राघवेंद्र सिंह।
मध्यप्रदेश की राजनीति खासतौर से भाजपा में इन दिनों अजीब सा दौर है। तूफानी हलचल कहें या तूफान के आने के पहले की खामोशी। किसी के समझ में कुछ ज्यादा नहीं आ रहा है। असल में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह तीन दिनी दौरे पर आये थे। उनके आने के 15 दिन पहले से तैयारियों की आपाधापी मची थी। साथ ही तीन दिन तक शाह के सख्त मिजाज तेवर और उनके तानाशाही वाले अंदाज से सब सकते में थे। भाजपा में ऐसा पहली दफा देखा, सुना और समझा गया। इसमें शाह ने राष्ट्रीय संगठन महामंत्री रामलाल, प्रदेश प्रभारी और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष विनय सहस्त्रबुद्धे, प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह, प्रदेश संगठन महामंत्री सुहास भगत लेकर तीन चुनाव जिताने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह और बहुत हद तक मीडिया भी उनके निशाने पर रखा।
शाह ने संगठन और सरकार में बदलाव की अटकलों पर कहा कि अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान और शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल की मर्यादा 2019 तक है। अब इसे उनके समर्थक 2019 तक का पद पर बने रहने का पट्टा मान रहे हैं तो परिवर्तन के पक्षधर कह रहे हैं कि इसमें नया क्या है? शाह ने केवल यह बताया है कि दोनों चौहान कब तक के लिये चुने गये हैं। यह मियाद बताई है। यह नहीं कहा कि उसके पहले कोई बदलाव नहीं हो सकता। बहरहाल इससे दोनों पक्ष खुश हैं। लेकिन राजनीतिक पंडित मानते हैं कि शाह ने एक जज के नाते उन्हें बरी नहीं किया बल्कि जमानत पर छोड़ा है। इसके लिये भी एक शेर बड़ा मौजूं है -
इस सिरे से उस सिरे तक सब शरीक-ए-जुर्म है,
कोई जमानत पर रिहा है तो कोई है फरार
संघ से संस्कारित और पारिवारिक माहौल में राजनीति का पाठ पढ़ने और पढ़ाने वाले भाजपाईयों के लिये शाह का कठोर अंदाज कुछ ऐसा रहा...
शायद ये जमाना उन्हें भी पूजने लगे,
कुछ लोग इसी ख्याल से पत्थर के होने लगे।
असल में भाजपा के नेताओं में अटल—आडवाणी जी से लेकर नितिन गडकरी के अध्यक्षीय कार्यकाल में कारपोरेट तथा हेडमास्टर जैसा अंदाज नजर नहीं आया। मध्यप्रदेश के भाजपाई भावुक हैं, वे दिल से जुड़कर काम करने वाले हैं। इसलिये भीतर की खबरों के मुताबिक यूपी जिताने वाले शाह की बादशाहत उन्हें थोड़ी सी अखरने वाली लगी। जहां तक सरकार और संगठन का मामला है उसमें छा रही अलाली के कारण बहुत हद तक अराजकता, अपनों की अनदेखी और भ्रष्टाचार चरम पर जा रहा है।
नया इंडिया के इस कालम में करीब दो बरस से विभिन्न शीर्षकों के जरिये सूरत ए हाल प्रकाशित किया था। मिसाल के तौर पर कुछ हेडिंग्स हम पाठकों के साथ फिर से साझा कर रहे हैं। जैसे कि....
मध्यप्रदेश में असफल होते विनय सहस्त्रबुद्धे,
सुहास भगत सहस्त्रबुद्धे की राह पर,
भाजपा में वफादारों की खामोश बगावत,
भाजपा में गिरावट, आंखें मूंदे हैं मोहन भागवत,
भाजपा में भगत मतलब उम्मीदों का आसमान,
आईने में खड़ा शख्स परेशान है बहुत...,
पहले ही कहते थे ये नौकरशाही नफरमान है,
मुख्यमंत्री जी कोई नहीं सुन रहा है...,
सरकार.... कड़वे फैसले की दरकार,
कुछ तो शर्म करिए...ऐसे कौन करता है भाई...,
सियासत में एहसान फरामोशी का दौर,
पूरे कुएं में भांग....जो भी देखो नशे में है,
तू काम मत कर केवल काम का जिक्र कर,
जबरदस्त दबाव में संगठन-सरकार, खाता न बही अफसर-नेता कहे वह सही,
जुमलों और धमकियों पर सवार सरकार,
अच्छी बातें तो बुरे लोग भी करते हैं...,
मध्यप्रदेश.... घोड़े हैं स्वतंत्र और सवारों पे लगाम है...,
हिम्मत से सच कहो तो बुरा मानते हैं लोग,
सुनिए ... भाजपा में कुछ भी हो सकता है!
ये कुछ बानगियां हैं जो पूरे देश में सर्वश्रेष्ठ राजनीतिक संगठन माने जाने वाले मध्यप्रदेश की भाजपा यूनिट को ऐसा दिखाती और सुनाती हैं जो अंधे और बहरे दोनों के समझ में आ जाये। ऐसा लिखकर हम खुद अपनी पीठ नहीं थपथपा रहे बल्कि अमित शाह की तीन दिन की यात्रा में जो उन्होंने बंद कमरों की बैठक में कहा वह एक तरह से "न काहू से बैर " में लिखे की ही प्रतिध्वनि थी। उनका अंदाज़ बहुत विस्फोटक था। हालांकि उनके निर्देश थे कि मीडिया को कोई कुछ नहीं बतायेगा, इसके बाद भी जो छन कर बाहर आया उसने यह साबित किया कि हालात चिंताजनक हैं।
शाह की नसीहत को दरकिनार कर मीडिया में कई बातें तो शब्दश: छप गईं। यद्यपि शाह ने झेंप मिटाने के लिये पत्रकारों से कहा जो आपने छापा है वह गलत है और गलत जानकारी आपको देने के लिये मैंने ही कहा था। वे साथ में यह कहते हैं कि कुछ छापने के पहले आपको मुझसे पूछना था। यह उनका बहुत सहजता भरा बयान कहा जा सकता है लेकिन जिसके सामने मुख्यमंत्री, राष्ट्रीय संगठन महामंत्री से लेकर जिलाध्यक्ष तक बोलने के पहले दस बार सोचते हों, जाहिर है कि वह मीडिया की पहुंच से बहुत बाहर होगा और यह तब जब वे पार्टी की हाईप्रोफाइल मीटिंग्स में हिस्सा लेने आये हों।
कुल मिलाकर राष्ट्रीय अध्यक्ष के तीन दिनी प्रवास में समूची प्रदेश भाजपा और शिव सरकार डरी-सहमी, सजग, सावधान नजर आयी। जो बॉडी लेंग्वेज थी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से लेकर प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान, संगठन मंत्री सुहास भगत की उससे लगता था कि वे कई दिनों से हंसना तो छोड़ मुस्कराये भी नहीं थे। इन नेताओं की ऐसी दशा के लिये ये शेर बिलकुल फिट बैठता है...
उलझी हुई निगाहों से मुझे देखता रहा
आइने में खड़ा शख्स परेशान था बहुत।
कुल मिलाकर अमित शाह कारपोरेट कल्चर और मोहल्ले के दादानुमा बड़े भाई की तरह तीन दिन तक नजर आये। मध्यप्रदेश में हिन्दू महासभा से लेकर जनसंघ, जनता पार्टी और फिर भाजपा में काम करने वाले कार्यकर्ताओं के लिये वे समझ में कम ही आये। यहां के नेता भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे कुशाभाऊ ठाकरे और प्यारेलाल खंडेलवाल के साथ और मां समान राजमाता विजयाराजे सिंधिया की छत्रछाया में बड़े हुये। मान-सम्मान और प्यार से तो वे भूखे रहकर भी पार्टी के लिये तब से काम कर रहे हैं जब कोई संगठन में आने को भी राजी नहीं होता था। मना-मना कर टिकट दिये जाते थे हारने के लिए।
अब अलग बात है कि मिस्डकाल से सदस्य बन रहे हैं और बाहरी दलों के लोग सुबह पार्टी में आते हैं और शाम को विधायक, सांसद और मंत्री बन जाते हैं। इन बातों को प्रदेश के कार्यकर्ता हजम ही नहीं कर पा रहे थे और अमित शाह ने डोज दे दिया कि कांग्रेस के दिग्गजों को तोड़कर पार्टी में लाओ। साथ ही ये भी कह दिया जिन्हें खुद के जीतने का ज्यादा भरोसा है उन्हें हम पार्टी से निकाल देते हैं वे चुनाव लड़े और जीतकर बतायें। हम उनकी जमानत जब्त करवा देंगे। यह सब एक अध्यक्ष के मुंह से चौंकाने वाली बातें थीं। मंत्रियों को भी दिल की बात नहीं बोलने दी गई। वन टू वन में जरूर कुछ दर्दे दिल लोगों ने सुनाया होगा।
मगर तीन दिन की यात्रा और जिलाध्यक्षों व विधायकों की बातें सुनने का उनके पास समय नहीं होना, चुनाव जिताने वाले कार्यकर्ताओं के लिये अच्छा तर्जुबा नहीं रहा। लोग पहले से ही सत्ता- संगठन में समन्वय के अभाव, नेताओं की मनमानी, दलाली करने वालों के बोलवाले से परेशान थे और ऐसी समस्याओं को शाह ने सुना ही नहीं। उनका कहना था मुझे सब पता है।
जाहिर है मध्यप्रदेश में जो उनके आंख, कान और नाक हैं उनसे सब कुछ पहले से ही हाईकमान की नजर में था तो फिर ये तीन की कवायद क्यों की गई? इसका जबाव तो समय देगा लेकिन संगठन और सरकार की बैठकों में शाह ने जो कहा वो बहुत ही कठोर था। उन्होंने कहा कि मेरे आने की सूचना के बाद संगठन में थोकबंद नियुक्तियां हो रही हैं। इसके लिये उन्होंने प्रदेश इकाई को भी आड़े हाथों लिया। युवा मोर्चे से लेकर प्रकोष्ठों, विभागों के अध्यक्षों की तो उनके सवालों के जबाव में घिग्घी बंध गई।
संगठन को फटकरा
प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान और संगठन महामंत्री सुहास भगत को उन्होंने कहा कि मुख्यालय में मत बैठिये दौरे करिये। कार्यकारिणी नहीं बनायेंगे, लोगों को काम नहीं देंगे, पद नहीं देंगे, दौरे नहीं करेंगे, सुनेंगे नहीं तो फिर काम कैसे चलेगा? उन्होंने कहा हमारे संगठन महामंत्री रामलाल मुझे कहते हैं और मैं दौरा करता हूं, फिर आप क्यों नहीं कर सकते। एक पूर्व विधायक दुल्लीचंद ने तो उनसे कहा मैं जो बोलूंगा तो आप सुन नहीं पायेंगे इसलिये लिखकर देता, फुरसत में पढ़ लेना। राष्ट्रीय अध्यक्ष ने शिकायतों को थोड़ा बहुत सुनने और लिखित में देने की तसल्ली दी और कहा आप काम करें आपको कैसे आगे बढाऩा, क्या करना इस पर हम नजर रखेंगे।
75 पार में फंसे रामलाल, सहस्त्रबुद्धे, नंदू भैया और शिवराज
मंत्रिमंडल से 75 पार के बुजुर्ग मंत्रियों में बाबूलाल गौर और सरताज सिंह से एक साल पहले जिस तरह इस्तीफे लिये गये थे उसका खुलासा जब अमित शाह ने किया तो संगठन मंत्री रामलाल से लेकर प्रदेश प्रभारी विनय सहस्त्रबुद्धे, प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान सब संदेह के दायरे में नजर आये। शाह ने जब यह कहा कि उन्होंने 75 पार के नेताओं को मंत्रिमंडल से न तो निकालने के लिये कहा और न ही पार्टी ने इस उम्र के नेताओं को टिकट नहीं देने का फैसला किया है। उन्होंने कहा कि वे चुनाव भी लड़ सकते हैं और मुख्यमंत्री चाहे तो मंत्री भी बन सकते हैं। उनकी यह बात बम के गोले की तरह फटी।
गौर और सरताज सिंह ने रामलाल से लेकर शिवराज तक को कटघरे में खड़ा किया और उनके हुये छल और ठगे जाने का हिसाब मांगा। कुल मिलाकर इस घटना से संगठन की साख और विश्वसनीयता दोनों तार-तार हो गई। प्रदेश भाजपा और शिव सरकार शाह के आदेशों का कितना पालन करेंगे यह तो समय ही बतायेगा। लेकिन उन्होंने कहा कि अब फैसले एक दो व्यक्ति नहीं कोर ग्रुप करेगा। इसका मतलब मुख्यमंत्री, प्रदेश अध्यक्ष और संगठन महामंत्री अपने हिसाब से फैसले नहीं कर पायेंगे। देखते हैं आगे आगे होता है क्या? अभी तो शाह के दौरे के बाद थके लोग आराम करेंगे।
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