अनुराग उपाध्याय।
जितेंद्र और जयाप्रदा की एक फिल्म है, पाताल भैरवी। बाकी कहानी अपनी जगह है, लेकिन फिल्म में अमजद खान ने बड़ा दिलचस्प किरदार निभाया है। वे प्राण साहब की रियासत के मसखरे मंत्री होते हैं। ऐसे मंत्री जो हर बात पर टैक्स मांगते हैं। किसी ने दाढ़ी बनवाई तो टैक्स, कोई कहीं से आया तो टैक्स, कहीं गया तो टैक्स। बैंकों द्वारा पैसे जमा करने और निकालने के नाम पर जो टैक्स लगाया गया है, उसके बाद से ही मुझे न जाने क्यों वह किरदार बहुत याद आ रहा है। थोड़ा सा पीछे मुडक़र देखें तो नोटबंदी से शुरू हुई यह कवायद रोज नए रंग दिखा रही है।
मानो आर्थिक सुधार का एजेंडा नहीं एकता कपूर का कोई सीरियल चल रहा हो। हर हफ्ते नया मोड़ आ जाता है। जनता पुराने ड्रामे से वाकिफ भी नहीं हो पाती है कि नई पुंगी बज जाती है। समझ ही नहीं आ रहा है आखिर चाहते क्या हैं? कभी कहते थे कि पुराने नोटों से आतंकवाद की रीढ़ तोड़ देंगे, नकली नोट का टेंटूआ दबा देंगे, भ्रष्टाचार की नकेल कस देंगे। जब बाजार में दौड़ रहे सारे बुजुर्ग नोट दौड़-दौड़ कर बैंक में आ गए तो सुर बदल गए। फिर कालाधन आ रहा है यह साबित करने के लिए योजनाओं के घोड़े दौड़ाए गए। फेयर एंड लवली से लेकर तमाम क्रीम, पावडर पोत लिए, लेकिन धन का रंग धूसर भी नहीं हुआ।
कालाधन आया नहीं उल्टी कालिख पुतने लगी तो कैशलेस का राग अलापने लगे। डेबिट, क्रेडिट कार्ड दौड़ पड़े, नए-नए एप आ गए। रस्ते का माल सस्ते में, लॉट है सेल है कि तर्ज पर हर खरीद पर पॉइंट और उपहारों की बरसात होने लगी। उसमें भी चीनी कंपनियों की मदद के आरोप लगे तो फिर नई ताल पर थिरकने लगे। आतंक की रीढ़ तोडऩे के सब्जबाग की कलई तो तभी खुल गई, जब नए नोट आने के थोड़े दिन बाद ही आतंकियों के पास से बरामद हुए। अब तो एटीएम से भी करारे नोटों के बीच से नकली नोट फुदक-फुदक कर बाहर आ रहे हैं।
फिर किसी ने कहा कि भई देखो जो भी हो, लेकिन बैंकों में रुपया आ गया है। ये सारा पैसा लोगों की तिजोरियों में, गुल्लक और अलमारियों में लगे पेपर के नीचे दबा सड़ रहा था। कम से कम अब ये देश के काम आएगा। इससे सस्ते लोन देंगे। घर बनाने के लिए, पढ़ाई, रोजगार-व्यवसाय, खेती-बाड़ी के लिए लोगों की जरूरत पूरी करेंगे। तभी मेरे मन में सवाल ये भी आया कि मियां खान ये तो बताओ ये लोन लेकर आदमी करेगा क्या। रुपया लगा के रुपया कमाने की कोशिश करेगा तो तुम फिर उसके बटुवे का टेटूआं दबा दोगे। और यह भी तय है कि आपके हाथों में गर्दन आम आदमी की ही आना है। माल्याजी सरीखे भद्र पुरुष तो अवतार ही हिंदुस्तान की दौलत लूटने के लिए लेते हैं।
बैंक में पैसा जमा कराया, चलो मान लिया अच्छा किया, लेकिन अब उसे निकालने पर टैक्स क्यों थोप दिया। महीने में तीन-चार बार से ज्यादा पैसे निकाले तो टैक्स चुकाओ। इसका क्या मतलब लगाएं कि बैंक में पैसा जमा करो और भूल जाओ। बाप का माल समझ रखा है। कैश ट्रांजेक्शन पर तमाम पाबंदियां है। पैसा बैंक में जमा हो रहा है। अब अपना ही पैसा निकालने पर टैक्स देना पड़ेगा। यह तो गाड़ी फिर उसी स्टेशन पर लाकर खड़ी कर दी गई है। या तो जमा उतना ही कराओ, जितना बचाना हो। रोजमर्रा की जरूरत का माल अंटी में ही दबा कर रखो अथवा टैक्स से बचाने के लिए तीन-चार बार में ही सारा पैसा निकालकर पास रख लो। अगर ऐसा करेंगे तो फिर बैंक में पैसा कैसे टिकेगा।
समझना मुश्किल है कि ये अर्थ शास्त्र है या अनर्थ शास्त्र। ऐसा लगता है, जैसे आर्थिक नीतियों की जलेबी बनाई जा रही है। पहले लोग बैंक में पैसा जमा कराते थे तो थोड़ा ब्याज मिलने की उम्मीद होती थी। बचत खाते में वैसे ही जरा सा ब्याज मिलता है, नए नियम से तो वह भी अब पुरातात्विक धरोहर बन जाएगा। यानी आम आदमी का बचत खाता, बैंकों के लिए लूट खाता बन जाएगा। राम नाम की लूट चल रही है और सभी मिलकर आम आदमी को लूट रहे हैं।
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