अरविंद कुमार सिंह।
जब देश एक बेहद ही साहसिक फैसले की दहलीज पर खड़ा है तब हम क्या कर रहे हैं..!!
कोई गमछा फेंककर जमीन कब्जा कर रहा है तो कोई वरमाला लिए कश्मीर से लड़कियां ला रहा है।
यह केवल मजाक में की गई प्रतिक्रियाएं भर नहीं हैं वरन यह हमारे चरित्र की अभिव्यक्ति है कि हम कश्मीर को लेकर क्या सोचते हैं..!
हम अपने ही देश के एक अभिन्न भाग के प्रति इतने निष्ठुर इतने क्रूर और इतने अमानवीय कैसे हो सकते हैं..!
एक पक्ष दूसरे पक्ष से ऐसे रियेक्ट कर रहा है कि मानो संविधान संशोधन न हो रहा हो बल्कि भारत कश्मीर पर कब्जा कर रहा है, जो कि हम अपनी ऐसी प्रतिक्रियाओं से जाने अनजाने उन ताकतों को मजबूत कर रहे हैं जो अब तक इसी से ऊर्जा पाती आई हैं..!
कश्मीर की जमीन के साथ कश्मीर के लोग भी हमारे अपने हैं और यदि आज के फैसले से उन्हें कोई समस्या है गलतफहमी है अथवा भविष्य में हो तो इसके लिए जरुरी है कि हम बेहद ही संतुलित प्रतिक्रिया दें और उन्हें इसे समझने स्वीकार करने का वक़्त दें क्योंकि अंततः समाधान बन्दूक से नहीं विश्वास बहाली से ही निकलने वाला है।
370 की समाप्ति के साथ ही बहुत से लोग अफगानिस्तान तक पहुँच चुके हैं उन्हें एक बिन मांगी सलाह है कि कृपया अपने अतिउत्साह को सहेज कर रखिए वह सिपाही भर्ती के वक़्त फॉर्म लेने की जद्दोजहद में काम आएगा मालिक..!
जो 60हजार रेलवे के पदों के लिए 2 करोड़ फॉर्म पड़ेंगे तब हृदयघात न हो उसके लिए जरुरी है कि कुछ उत्साह बचा के रखा जाए..।
देश बेहद ही ऐतिहासिक उपलब्धि की तरफ बढ़ रहा है तब बेहद जरुरी हो जाता है कि हम अपनी कुंठाओं को प्रदर्शित कर इस शानदार माहौल को विषाक्त न करें
सरकार के साथ खड़े होइए उसे अपना समर्थन दीजिए और ईश्वर से प्रार्थना कीजिए की आने वाला वक़्त शांति का हो समृद्धि का हो..!!
बाकी आपको भी पता है कि कश्मीर में आप कितनी जमीन खरीद रहे हैं.. गांव में बगल वाला खड़ंजा पर गाय बांधता है तो उससे तो खड़ंजा हम मुक्त करा ही नहीं पाते और हम कश्मीर में जमीन खरीदेंगे..
राष्ट्र की उपलब्धि पर संजीदा होकर गर्व करना सीखना होगा यह कोई कबड्डी का खेल नहीं जो एक पक्ष के हार जाने पर हुर्र हुर्र कर आप जश्न मनाएं..
यह राष्ट्र के निर्माण की बेहद ही संवेदनशील प्रक्रिया है जिसे हम अपने विषवमन से अवरोधित न करें।
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