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जो रूठे तो नहीं चली राजनीति

खरी-खरी            Nov 08, 2024


अंबुज महेश्वरी।

दो दशकों में दल बदल का जो खेल प्रदेश की राजनीति में देखने को मिला वो इतना पहले कभी नहीं हुआ। पूर्व मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री और प्रदेश सरकार में मंत्री रहे नेताओं ने भाजपा से रूठकर दूसरी पार्टी का दामन तो थामा लेकिन उन्हें भाजपा से परे राजनीति रास ही नहीं आई और इनमें कुछ ने बहुत कुछ खोकर वापिस भाजपा में ही अपना ठिकाना ढूंढा।

ताजा मामला पूर्व मुख्यमंत्री स्व कैलाश जोशी के बेटे पूर्व मंत्री दीपक जोशी का है जो पिछले साल विधानसभा चुनाव के पहले जोश जोश में न केवल कांग्रेस में शामिल हुए थे बल्कि भाजपा के सामने चुनाव लड़कर हार का सामना भी किया उन्होंने गुरुवार को बुदनी के नांदनेर में केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान के समक्ष भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली। जोशी अकेले ऐसे नेता नहीं है जिन्हें भाजपा के अलावा दूसरी पार्टी रास न आई हो ये फेहरिस्त लंबी है इसमें पूर्व मुख्यमंत्री से लेकर कई दिग्गज नेता शामिल रहे हैं। खास बात यह है कि इन्हीं सालों में कांग्रेस से भाजपा में आए कई नेताओं ने सत्ता और संगठन में अपनी अच्छी पैठ बना ली है।

उमा भारती ने बना ली थी जनशक्ति पार्टी, बाद में विलय हुआ

वर्ष 2005 में शिवराज सिंह चौहान के मुख्यमंत्री बनने के बाद भाजपा से बगावत कर पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने 2006 में भारतीय जनशक्ति पार्टी बना ली थी। उमा के साथ प्रदेश के कई दिग्गज नेता इस पार्टी में शामिल रहे। 2011 में 5 विधायकों के साथ उमा भारती की पार्टी का भाजपा में विलय हो गया। उस समय उमा भारती के साथ खड़े होने की बड़ी राजनीतिक कीमत चुकाने वाले नेताओं में प्रहलाद पटेल, डॉ गौरीशंकर शेजवार, रघुनंदन शर्मा, भगवान दास सबनानी, जालम सिंह पटेल, ढाल सिंह बिसेन प्रमुख रहे थे। भाजपा की विचारधारा के प्रति निष्ठा और अपनी क्षमता से लगातार काम करते हुए कई नेताओं ने सत्ता और संगठन में अपनी अलग जगह बनाई।

शिवराज सरकार में मंत्री रहे सरताज और दीपक जोशी कांग्रेस के टिकट पर लड़े चुनाव, हारे, कुसमरिया ने भी की थी बगावत

वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में टिकट कटने से नाराज अटल सरकार में मंत्री रहे शिवराज सरकार के सीनियर मंत्री सरताज सिंह ने तब टिकट वितरण के आखिरी दिन अपनी सिवनी मालवा सीट छोड़कर कांग्रेस के टिकट पर होशंगाबाद से चुनाव लड़ा और सीताशरण शर्मा से हार का सामना किया इसी तरह 2023 के चुनाव में भाजपा को छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए पूर्व मंत्री दीपक जोशी ने खातेगांव सीट से चुनाव लड़ा और हारे। दोनों चुनावों में भाजपा से आए नेताओं को टिकट देने पर कांग्रेस पार्टी में जमकर अंतर्कलह भी हुई थी।

पूर्व मंत्री रामकृष्ण कुसमरिया ने 2018 में दमोह और पथरिया सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ा और करारी हार मिली। 2019 में कांग्रेस में वे शामिल हो गए। भाजपा का गणित गड़बड़ करने के बाद 2020 में वापिस भाजपा में आ गए। 2023 में डॉ मोहन यादव ने सीएम बनने के बाद उन्हें राज्य पिछड़ा आयोग का अध्यक्ष बनाया।

 शिव राज को आड़े हाथों लिया था जोशी ने

प्रदेश में सर्वाधिक समय मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान भले ही पांचवीं बार मुख्यमंत्री नहीं बन पाए लेकिन लोकसभा चुनाव में उनकी जमकर चली। 29 टिकटों में ज्यादातर उनकी ही पसंद के उम्मीदवार खड़े किए गए। पूर्व मंत्री दीपक जोशी शिव "राज" को आड़े हाथों लेते हुए पिता स्व कैलाश जोशी की तस्वीर लेकर कांग्रेस कार्यालय पहुंचे थे और भाजपा पर जमकर निशाना साधा था। नौ माह पहले जोशी के भाजपा में आने की स्क्रिप्ट तैयार हो गई थी लेकिन एन वक्त पर उन्हें मना कर दिया गया था। सूत्र बताते हैं कि शिवराज सिंह की मान मनोव्वल करने के बाद उनका भाजपा मनाने का रास्ता साफ हुआ है।

जो कांग्रेस से आए वे भाजपाई से आगे निकले

भाजपा छोड़कर कांग्रेस में जाने वाले नेताओं के राजनीतिक सितारे तो गर्दिश में ही रहे लेकिन इसके उलट कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आने वाले नेताओं ने खुद को बखूबी सेट कर लिया है। कई नेता है जिनकी आज सत्ता और संगठन में तूती बोलती है। पूर्व मंत्री संजय पाठक और परिवहन एवं शिक्षा मंत्री उदयप्रताप सिंह सिंधिया समर्थक मंत्रियों के भाजपा में आने के बहुत पहले ही खुद को यहां बेहतर स्थापित कर चुके थे। 2020 में भाजपा में शामिल हुए तुलसी सिलावट, गोविंद सिंह राजपूत, प्रद्युम्न सिंह तोमर अब मोहन सरकार में भी कद्दावर मंत्री हैं तो वहीं पूर्व मंत्री डॉ प्रभुराम चौधरी ने भी भाजपा में अपनी जड़ें मजबूत कर ली हैं। कांग्रेस से आए राम निवास रावत को भी सरकार में मंत्री बनाकर भाजपा अब उपचुनाव लड़वा रही है।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं यह टिप्पणी उनके फेसबुक वॉल से ली गई है।

 


 

 


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