का इस्तेमाल किया जाता है।
हालांकि 2005 से नक्सल प्रभावित राज्यों को ऐसे बख्तरबंद वाहन मुहैया कराए गए हैं जो बारूदी सुरंगों के हमलों को झेल पाने में सक्षम हों। लेकिन माओवादी अब ज्यादा भारी आइईडी बना कर हमले कर रहे हैं। ताजा हमले में पता चला है कि उन्होंने वाहनों को उड़ाने के लिए जो आइईडी तैयार किया था उसमें अस्सी किलो विस्फोटक था।
जाहिर है, सुरक्षा बलों के लिए यह बड़ी चुनौती है। सरकार भी इस तथ्य को जानती और मानती है कि माओवादियों के खात्मे के लिए सुरक्षा बलों को आधुनिक हथियारों और मजबूत खुफिया तंत्र की दरकार है। सवाल यह है कि फिर केंद्र सरकार और राज्य सरकार नीतिगत स्तर पर कड़े फैसले क्यों नहीं कर पा रही है?
समस्या से निपटने के तमाम सरकारी दावों के बावजूद आज भी जवानों पर हमले और उनके शहीद होने का सिलसिला क्यों नहीं थम रहा है?इन सरकारों को अपनी मंशा स्पष्ट करना चाहिए। देश के आंतरिक मामलों को देखने वाले गृह विभाग के उस हिस्से को और मजबूत और ताकतवर बनाने की दरकार है जो दिल्ली में बैठ कर नक्सलवाद के निर्मूलन की बात और फैसले करता है।
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