माई लार्ड! सवाल तो ज्यों का त्यों है

खरी-खरी            Apr 14, 2018


राकेश दुबे।
देश के सर्वोच्च न्यायलय ने बुधवार को वह याचिका खारिज कर दी, जिसमें भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा विभिन्न बेंचों को केस आवंटित किए जाने को लेकर एक गाइडलाइन बनाने की गुजारिश की गई थी। इसके साथ इस बात की परिभाषा बन गई कि न्याय- प्रशासन में देश के मुख्य न्यायाधीश की सर्वोच्च व्यक्ति हैं।

मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की ही अगुवाई वाली तीन सदस्यीय बेंच ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि मुख्य न्यायाधीश पद अपने आप में एक संस्था है और इस पर किसी तरह का अविश्वास नहीं किया जा सकता। इसके बावजूद सवाल वही के वही खड़ा है।

यह निर्णय प्रमाणित करता है कि यह बात बिल्कुल सही है। देश के सारे शीर्ष संवैधानिक पद संदेह से ऊपर हैं, लेकिन इसका दूसरा पहलू यह भी है कि विश्वास कोई निर्देशों से नियंत्रित होने वाली चीज नहीं है।

जब सुप्रीम कोर्ट के ही चार वरिष्ठ जज सार्वजनिक रूप से मुकदमों के बंटवारे के तौर-तरीकों को लेकर सवाल उठा चुके हैं, तब यह कहने का क्या मतलब बनता है कि इस पद पर किसी तरह का अविश्वास नहीं किया जा सकता?

यहां याचिका का खारिज होना खुद में कोई बड़ी बात नहीं। बड़ी बात यह है कि जिन सवालों की पृष्ठभूमि में यह याचिका दायर की गई थी, उनका कोई जवाब मिल सकेगा या नहीं।

सर्वोच्च न्यायलय में विभिन्न बेंचों को केस आवंटित करने की प्रक्रिया बहुत पुरानी है। विभिन्न मुख्य न्यायाधीश अपने विवेक के मुताबिक विभिन्न बेंचों के बीच केस का बंटवारा करते आए हैं। उन पर तो कभी ऐसा कोई सवाल नहीं उठा।

इस साल १२ जनवरी को चार जजों ने यह मसला उठाया कि सरकार के लिए संवेदनशील मामले कुछ खास जजों को ही सौंपे जा रहे हैं,और इससे न्यायपालिका की विश्वसनीयता को खतरा पैदा हो गया है। ऐसा सचमुच हो रहा है या नहीं, यह अलग सवाल है। लेकिन आरोप लग जाने के बाद यह सवाल महत्वपूर्ण हो गया कि अगर ऐसा हो रहा हो, या भविष्य में भी कोई सीजेआई किसी खास बेंच को खास तरह के केस आवंटित करने लगे तो इस समस्या का क्या समाधान सोचा जा सकता है।

याचिका में इस बारे में कई सुझाव दिए गए थे, जिनकी खूबियों-खामियों पर बात हो सकती थी। ऐसी कोई बात इस फैसले से उभरकर सामने नहीं आई, इसलिए आम धारणा यही बनी रहेगी कि चार जजों के उठाए सवाल अभी अपनी जगह कायम हैं और उनके जवाब हमारी न्याय व्यवस्था को देर-सबेर खोजने ही होंगे। जब तक इनके उत्तर नहीं आयेंगे, असमंजस बना रहेगा।

 



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