कांग्रेस मुक्त भारत का सच,जन नायक का अधिनायकवाद का सपना

खरी-खरी            Dec 15, 2018


शैलेश तिवारी।
2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा नेता नरेंद्र मोदी की अगुवाई में जो सुनामी लहर आई उसने लगभग तीस साल के लम्बे अन्तराल के बाद किसी दल को स्पष्ट बहुमत मिल पाया। गठबंधन की सरकारों का सिलसिला थमा।

यह चुनाव अपने आप में इसलिए भी महत्वपूर्ण था कि एक बड़े अंतराल के बाद देश ने अपने जन नायक के रूप में नरेन्द्र मोदी को दिल की गहराईयों से स्वीकार किया। जन के मन की इस भावना को तब समर्थन भी मिला जब सत्ता पर काबिज होने के लिए मोदी जी ने संसद की दहलीज पर माथा टेका तो पूरा देश भावनात्मक हो गया।

एक गर्व भरा रोमांच हर भारतीय ने महसूस किया कि अब लोकतंत्र को सच्चा प्रधान सेवक मिला जो देश के गौरव में वृद्धि की नई इबारतें लिखेगा।

सत्ता पर अधिकार पाने के बाद अपने अभिन्न साथी अमित शाह के मार्फ़त जब उनका कब्ज़ा भाजपा के संगठन पर भी हुआ तब लगा कि सत्ता संचालन के लिए संगठन से जुगलबंदी बेहतर स्थिति का निर्माण करेगी।

शायद ऐसा हुआ भी हो लेकिन एक के बाद एक राज्यों के चुनावों में भाजपा को सफलता दिलाती इस जोड़ी ने अपने विरोधियों का मुंह बंद कर दिया। देश के प्रधानमन्त्री का ज्यादातर समय विदेशी दौरों में गुजरने लगा। संसद में पूर्व प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह की तरह अधिकाँश मौन रहने वाले मोदी जी की गर्जना जनसभाओं में जारी रही।

पीएम के रूप में वे यह नारा भी लगा गए कि उन्होंने कांग्रेस मुक्त भारत का सपना देखा है। आदत के मुताबिक़ भाइयों बहनों से हाथ उठवाकर उन्होंने अपने सपने को पूरा करने के लिए सहयोग दिए जाने आश्वासन भी माँगा।

गण के मन पर राज करने वाले पीएम के इस आग्रह की बारम्बार पुनरावृत्ति होने लगी। आशंका होना नैसर्गिक था कि एक लोकतांत्रिक देश का प्रधानमन्त्री इस प्रकार की अलोकतांत्रिक भाषा का प्रयोग क्यों कर रहा है? आखिर इसके पीछे मंशा क्या है?

एक पीएम का एलान तो यह हो कि भारत आतंकवाद मुक्त हो, महंगाई मुक्त हो, बेरोजगारी मुक्त हो, कालाधन मुक्त हो, अन्य समस्याओं से मुक्त हो। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

भारत कांग्रेस मुक्त हो का नारा बुलंद किया गया देश के प्रधानमन्त्री द्वारा, एक भाजपा के पीएम की तरह। शाह और मोदी की जोड़ी की अगुवाई में भाजपा ने धीरे—धीरे देश के लगभग 70 प्रतिशत राज्यों में भाजपा की या उसके सहयोग से बनी सरकारे बन गई।

जब विद्वजनों से चर्चा हुई तब कुछ तथ्य सामने आए, जो चौंका देने के लिए काफी थे। भाजपा के अलावा कांग्रेस ही एकमात्र ऐसा राजनैतिक दल है जो भारत के हर क्षेत्र में अपनी पहुँच रखता है और शायद कहीं कहीं तो भाजपा नहीं भी है लेकिन कांग्रेस वहां मौजूद है।

अगर कांग्रेस ख़त्म हो जाए तब भाजपा के लिए लम्बे समय तक दिल्ली की कुर्सी पर बिना किसी परेशानी के काबिज रह सकेगी। इसके लिए भाजपा ने और खासकर उसके आईटी सेल ने कांग्रेस को और उसके संचालन कर्ताओं को जितना बदनाम किया जा सकता था, किया गया। काफी हद तक वो सफल भी हुए, लगने लगा कि कांग्रेस कोमा में चली जाएगी। एक मजबूत विपक्ष को संसद के गलियारों में जिंदा रखने वाले उदाहरणों वाले देश में ऐसा भी सोचा जा सकता है।

याद कीजिये अटल बिहारी बाजपेयी के लोकसभा चुनाव हारने के बाद भी उस समय की सरकार उन्हें संसद में प्रवेश कराती है। प्रथम पीएम पं. नेहरू अपने मुखर विरोधी फिरोज गांधी को संसद तक पहुँचाने का रास्ता साफ़ करते हैं।

विरोधी दल के पं. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को मंत्री मंडल में शामिल कर कश्मीर के मामलों का मंत्री बनाया जाता है। ताकि मसले के साथ इन्साफ हो सके। ठीक इसके विपरीत राजनैतिक शुचिता धारण करने का दावा करने वाली भाजपा के मुखिया कांग्रेस नामक देश व्यापी विपक्ष को समूल नष्ट करने के लिए कटिबद्ध हो जाएँ।

इसके पीछे एक सोच ने और काम किया कि कांग्रेस के अलावा अन्य सभी दल देश व्यापी न होकर छोटे छोटे क्षेत्र विशेष में ही अपना प्रभाव रखते हैं। ये कभी एक हो नहीं पायेगे और भाजपा को केंद्र में चुनौती देने वाला दल कोई रह नहीं जाएगा। अधिनायकवाद को केंद्र में रखकर सोचे गए इस फार्मूले से दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र तानाशाही के रास्ते पर अग्रसर करने जैसा भयावह विचार अमल में ही आ गया।

लोकतंत्र के स्वास्थ्य से खेलते इस विचार ने राष्ट्र को कुछ नुक्सान तो दे ही दिया है लेकिन ये पब्लिक है सब जानती है। ऐसा होने नहीं देगी। सत्ता के सेमी फाइनल में पांच राज्यों के चुनाव परिणामों ने मोदी व शाह के कांग्रेस मुक्त भारत के सपने को अधूरे में तोड़ कर लोकतंत्र की सेहत को दुरुस्त किया है।

कांग्रेस को भी मिले इस नवजीवन से सीख लेकर लोकतंत्र की प्रत्यक्ष देवता स्वरूप जनता के लिए विकास की एक नई इबारत लिखने का प्रयास करना चाहिए। लोकतांत्रिक परम्पराओं का और इसकी मजबूती का प्रयास सभी दल करें। जिससे राष्ट्र और राष्ट्रवादिता दोनों का मान सम्मान बढे।,

 


Tags:

master-athletics-championship-singapore

इस खबर को शेयर करें


Comments