राकेश पालीवाल।
यह दोहरी शर्म की घटना है। एक तो शांति और अहिंसा की विश्व विभूति बापू की मूर्ति को अंग भंग करना और वह भी मोतिहारी की उस धरती पर जो बापू के कर्ज में गले—गले डूबी है।
जहां अंग्रेजों के सताए हुए किसानों को राहत दिलाने के लिए गांधी ने अपनी जान की बाजी लगाकर 1917 में सत्याग्रह आंदोलन शुरू किया था, जिस आंदोलन ने देश को पहला राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद के रुप में दिया और आचार्य कृपलानी जैसे प्रखर राज नेता दिए।
जब भी देश या विदेश में किसी महान विभूति की मूर्ति खंडित होती है तब तब बामियान में बुद्ध की मूर्तियों के साथ तालिबानियों का तांडव याद आता है। दरअसल यही तालिबानी प्रवृति है जो जब तब हमारे यहां भी दबे पांव सर उठाती रहती है।
तालिबान तो सरेआम दूसरे धर्मों को मानने वाले लोगों को काफिर कहकर खुला विरोध करता है लेकिन जो लोग रात के अंधेरे में गांधी जैसी विभूति का मूर्ति भंजन करते हैं वे और ज्यादा खतरनाक हैं।
ऐसे कायरों को पहचानना ज्यादा मुश्किल है जो दिन के उजाले में भेष बदलकर शरीफों का चोगा पहन जनता के बीच घूमते रहते हैं।
गांधी जैसी विभूति की मूर्तियों के साथ इस तरह का शातिराना सलूक हमारे देश की अंतरराष्ट्रीय छवि भी बहुत धूमिल करता है। गांधी की मूर्ति को तोड़कर हम गांधी का कद कम नहीं कर सकते और न गांधी विचार के प्रसार को रोक सकते हैं, उल्टे इस तरह की कायराना हरकतों से गांधी विचार और आगे ही बढ़ता है।
यह हमारा दुर्भाग्य ही है कि हम वैश्विक स्तर पर अपने देश की सबसे लोकप्रिय विभूति को अभी तक ठीक से नहीं पहचान पाए। ईश्वर हमें सद्बुद्धि दें।
गांधी की आत्मा तो ऐसे लोगों को बार—बार माफ करती रहेगी। ये मूर्ख सच में नहीं जानते कि वे कितनी बड़ी मूर्खता कर रहे हैं।
हे राम !
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