ममता यादव।
भाजपा की प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक सागर में शुरू हो गई है। वास्तव में ये बैठक होना कोई खबर नहीं है। खबर ये है कि 15 साल पहले जब सागर में प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक हुई थी, तब एक धर्मशाला को बैठक के लिए चुना गया था। खुद प्रदेश सरकार के मंत्री भले ही हास परिहास के बीच कह गये लेकिन ये बात कहकर उन्होंने कई लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया कि भाजपा में एसी कल्चर किस कदर हावी हो गया है। बैठक में शामिल होने जो भी नेता आये थे, वे भाजपा कार्यकर्ताओं के यहाँ रुके थे। इस बार ये बैठक एक लकदकी होटल में हो रही है। नेताओं को ठहरने के लिए 300 कमरे बुक किए गये हैं! पार्टी के सत्ता में रहने पर संगठन कैसे सुख भोगता है, ये उसका नमूना है। भाजपा कितनी भी शुचिता की बात करे, पर जब सत्ता सुख भोगने का मौका आता है, तो कोई पीछे हटना नहीं चाहता। भाजपा जब तक सत्ता से बाहर रही, आदर्शवाद की बात करती रही। लेकिन, सत्ता में आने के बाद पार्टी के सुर, समझ और ज्ञान सब बदल गया।
बदलते दौर में सिर्फ पार्टी की विचारधारा ही नहीं बदली, सबकुछ बदलता नजर आ रहा है। सबसे ज्यादा बदले हैं, पार्टी के नेता। सत्ता का सुख कैसे भोगना है, ये उन्होंने अच्छी तरह सीख लिया है। ये बैठक उसी बदलती विचारधारा का संकेत हैं। बड़ी होटलों या रिसोर्ट में पार्टी की बैठकें होना या पांच सितारा संस्कृति का भोग राजनीति में नई बात नहीं है। नया तो ये है कि भाजपा हमेशा ही खुद को जमीन से जुड़ी पार्टी बताती आई है और ये कहती आई है कि वो उन सारी बुराइयों से अलग है, जिन्हें राजनीति की गंदगी कहा जाता है। पर, ऐसा है नहीं। भाजपा उन सबसे कहीं ज्यादा सुविधाभोगी,दिखावा करने वाली पार्टी बन चुकी है।
नितिन गड़करी जब करीब पांच साल पहले भाजपा के अध्यक्ष बने थे, तब उन्होंने पार्टी से सितारा संस्कृति को त्यागने की बात की थी। उनका सुझाव था कि पार्टी की बैठकों में पार्टी संस्कृति की सादगी झलकना चाहिए। क्योंकि, यही भाजपा इंडिया शाइनिंग की चकाचौंध में एक बार केंद्र की सत्ता खो चुकी थी। लेकिन, फिर भी भाजपा के सुविधाभोगी कल्चर में अंतर नहीं आया। कार्यकर्ताओं को जनसेवा का पहाड़ा पढ़ाने वाले नेताओं को जब भी मौका मिलता है, वे सत्ता का दोहन करके सुविधाओं को भोगने का मौका नहीं छोड़ते। ये बात सही है कि सत्ता पाना ही राजनीति का अंतिम लक्ष्य होता है, किन्तु सत्ता के साथ सादगी और शुचिता भी जरुरी है। जो भाजपा के सत्ता पाने के बाद कहीं नजर नहीं आती। गड़करी को जब अध्यक्ष बनाया गया था, तब वे संघ की भाषा बोलते रहें! पर, ज्यादा दिन गड़करी इस पर कायम नहीं रह सके। क्योंकि, गडकरी एक कारोबारी नेता हैं, वे अपनी जरुरत मुताबिक राजनीति में आए हैं।
संघ का वो कल्चर भी पार्टी से धीरे-धीरे विलग हो रहा है, जो कभी भाजपा पहचान रहा है। कुशाभाऊ ठाकरे और प्यारेलाल खंडेलवाल जैसे नेता अब ढूंढने से भी नहीं मिलते जिनके पास पहनने के लिए दो धोती और दो कुर्ते होते थे। वे हाथ से कपडे धोते थे और किसी भी कार्यकर्ता के यहाँ रुक जाते थे। आज तो भाजपा का चेहरा बने प्रधानमंत्री का ड्रेसिंग सेन्स का फैशन की दुनिया में डंका बज रहा है। जब भाजपा की धारा ऊपर से ही पांच सितारा बनकर बह रही है, तो कैसे उम्मीद कि पार्टी के नेता संस्कारी राजनीति करेंगे।
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