सागर से डॉ. रजनीश जैन।
सीखो,...होगा। करने से होगा। देखो मैं भी नहीं जानता था। लेकिन सीखना पड़ा। तुम लोगों को पाँच साल मिलते हैं। पहला साल तो जमावट में निकल जाता है। आखिरी डेढ़ साल अगले चुनाव की तैयारियों में । यों दूसरा , तीसरा और चौथे का आधा साल ही फ्रूटफुल होते हैं। इन ढाई सालों में वह कर डालो जिसके लिऐ तुम राजनीति में आऐ हो। मूल उदेश्य धनोपार्जन होना चाहिऐ समाज सेवा नहीं। यह तथ्य कुछ इस तरह अपनी शैली में शामिल करो कि जनता समझे उपार्जन हमारे ही पोषण के लिऐ हो रहा है।
जनता तुम्हें वोट देने के पहले ही पखवाड़े घेरना शुरू करेगी। शुरूआत जनता दरबार जैसे आयोजन से करो।फिर धीरे धीरे दफ्तर में जनता को बुलाओ। इस तरह कुछ महीना गुजारकर फिर प्रवासमोड पर आ जाओ। दफ्तर पर तख्ती अवश्य रहे ताकि वोटर को यही इत्तला रहे कि तुम प्रवास पर हो।लंबी सेवा यात्राऐं इसके लिऐ नया और बेहतर विकल्प हैं।
कुछ वोटर बेहद जरूरतमंद होते हैं। वे तुम्हारे स्टाफ में सेंध लगाकर तुम्हें ढूंढ़ निकालेंगे और सामने खड़े हो जाऐंगे।ऐसों से घबराने की जरूरत नहीं। इनसे कहो कि तुम भोपाल आ जाओ। वहाँ चैन से बात होगी और काम भी हो जाऐगा।...मानलो कि ऐसा जरूरतमंद सीधा भोपाल पहुँच कर ही मिल रहा है तो उसके लिऐ यही जुमला बदल कर यह होगा कि तुम भोपाल क्यों भगते आऐ। इसको तो जिले से फार्वर्ड कराना होगा अतः क्षेत्र में मिलो। ...वोटर से कहो कि वे कब कहाँ हैं स्टाफ से पूछ लें। स्टाफ को ताकीद रहे कि लोकेशन बताना नहीं है।...कौसिस (..कोशिश) तो वस्तुतः यह रहे कि स्टाफ भी लोकेशन न जान सके।
...जनता से मिलो तो भीड़ में ताकि भीड़ बहाना बने और जस्टिफाई भी रहे। ...इस बीच संपर्क न टूटे इसलिए लगातार कथाऐं, यज्ञ, भजन प्रतियोगिताऐं होने दो। लोगों को कबड्डी और क्रिकेट में उलझाओ। मिलने वाले आवेदनों को इकट्ठा करो और उन्हें पूर्णाहति में स्वाहा करो ताकि पेंडेंसी शेष न रहे और कलमुँहे मीडिया वालों को कहीं पुर्जे पड़े न मिल जाऐं।
...कभी कभी क्षेत्र के सार्वजनिक स्थल पर महीने भर में एक दफे अचानक जरूर पहुंचो। जैसे किसी चर्चित चाय की दूकान पर।ध्यान रहे यहाँ तुम्हारे पास सिर्फ दस मिनट हों। किसी गरीब फटेहाल को चाय का गिलास बढ़ाते फोटो खिचाओ। इस तस्वीर को सोशल मीडिया की नज़र ऐसे कैप्शन के साथ करो ताकि लोगों को लगे कि भैया तो सब जगह व्याप्त हैं, हमीं आलसी ठहरे जो नहीं मिल पा रहे।
भीड़ का मनोविज्ञान तुमने चुनाव प्रचार के दौरान ही सीख लिया होगा।...मनोविज्ञान वही है भूमिकाऐं बदल जाऐंगी। मसलन अब तुम्हें लोगों के पैरों की तरफ नहीं झपटना है। अपना सिर ऊँचा और पैर खुले रखो जिनसे प्रच्छन्न यह संदेश फूट रहा हो कि रे मूर्खो ये चरण कमल हैं जो तुम्हारे छूने हेतु निर्मित हुए हैं,...आओ और बिना फल की इच्छा किऐ इनका स्पर्श करो ताकि तुम्हारी रोजी रोटी वगैरह सुरक्षित रहे।...किसी से भी तीन सेकंड से अधिक नेत्रसंवाद वर्जित है ऐसे में सम्मुख खड़ा पीड़ित अपना दुखड़ा सुनाना आरंभ कर सकता है। इसके पूर्व कि उसकी व्यथा आरंभ हो तुम्हें बिना वजह ही दूसरे ,फिर तीसरे से मुखातिब हो जाना चाहिऐ। जितने लोग उतनी व्यथाऐं और समय अनमोल। इसे ध्येय वाक्य मानते हुऐ किसी को अवसर देना मतलब सबसे कीमती संसाधन जाया करना है।
पटवारी से कलेक्टर और सिपाही से एसपी तक सब तुम्हारे अपने तैनात कराऐ हुए हैं इस तथ्य की गोपनीयता हेतु ही तुम्हें प्रथम दिवस शपथ दिला दी गयी थी। ...लेकिन क्षेत्र में मैसेज यह रहे कि कोई तुम्हारी नहीं सुनता सब पैसों की सुनते हैं। इस भाँति तुम्हारा नियमित सिलसिला बना रहेगा। हर साल या तीन साल में खुद ही इनका नाम तबादला सूची में डलवा कर कैंसिल कराने से अतिरिक्त अर्जन करना अनिवार्य है क्योंकि संगठन के भी खर्चे लगे रहते हैं। सांगठनिक कार्यक्रमों के नाम पर दोहन उन्हीं विभागों से करें जिनमें सीधे जनता से नियमित वसूली की सुविधा है।ध्यान रहे अफसर कर्मचारी तुम्हारे ही शरीर के अभिन्न अंग हैं।उनसे ही सब पोषण पाते हैं अतः सकल अंग स्वस्थ बने रहें यह तुम्हारा ही दायित्व है।
...चूंकि यह प्रशिक्षण दो दिवसीय है अतः कल अन्य वक्ताओं के अनुभव भी सुनें। आज का सार आप समझ गये होंगे। वह ये कि हमें ज्यादा नेता बनने की जरूरत नहीं है, नेता का अभिनय आना चाहिऐ। किसी माननीय को समझने में गतिरोध हो तो सवाल कर सकता है। अगली सरकार बने यही हम सबका साझा हित है।...धन्यवाद!
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।
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