मनीष सिंह।
थैंक्स, बट नो थैंक्स केजरीवाल
कारण कई है।
पहला- आप, अपने सारे लीडर्स को दफा करके बना सिंगल पर्सन दल हैं। उसके पास, अन्य राज्यों के लिए कठपुतली सीएम भी खोजना दुष्कर है। मंत्रिमंडल तो दूर की बात है।
गुलाम, बकलोल सीएम चाहिए, उसके ठलहे मंत्री चाहिए तो हमारे पास पहले ही भाजपा है। उसके पास कम से कम हिमंता, धामी, रघुवर, खट्टर औऱ विप्लव दिखते तो हैं।
दूसरा- आप, भाजपा का नही, कांग्रेस का स्पेस ले रही है। अब कित्ती भी वर्जिश कर लो, आप, तृणमूल, या किसी अन्य पहलवान को संघी फासिस्ट सत्ता को उखाड़ने लायक बॉडी बनाने में अभी 3 चुनाव लगेंगे। 15 साल।
इत्ता पेशेंस नही है भाई। बदलाव 24 में ही चाहिए।
तीसरा- कांग्रेस के अलावे कोई भी पार्टी, तभी नेशनल बनेगी, जब खुद भाजपा ऐसा होने दे। क्योकि वो सत्ता में है, फंड , मीडिया में विजिबिलिटी, उसकी मर्जी के बगैर नही मिलने वाले। बढोगे तब, जब संघ आपको कांग्रेस हराने के लिए कहीं कहीं जीतने दे। प्रमुख विपक्ष बनने दे।
विधायक सांसद न खरीदे, न धमकाए, न फँसाये। आप उसकी स्कीम्स में फिट रहें। तो ऐसे में भाजपा की खाद पानी से तैयार फ़ौज, भाजपा को खाक उखाडेगी??
चौथा- स्कूल हस्पताल का मॉडल दिल्ली में ठीक है, जो छोटा और 100% अर्बन सेंट्रिक स्टेट है। ग्रामीण, बिखरे आबादी के वास्ट इलाकों के ये सब सफल नही हो सकता। कई सरकारें कोशिश कर चुकी।
वैसे भी कोई भी मॉडल, याने 7 नम्बर का जूता सारे देश को एक बराबर नही पहना सकते। सबके पैर का नाप अलग होता है। तो दिल्ली मॉडल हो या गुजरात मॉडल,ये मॉडलबाजी से यकीन उठ चुका।
पांचवा- औऱ सबसे जरूरी। स्कूल सड़क नाली बनाने वाले लीडर नही, ठेकेदार होते हैं।
लीडर वो चाहिए, जो लीड करे। मास को सही रास्ता दिखाए। अटपटी चालें न चले, थोड़ा कम बोले। हिन्दू, मुस्लिम, सिख, अगड़ा, पिछड़ा, दलित से ऊपर उठकर बात करे।
ओवर एंबिशियस, ओवर स्मार्ट, बोली बदलने वाला, चतुर, मैनिपुलेटिव, वन अपमैंनशिप, भयंकर ईमानदार, सख्त, धर्मप्रेमी टाइप एक ठो पगले से, हम सब पहले ही तंग हैं। अब दूसरा बकैत नही चाहिए।
हर अच्छा सीएम, अच्छा पीएम नही होता। वैसे ही जैसे सर्कस में मोटरसाइकिल कुदा लेने वाला जांबाज, 100 सवारियों वाली बस का चालक नही हो सकता।
ये दो अलग विधा है। आप को सीखने में टाइम लगेगा। फिलहाल, आई लाइक यू केजरीवाल, बट एज फ्रेंड ओनली। थैंक्स,
बट नो थैंक्स ...
वीरेंद्र भाटिया की फेसबुक वॉल से
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