ममता यादव।
शिवराज सिंह चौहान के मंत्रिमंडल में तीन और रत्न जुड़ गए। इसके साथ ही अंतिम विस्तार में मंत्रियों की संख्या 31 हो गई, पर 3 की जगह अभी भी खाली ही है जो शायद उनके इस कार्यकाल में भरी भी मई जाएगी। ये तीन रत्न हैं ग्वालियर के नारायणसिंह कुशवाह जिन्हें कैबिनेट में जगह दी गई है। नरसिंहपुर के जालमसिंह पटेल और खरगोन के बालकृष्ण पाटीदार को राज्यमंत्री के ओहदे से नवाजा गया है।
इस विस्तार से तीन खुश जरूर हुए, पर 13 नाराज जरूर हो गए। लगातार दूसरी बार इंदौर जैसे बड़े शहर की अनदेखी की गई। एक दिन पहले तक यहाँ से दो विधायकों को मंत्रिमंडल में शामिल किए जाने का झुनझुना बजता रहा, पर अंततः इंदौर मुँह ताकता ही रह गया।
अभी इस सवाल का जवाब नहीं मिला है कि अचानक मंत्रिमंडल विस्तार की जरुरत क्यों महसूस की गई? न तो कोई हलचल थी और न सुगबुगाहट ही, फिर क्या हुआ कि मुख्यमंत्री को अपना मंत्रिमंडल छोटा लगने लगा और उसमे तीन नगीने और जोड़ना पड़े। सहजता से देखने से तो ऐसा कुछ नहीं लगता, पर इसके पीछे बहुत गहरे कारण छुपे हैं जिसके दूरगामी राजनीतिक नतीजों को सोचकर ये विस्तार किया गया है।
पहला कारण तो मुंगावली और कोलारस में भाजपा की संभावित हार को बचाने के लिए अशोकनगर के विधायक गोपीलाल जाटव को मंत्री बनाना था ताकि वहां के वोटर्स को भरमाया जा सके। शिवराज सिंह वहां आश्वासन भी दे आए हैं कि इस इलाके से एक विधायक को मंत्री बनाया जाएगा। लेकिन, ये नासमझी ही कही जाएगी कि ये कवायद चुनाव आचार संहिता लागु रहने के बीच में की गई।
मगर जिन गोपीलाल जाटव का नाम सबसे आगे चल रहा था वही बाहर हो गये। नतीजा ये हुआ कि कांग्रेस ने भंडारा शुरू होने से पहले ही रायता बिखेर दिया और गोपीलाल जाटव संभावित मंत्रियों की लिस्ट से बाहर हो गए। आशय यह कि जिसके लिए जल्दबाजी में विस्तार किया जा रहा था, उसका नाम ही लिस्ट से कट गया।
इस विस्तार का दूसरा कारण जातीय समीकरणों को बैलेंस करना था। शपथ लेने वाले तीन मंत्रियों में एक पाटीदार है, दूसरा लोधी और तीसरा काछी। यानी तीनों ओबीसी हैं। दरअसल, ये गुजरात इफेक्ट को साधने की गरज से किया। बालकृष्ण पाटीदार को मंत्रिमंडल में शरीक करके किसानों की नाराजी दूर करने की असफल कोशिश की गई है। लेकिन, वे जिस खरगोन इलाके का प्रतिनिधित्व करते हैं वहां के किसान उग्र नहीं है और न उनके मंत्री बनने से किसान सध सकेंगे। लोधी और काछी समाज को भी ये संदेश देने की कोशिश की गई कि भाजपा और सरकार उनके साथ है।
इन दो कारणों के अलावा तीसरा सबसे अहम कारण है प्रह्लाद पटेल को प्रदेश भाजपा के संभावित अध्यक्ष पद की दौड़ से बाहर करना। क्योंकि, जब उनके भाई जालमसिंह पटेल को मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया गया तो प्रह्लाद पटेल का नाम स्वाभाविक रूप से बाहर हो गया। मुख्यमंत्री नहीं चाहते कि विधानसभा चुनाव के दौरान प्रह्लाद पटेल प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष बने। जालमसिंह का रिकॉर्ड ख़राब होते हुए भी उन्हें ताबड़तोड़ शपथ दिलाने के पीछे इससे ज्यादा कोई बड़ा कारण होगा, ये नहीं लगता।
जहाँ तक इन तीन रत्नों के मंत्री बन जाने से भाजपा को चुनाव में कोई बहुत बड़ा फ़ायदा होगा, ऐसा कहीं से नजर नहीं आता। यदि उनके इलाके के लोग इस शपथ से प्रभावित भी हो गए तो इससे ज्यादा नुकसान तो वहां होगा, जहाँ से अभी तक किसी को मंत्री नहीं बनाया गया।
कल इंदौर से रमेश मेंदोला और सुदर्शन गुप्ता के नाम खूब चले। लेकिन, दोनों के पास राजभवन से कोई खबर नहीं आई। यही स्थिति मनावर की विधायक रंजना बघेल की रही, जिन्होंने अपने समर्थकों को भोपाल जाने के लिए तैयार रहने को कह दिया था, पर रात होते होते सारे अरमान ठंडे पड़ गए। ऐसे और भी कई विधायक हैं जिन्होंने इस आखिरी विस्तार से उम्मीदें बाँध रखी थी, पर न तो उनके भाग्य से छींका टूटना था न टूटा।
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