राघवेंद्र सिंह।
मेरा एक सवाल है। क्या लंबे समय तक सत्ता में रहना बुध्दि को भ्रष्ट कर देता है..? इसके उत्तर में लंबी बहस हो सकती है। लेकिन अगर हम सियासत के संदर्भ में जाएं तो कई बार ये सच भी लगता है। एक बार बतौर मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने कहा था शहरी लोगों के वोट नहीं चाहिए। हालांकि बाद में उन्होंने इसकी सफाई दी लेकिन किसी ने इसे माना नहीं। इसी तरह वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपने पहले बजट भाषण में कहा कि देश का मिडिल क्लास सरकार के भरोसे न रहे (जबकि मोदी की सरकार बनाने में मध्यम वर्ग की बड़ी भूमिका रही)।
हाल ही में मुलायम सिंह ने अपने बेटे अखिलेश यादव के बारे में कहा है कि जो पिता का नहीं हुआ वह किसका होगा। ऐसी ढेर सारी बातों को बचाव में जुबान फिसलना भी कह सकते हैं। मगर ये हकीकत को बयां करने वाली है। मध्यप्रदेश भी ग्यारह साल से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की दो बातों को लेकर हलाकान है। एक तो हाल ही में श्रीमती विजयाराजे सिंधिया जिन्हें जयभान सिंह पवैया को छोड़ शायद ही कोई भाजपाई हो जो राजमाता न कहता हो। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने सिंधिया परिवार के बारे में पहली बार गद्दारी की बात की। और इसी से सियासत में बवाल शुरू हो गया। असल में राजनीति में चौहान संतुलन बनाने के लिए जाने जाते हैं। लेकिन उनके बयान ही विवाद की वजह बनते जा रहे हैं।
राजमाता सिंधिया 1967 में मुख्यमंत्री डी.पी.मिश्र की सरकार का तख्ता पलट कराने के बाद संविद सरकार बनाने की सूत्रधार बनती हैं। तब कांग्रेस के 157 विधायक तोड़ कर उन्होंने गोविन्द नारायण सिंह को मुख्यमंत्री बनवाया था। यहां से शुरू होती है विजयाराजे सिंधिया के सियासी सफर की शुरूआत। बाद में उन्होंने जनसंघ से लेकर भाजपा तक तन-मन-धन से सहयोग किया। उनकी पुत्री यशोधरा राजे कहती हैं कि पार्टी के लिए अम्मा महाराज ने उनके जेवर तक बेच दिये थे। एक समय खुद शिवराज सिंह चौहान की पदयात्रा के समापन पर रायसेन में उन्होंने सभा को संबोधित किया था। यह इसलिए हुआ था कि शिवराज सिंह विदिशा संसदीय क्षेत्र से लोकसभा का चुनाव लड़ रहे थे और वहां राघवजी और उनकी टीम श्री चौहान को परेशान कर रही थी। ऐसे में चौहान की मजबूती के लिए श्रीमती सिंधिया ने सभा ली थी। विदिशा वैसे भी सिंधिया रियासत का हिस्सा रहा है। हिन्दू महासभा से लेकर भाजपा में शायद ही कोई हो जो श्रमती सिंधिया के उपकारों का गुणगान न करता हो। हमारा आशय सिंधिया घराने का गुणगान करना नहीं है बल्कि यह बताना है कि कल तक सिंधिया राजमाता थीं, लोकमाता थीं तो आज पता चल रहा है कि वे गद्दार के परिवार से थीं। राजनीति में सीढ़ियों का इस्तेमाल करने की बातें तो सुनते आए हैं, मगर उन्हें तोड़ने और गाली देने के किस्से कम ही सुनाई पड़ते हैं।
मध्यप्रदेश में भाजपा को बनाने में कुशाभाऊ ठाकरे,विजयाराजे सिंधिया और प्यारेलाल खंडेलवाल के नाम सबसे ऊपर आते हैं। लेकिन पिछले तेरह सालों में इनके जन्म दिन और पुण्यतिथि पर संगठन और सरकार ने शायद ही कोई बड़ा कार्यक्रम किया हो। ऐसा लगता है कि योजना के तहत उन्हें भुलाया जा रहा है। ठाकरेजी की स्मृति में आवंटित भूमि निरस्त कर दी गई है। जबकि वहां जनप्रतिनिधियों के लिए प्रशिक्षण संस्थान बनाया जाना था। एक बार प्रदेश कार्यालय में आयोजित कार्यक्रम में श्रीमती सिंधिया का फोटो जमीन पर रख दिया गया था इस चूक को सिंधिया के अपमान के तौर पर देखा गया था। ऐसा लगता है मुख्यमंत्री का ताजा बयान उसी चूक का विस्तार है।
जो कुछ कहा गया उसपर तीखी प्रतिक्रिया आना शुरू हो गई है। यशोधरा ने कहा कि पहले मेरे विभाग छीने और अब पूर्वजों पर आरोप इससे मैं घुटन महसूस कर रही हूं। क्षुब्ध यशोधरा ने अटेर विधानसभा उपचुनाव में अपनी चुनावी सभाएं रद्द कर दी हैं। राजमाता की भाभी और नगरीय निकाय मंत्री माया सिंह ने कहा है कि राजमाता मेरे लिए भगवान हैं। पूर्व सांसद और वरिष्ठ नेता रघुनंदन शर्मा ने यशोधरा का समर्थन किया और कहा राजमाता ने पार्टी को अपने खून से सींचा है। भाजपा उनके योगदान को कभी नहीं भूल सकती है। पूर्व मंत्री सरताज सिंह ने भी राजमाता को लेकर मुख्यमंत्री के बयान पर दुख जताया है। इसी तरह मुख्यमंत्री के साथी रहे हीरेन्द्र बहादुर सिंह तोमर ने सोशल मीडिया पर एक लंबी चिट्ठी लिखी है और समझाईश दी है कि सिंधियाजी के बारे में इस तरह के बयान से बचना चाहिए। उन्होंने चौहान को सिंधिया से आत्मीय रिश्तों की याद दिलाते हुए दुख जताया है। प्रदेश युवा मोर्चा के पूर्व अध्यक्ष विपिन दीक्षित ने तोमर की चिट्टी पर प्रतिक्रिया दी है कि मुख्यमंत्री को अपना बयान वापस लेना चाहिए। ऐसे बयानों की लंबी फेहरिश्त है। जिसमें लोगों ने दुख और नाराजगी जताई है।
विवादित बयानों में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने पिछले साल पदोन्नति में आरक्षण के मामले में कहा था कि कोई माई का लाल आरक्षण खत्म नहीं कर सकता। इस पर भी भारी प्रतिक्रिया हुई थी और डेमेज कंट्रोल में सरकार,संगठन को बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ा था। भाजपा कार्यसमिति में यह मुद्दा ग्वालियर के जयभान सिंह ने उठाया भी था। सर्वणों के बीच में पार्टी आरक्षण के बयान को लेकर अभी भी असहज रहती है।
नर्मदा यात्रा से ...
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की नर्मदा सेवा यात्रा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित हो रही है। इसका श्रेय सरकार के प्रचार तंत्र और इसके ब्रांड एंबेसडर बने मुख्यमंत्री को जाता है। मुरारी बापू से लेकर दलाईलामा, पंडित जसराज,अनुराधा पौडवाल, मैग्सेसे पुरस्कार प्राप्त राजेन्द्र सिंह नर्मदा के घाट पर होने वाली सभाओं में शिरकत कर रहे हैं। उनसे भाषण दिलवाये जा रहे हैं जबकि उन्हें नर्मदा प्रदषण की हकीकत शायद पता न हो। ऐसा इसलिए भी कि जिन घाटों पर सभाएं होती हैं वे जगमग और पड़ोस के घाट में रोज की तरह गंदगी। इससे इन बड़े लोगों का कद घट रहा है। नर्मदा घाटों पर सफाई नहीं हो रही है लेकिन अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक इसका प्रचार खूब है। देशी भाषा में इसे पाखंड भी कह सकते हैं(आयोजकों से माफी के साथ)। एक पूर्व मुख्यमंत्री इन बातों की तस्दीक भी करते हैं।
लेखक आईएनडी 24 के समूह प्रबंध संपादक हैं यह आलेख उनके फेसबुक वाल से लिया गया है।
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