आजाद सिंह डबास।
विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा द्वारा म.प्र. को समृद्ध प्रदेश बनाने का झुनझुना बजाया जा रहा है। भाजपा के नेता विशेषकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपने चुनावी भाषणों में बार-बार यह रट लगा रहे हैं कि उन्होंने विगत 15 वर्षों में प्रदेश को बीमारु से विकासशील और विकासशील से विकसित बनाया है।
अगर उनको जनता द्वारा एक मौका और दिया गया तो वे प्रदेश को समृद्ध प्रदेश बनाएंगे। मुझे उनका यह दावा पूर्णतः खोखला लगता है।
यह प्रदेश की भोली-भाली जनता को ठगने के अलावा कुछ नहीं है। भाजपा को ज्ञात होना चाहिए कि समृद्ध बनाना तो दूर अपितु प्रदेश अभी ठीक से विकसित भी नहीं हुआ है। तमाम दावों के बावजूद प्रदेश अभी भी बीमारु एवं विकासशील श्रेणी में ही बना हुआ है।
ज्ञात रहे कि एक पखवाडे़ पहले भाजपा ने समृद्ध मध्यप्रदेश बनाने के लिए प्रदेश की जनता से सुझाव लेने हेतु 50 डिजिटल रथ रवाना किये थे।
पार्टी द्वारा समस्त 230 विधानसभा क्षेत्रों में चुनिंदा स्थानों पर 20-20 सुझाव पेटियां रखवाई गईं थीं जिनमें अनेक सुझाव आये हैं।
आमजन द्वारा आनलाईन भी सुझाव मांगे गये थे। भाजपा द्वारा दावा किया जा रहा है कि 23 लाख लोगों द्वारा अपने सुझाव दिये गये हैं।
इन समस्त सुझावों का आजकल प्रदेश कार्यालय में अध्ययन किया जा रहा है। प्राप्त सुझावों में से चयनित सुझावों को भाजपा अपने घोषणा पत्र में शामिल करेगी।
समृद्ध मध्यप्रदेश बनाने को लेकर आये सुझावों पर ड्राफ्ट तैयार किया जा रहा है जिसे अगली बार प्रदेश में सरकार आने पर लागू किया जावेगा।
गौरतलब है कि विकसित प्रदेश के जितने भी पैरामीटर हैं, म.प्र. उनमें से किसी एक पर भी खरा नहीं उतर रहा है। विकसित प्रदेश में लोगों की प्रति व्यक्ति आय अधिक होती है।
सकल घरेलू उत्पाद का स्तर ऊंचा होता है। लोगों का जीवन स्तर उच्च स्तर का होता है। आधारभूत संरचना का विकास बहुत अच्छा होता है।
गरीब जनसंख्या बहुत कम होती है। बेरोजगारी का स्तर कम होता है। बाल कल्याण एवं उत्कृष्ठ स्वास्थ्य सुविधाएं होती हैं। शैक्षिक सुविधाएं बहुत उच्च स्तर की होती हैं। परिवहन एवं संचार सुविधाएं उत्कृष्ठ होती है। लोगों को बेहतर आवास उपलब्ध होता है। लोगों की जीवन प्रत्याशा अधिक होती है। आय का समान वितरण होता है।
अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार औद्योगिक विकास होता है ना कि कृषि। जन्मदर और मृत्युदर कम होती है। लोग शिक्षित होने के कारण तार्किक स्वभाव के होते हैं, ना कि अंधविश्वासी।
विकसित प्रदेश के एक भी पैरामीटर पर खरे नहीं उतरने के कारण हाल ही में आई यूएनडीपी की वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक रिपोर्ट के अनुसार देश के 29 राज्यों में म.प्र चौथे नम्बर पर है।
चाहे कितने भी आईडिया ले लिये जावें, हकीकत में प्रदेश में जिस तरह के राजनैतिक हालात हैं, उसे देखते हुए प्रदेश को विकसित बनाना मुश्किल ही नही अपितु असंभव है।
वर्तमान हालातों के चलते समृद्ध (सम्पन्न, धनवान, सशक्त) मध्यप्रदेश की तो बात करना ही बेमानी है।
विगत 15 वर्ष से प्रदेश में भ्रष्टाचार चरम पर है। भ्रष्टाचार के चलते ही मध्यप्रदेश घोटालों का प्रदेश बन गया है।
प्रदेश का शायद ही कोई विभाग होगा जिसमें बड़े घोटाले नही हुए हों। नौकरशाही, चाहे वह वरिष्ठ स्तर की हो अथवा निचले स्तर की, पूरी तरह भ्रष्टाचार में लिप्त है। ऐसी भ्रष्ट नौकरशाही के होते प्रदेश का विकास कैसे हो सकता है ?
बगैर राजनैतिक संरक्षण के प्रदेश की नौकरशाही अकेले अपने दम पर इतने बडे़-बड़े घोटालों को अंजाम नही दे सकती।
कुछ माह पूर्व प्रदेश के वरिष्ठ नौकरशाहों से संबंधित भ्रष्टाचार के परचे वल्ल्भभवन (सचिवालय) में बांटे जाना इस बात का सबूत है कि प्रदेश में भ्रष्टाचार बेलगाम जारी है।
सवाल यह पैदा होता है कि 15 वर्ष के शासन के बाद भी भाजपा कौन से नये आईडिया जनता से चाह रही है? जनता चाहे कितने भी अच्छे आईडिया दे-दे, भ्रष्टाचार को रोके बगैर समृद्ध म.प्र. की कल्पना भी नही की जा सकती है।
कोई भी योजना चाहे वो कितनी भी अच्छी हो,भ्रष्टाचार को रोके बगैर उसका सही क्रियान्वयन नही हो सकता।
अगर भाजपा सरकार प्रदेष को विकसित एवं समृद्ध बनाने की दिश में जरा भी संजीदी होती तो व्यापम घोटाले, ई-टेन्डर घोटाले, अवैध खनन घोटाले, पोषण आहार घोटाले एवं बुंदेलखण्ड पैकेज जैसे सेकड़ों महाघोटालों की निष्पक्ष जांच कराकर दोषियों को दण्ड दे सकती थी।
भाजपा सरकार द्वारा इस संबंध में कुछ भी नही कर भ्रष्टाचार को पूर्ण संरक्षण दिया है। समस्त विभागों में ट्रास्फर/पोस्टिंग में धांधलियां होने से भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिला है।
विगत 4-5 वर्षों में वन विभाग में स्थानांतरणों में जिस तरह से लूट मचाई गई है, ऐसी लूट विगत 30 वर्षों में देखने को नही मिली है। इस लूट की मेरे द्वारा मुख्यमंत्री तक शिकायतें की गई लेकिन कोई नतीजा नही निकला। शासन द्वारा जिस तरह से चहेते सेवानिवृत अधिकारियों को मलाईदार पद देकर नवाजा जा रहा है, उससे प्रदेश को समृद्ध बनाने की कल्पना साकार नहीं हो सकती।
प्रदेश में जिस तरह से खनिज संसाधनों विशेषकर नर्मदा समेत ज्यादातर नदियों से रेत की लूट मचाई गई है, वह भी सरकार की नीयत की ओर इशारा करती है। विगत 15 वर्षों में वनों की जिस तरह से बरबादी हुई है, वह पूर्व में देखने को नही मिली।
वनों की बरबादी को देखकर लगता है कि आगामी वर्षों में प्रदेष भारी जल संकट से गुजरने वाला है जिससे खेती बुरी तरह से प्रभावित होगी। वनों के विनाष से नदियों को जोड़ने की योजना भी कारगर नही होने वाली है।
हाल ही में हो रहे विधानसभा चुनावों के दौरान भाजपा द्वारा जिन प्रत्याषियों को चुनाव मैदान में उतारा है, उनकी संपत्ति पर एक नजर डालने से भी स्पष्ट हो रहा है कि प्रदेश में भ्रष्टाचार का बोल-बाला है।
चुनाव के दौरान अभी तक 51 करोड़ रुपये कालेधन की जप्ती हो चुकी है जो 2013 से 32 करोड़ ज्यादा है। भाजपा द्वारा जिस तरह से नेताओं के पुत्र/पुत्रियों एवं नजदीकी रिश्तेदारों को टिकट दिये गये हैं, उससे भी समृद्ध मध्यप्रदेश बनाने की दिशा में कोई उम्मीद नही जगती है।
अगर मुख्यमंत्री वास्तव में प्रदेश को समृद्ध बनाना चाहते हैं तो प्रदेश में भ्रष्टाचार के प्रति ‘‘जीरो टाॅलरेंस‘‘ की नीति अपनानी होगी। भ्रष्टाचार रोके बगैर समृद्ध प्रदेश बनाने की बात करना मात्र चुनावी झुनझुना ही है।
लेखक पूर्व आईएफएस अधिकारी हैं।
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