वीरेंद्र शर्मा।
अक्सर कानून व्यवस्था बदहाल होने या अप्रिय घटनाओं की बढ़ोतरी होने पर तंत्र के बारे मे कहा जाता है कि जंगलराज चल रहा है, लेकिन क्या कभी आपने जंगल राज को समझने का प्रयास किया है ?
जंगल के अपने नियम-कायदे होते हैं..शेर की हुकूमत में शासित होते जंगल में हर प्राणी अपनी मर्यादाओं से बंधा होता है। जंगल का राजा भी भूख लगने पर अपनी आवश्यकतानुसार शिकार करता है और अपना पेट भर लेता है।
मांसाहारी हो या शाकाहारी उतना ही उपभोग करते हैं जितनी उनकी आवश्यकता है। क्या आपने कभी सुना कि जंगल उन लोगों के द्वारा नष्ट हो गया जो उसमें रहते थे?
आज की घटनाओं ने प्रदेश, जिसके मुखिया बड़े गर्व से उसे शांति का टापू कहते नहीं अघाते, शर्मसार कर दिया और यह सोचने पर मजबूर कर दिया क्या कानून नाम की कोई चीज इस प्रदेश में है?
देश के कानून के सर्वोच्च संरक्षक माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्णय के विरोध में उतरे कुछ लोग धीरे-धीरे हिंसक और अराजक भीड़ के रूप में बदल गए और पुलिस मूकदर्शक बनी देखती रही।
भीड़ लगातार अनियंत्रित होती जा रही थी और प्रशासन उसकी चिरौरी और मिन्नतों के अलावा कुछ नहीं कर पा रहा था। लोग हैरान थे परेशान थे .. उन परिजनों के लिए ,उन बच्चों के लिए जो घर से बाहर थे और उनकी सुरक्षा को लेकर मन में तरह-तरह की आशंकाएं घर कर रही थी।
आखिर 6 लोगों की मौत और करोड़ों अरबों की संपत्ति के नुकसान के बाद में हालात सामान होने शुरू हुए। शांति की Twitter पर अपीलें आने लगें, लेकिन सवाल यही है कि क्या आगे ऐसा नहीं होगा?
क्या हमारा खुफिया तंत्र इतना नाकारा हो चुका है कि उसे इन घटनाओं का पूर्वाभास नहीं था, और क्या पुलिस इतनी बेबस और लाचार है कि इन घटनाओं को अपनी आंखों के सामने होते देखती रहती है ? जंगलराज भी ऐसे राज के आगे शायद शर्मसार हो जाए...!
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और सहारा समय मप्र के ब्यूरो प्रमुख हैं।
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