शिखा शिखा। यकीन नहीं होता कि इसी देश ने गणेश शंकर विद्यार्थी, प्रताप, भगत सिंह, हसरत मोहानी जैसे पत्रकार भी पैदा किये थे। वरना ऐसी षडयंत्रकारी चुप्पी क्यों होती हज़ारीबाग़ गोलीकांड और Honda मज़दूरों की भूख हड़ताल पर ? हज़ारीबाग़ गोलीकांड पर प्रभात खबर और दैनिक जागरण तो मानो पुलिस व सरकार के ही मुखपत्र के रूप में काम कर रहे हैं। रिपोर्टिंग की भाषा ऐसी मानो अपनी जमीन को बचाने की लड़ाई लड़कर तो मानो किसानों ने इतना बड़ा अपराध कर दिया कि "सजा" तो मिलनी थी। अंग्रेजी अखबारों में थोड़ी कवरेज इंडियन एक्सप्रेस व हिन्दू ने दी है जिसमें इंडियन एक्सप्रेस तो मानो अंदर के किसी पन्ने पर लोकल दलाल मीडिया के version को ही संक्षिप्त करके भीतर के किसी inaccessible कोने में देकर खानापूर्ति करता दिखा है।
कुल मिलाकर पत्रकारिता का वर्तमान चरित्र भूतकाल में रहे गणेशशंकर विद्यार्थी, भगत सिंह, हसरत मोहानी जैसे पत्रकारों की किसी निशानी का कोई सबूत नहीं देता। ऐसे में the wire, news click, scroll, youth ki aawaz, हस्तक्षेप, national dastak आदि वेबसाइटों से जुड़े लोगों ने वहां जाकर वहां की सच्चाइयों को बाहर लाने व रिपोर्टिंग करने में बेहद सराहनीय भूमिका निभाई है।
इसके अलावा फेसबुक पर भी वहां के स्थानीय लोगों का पक्ष रखते कुछ वीडियो आए हैं जिससे वहां की स्थिति के बारे में बात बाहर आ रही है। अब समय आ चुका है कि जनता खुद पत्रकारिता की ज़िम्मेदारी उठाए और टेक्नोलॉजी व जनवादी स्पेस का जो भी दायरा उसे विज्ञान के विकास के क्रम में by default मिला है उसे जितना अधिक हो सके ख़बरों को बाहर लाने के लिए इस्तेमाल करे। इस युग में भी यदि मोबाइल कैमरे और इंटरनेट का उपयोग सेल्फी लेने और उसे अपलोड करने तक सीमित रहा तो यकीन मानिए वह सेल्फी बेहद कुरूप होगी। जितेंद्र नारायण के फेसबुक वॉल से।
Comments