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प्रधानमंत्री जी! पुलवामा हमला पाकिस्तान का आपसे सीधा सवाल है क्या बिगाड़ लोगे?

खरी-खरी            Feb 15, 2019


प्रकाश भटनागर।
प्रधानमंत्री जी! जी हां! बिना किसी सम्मानसूचक शब्द और अभिवादन के ही आपको यह पत्र लिख रहा हूं। क्योंकि बीते करीब चौबीस घंटे से खयाल में यदि कोई सम्मानसूचक शब्द चल रहा है, तो वह केवल ‘शहीद’ है।

इसी अवधि से अभिवादन के रूप में ‘हत्यारा पाकिस्तान’ ही कुलबुला रहा है। पुलवामा में कल जो कुछ हुआ, वह सिर्फ हमारे जवानों की नृशंस हत्या ही नहीं, बल्कि पाकिस्तान का आपसे सीधा-सा सवाल है, कि ‘क्या बिगाड़ लोगे?’

प्रधानमंत्री जी! सर्जिकल स्ट्राइक पर यकीन रखने वाला देश यह विश्वास भी रख रहा है कि आप फिर ऐसा कोई कदम उठाएंगे। लेकिन इस बार केवल ऐसा करने से काम नहीं चलेगा। सोलहवीं लोकसभा के सत्रों का अवसान हो चुका है।

संसद के अगले सत्र में प्रधानमंत्री के तौर पर कौन नजर आएगा, कोई नहीं जानता। यह भी नहीं पता कि अगले स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से देश किसका संबोधन सुनेगा। फिर भी फिलहाल तो आप हैं।

तो कुछ ऐसा कीजिए कि संसद में अगला प्रधानमंत्री 14 फरवरी, 2019 के बाद की देश की सबसे बड़ी उपलब्धि गिनाए। पाकिस्तान के पालतू चार सौ से अधिक आतंकियों के धड़ से अलग किए गए सिर के फोटोग्राफ्स के साथ।

वह प्रधानमंत्री आप हों या कोई और, लेकिन तब तक कुछ ऐसा हो सके कि यह देश आपके पराक्रम के चलते पाकिस्तान की तबाही का साक्षी बन जाए।

चीन सहित सारी दुनिया यह देख सके कि भारत की भूमि पर नापाक कदम उठाने वालों को किस तरह समूल नष्ट किया जा सकता है।

प्रधानमंत्री जी! आपने तो इजरायल से मित्रता की है। उस दोस्त से सीखिए कि किस तरह देश की ओर खराब नजर उठाने वालों को उनके घर में घुसकर मारा जाता है।

डोनाल्ड ट्रम्प आपके मुरीद हैं, तो उनके पूर्ववर्ती जॉर्ज बुश जूनियर से सीखिए कि कैसे वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमले की कीमत तालिबानियों के सामूहिक नरसंहार के रूप में वसूली जाती है।

बराक ओबामा से सबक लीजिए कि किस तरह ओसामा बिन लादेन जैसे आतंकियों को कुत्ते की मौत मारा जाता है। यह देश सब-कुछ भूलने को तैयार है। वह नोटबंदी की कतार में लगे लोगों की मौत को बिसरा देगा।

जीएसटी के नाम पर व्यापारियों द्वारा की जा रही लूट-खसोट के दर्द को अपनी नीयति मानकर चुप हो जाएगा। हरेक खातें में पंद्रह-पंद्रह लाख न आने के मलाल को भुला देगा। लेकिन उसके कानों से उस धमाके की गूंज शांत नहीं हो पाएगी जो कल पुलवामा में हुआ।

इस धमाके की भरपाई केवल वह चीखें कर सकती हैं, जो कल हुए हमले के षड़यंत्रकारियों और उन के समर्थकों का गला काटे जाने पर सुनाई देंगी।

कल का हमला बेहद असामान्य इसलिए भी है कि इसमें सीरिया और अफगानिस्तान जैसी आतंकी वारदातों की झलक मिलती है, इसका अर्थ समझिए। वह यह है कि इस देश में आतंकवाद और गंभीर रूप लेता जा रहा है।

कश्मीर में आए दिन इस्लामिक स्टेट के समर्थन में झंडे फहराये जाते हैं। उन घटनाओं पर सख्ती से काबू न पाने का नतीजा है कि आज हालात यहां तक पहुंच चुके हैं। उन्हें और बिगड़ने से रोकिए। र्इंट का जवाब पत्थर नहीं बल्कि गोला-बारूद से दीजिए।

लिख दीजिए इस्लामाबाद की छाती पर आतंकवादियों के खून से हमारी महान सेना की पराक्रम गाथा।

भौंकने दीजिए छद्म मानवाधिकार संगठनों और बिकाऊ मीडिया को। दुम हिलाते रहने दीजिए अलगाववादियों और उनके नाम का पट्टा बांधकर कश्मीर में सेना पर पथराव करते गद्दारों को।

यह आशा अतिरंजित लग सकती है, लेकिन यकीन मानिए, कल के घटनाक्रम से कराह रहे देश के जख्मों पर अब इसी तरह से मरहम लगाया जा सकता है।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और एलएन स्टार समाचार पत्र के संपादक हैं।

 


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