अजय बोकिल।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हाल में कहा कि मंत्री अफसर अपने दिमाग से लाल बत्ती निकाल दें। मतलब कि दिमाग और लाल बत्ती में सीधा सम्बन्ध है। यूं भी लाल बत्ती का असर तभी होता है जब वह दिमाग में भी जलने लगती है। आदमी को अपने वीआईपी होने का आत्मज्ञान होने लगता है। वास्तव में पीएम मोदी और मप्र के सीएम शिवराज जिसे हटाने को कह रहे हैं, वही तो सत्ता का सत्व है। वही पाॅवर पाइंट है। जिससे लौ लगी, उसी को कैसे छोड़ दें? हालांकि मप्र में मंत्रियों व अफसरों ने इसका तोड़ हूटर/ साइरन में खोज लिया है। बत्ती भले न जले, हांका तो चले।
आलम यह है कि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान को अपने ही अफसरों की गाड़ियों से बत्तियां खुद हटवानी पड़ रही हैं। शिवराज अपने गृह जिले सीहोर में एक सामाजिक कार्यक्रम में भाग लेने गए थे। उनकी अगवानी करने तमाम अफसर अपनी गाड़ियों पर पीली बत्तियां लगाकर पहुंच गए, जबकि राज्य में 1 मई से लाल पीली बत्तियां बैन हो चुकी हैं। यानी तुम डाल- डाल तो हम पात- पात। मंत्री अफसर लाल बत्ती हटवाने के आदेश में भी बत्ती दे रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले महिने ऐलान किया था कि वे देश में ‘वीआईपी कल्चर’ खत्म करने की शुरूआत वे लाल बत्तियां हटवाने से कर रहे हैं। इसके तहत तमाम मंत्रियों की गाडि़यों से लाल बत्तियां हटवाने का सिलसिला शुरू हो गया। लेकिन कई राज्य इसे पचा नहीं पा रहे हैं। बिहार में तो अब भी मंत्री बेधड़क लाल बत्तियां लगा कर घूम रहे हैं। तर्क यह है कि जब राज्य सरकार इस बारे में कोई आदेश जारी नहीं करती, तब तक उनकी गाडि़यों पर लाल बत्तियां जगमगाती रहेंगी।
राजद के एक विधायक की दलील है कि लालबत्ती हटाने से ‘वीआईपी कल्चर’ खत्म नहीं होगा। विधायक भाई बीरेंद्र को लालबत्ती विधान सभा के निवेदन समिति के सभापति के तौर पर दी गई है। वे केन्द्र सरकार के आदेश से इत्तफाक नहीं रखते। इसी तरह भाजपा शासित यूपी में अवैध बूचड़खाने सख्ती से बंद कराने वाले मुख्यनमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए अपने ही अफसरों की गाडि़यों से लाल बत्तियां हटवाना टेढ़ी खीर साबित हो रहा है।
सवाल यह है कि आखिर मंत्री- अफसरों की जान लाल- पीली बत्ती में क्यों अटकी है? दूसरे, क्या केवल लाल बत्ती उतरवाने से वीआईपी कल्चर अथवा शासक होने की सामंती मानसिकता पर कैसे अंकुश लगेगा? एक लाल बत्ती हटेगी, लेकिन बाकी सुरक्षा व्यवस्था का क्या? वही तो वीआईपी को आम लोगों से अलग करती है। पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो के अनुसार देश में औसतन 578 लोगों की सुरक्षा के लिए एक पुलिसकर्मी है। लेकिन वीआईपी सुरक्षा ले रहे करीब 17 हजार लोगों की सुरक्षा में 50 हजार जवान तैनात हैं।
यानी एक वीआईपी की सुरक्षा में औसतन तीन। इनमें कई तो ऐसे हैं कि जिनकी जान को खुद के अलावा शायद ही किसी से खतरा हो। फिर भी स्टेटस सिंबल के तहत वे खांसते भी चार बंदूक धारियों के घेरे में हैं। वैसे कहा यह भी जाता है कि लाल बत्ती के वीआईपी कल्चर को खत्म करने पीछे इससे होने वाली दिक्कतें हैं। भारत सरकार की एक गोपनीय रिपोर्ट में कहा गया था कि लाल बत्ती के कारण वीआईपी की कार को पहचानना आसन हो जाता है। सिर्फ लाल बत्ती के कारण ही कई बार एक जैसी कई गाड़ियां वीआईपी काफिले में डालनी पड़ती हैं। लिहाजा इन्हे हटाया जाए।
इसी लाल बत्ती हटाने को मंत्री- अफसरों ने समंदर में से नमक खींच लेने की तरह से लिया। गाडि़यों पर से बत्तियां न हटाने के लिए हर मुमकिन तकनीकी आड़ ली गई। साथ ही इसका देशी तोड़ भी ढूंढ लिया गया। मध्यप्रदेश में कुछ मंत्रियों ने बत्ती हटते ही गाडि़यों पर हूटर लगवा लिए हैं। कानफोड़़ू शोर वाले ये हूटर जब बजते हैं तो लगता है मानो कयामत आ गई। नियमानुसार ऐसे हूटर लगाने का अधिकार सिर्फ पुलिस अथवा एम्बुलेंस को है, जिन्हें आपात सेवा के तहत माना जाता है। लेकिन मंत्री अफसर इन्हें ठाठ के तौर पर लेते हैं। कुछ विधायकों ने तो गाड़ी की नंबर प्लेट की जगह अपने नाम या पद की पट्टिका लगा रखी है। मानो यह कोई विरूदावलि हो। गाड़ी पर से बत्ती हटने से मायूस ये विधायक गाड़ी पर से नाम व पद की पट्टिका किसी सूरत में तैयार नहीं है। क्योंकि अगर ‘आम’ जैसा ही रहना है तो नेता बनने का मतलब? वही हाल आला अफसरों के हैं। एक जमाने में मशहूर हास्य कवि काका हाथरसी ने लिखा था- ‘गणिका की शोभा बढ़ती है मीरासी से, साहब की शोभा बढ़ जाती चपरासी से।‘ उस जमाने में लाल बत्ती का चलन नहीं था। वरना काका शायद कुछ यूं लिखते- नेता की बत्ती जलती लाल बत्ती से।
दरअसल लाल बत्ती हटने का दर्द वही समझ सकता है, जिसने इसका जलवा भोगा हो। लाल बत्ती को गाड़ी से हटाना अपने अजीज को शोक सभा में श्रद्धांजलि देने जैसा है। लाल बत्ती विहीन गाड़ी विधवा- सी लगती है। उस पर प्रधानमंत्री की यह नसीहत कि लाल बत्ती कल्चर दिमाग से निकालो, और भी जानलेवा है। जिसको पाने इतनी चप्पलें घिसीं, उसे ऐसे ही कैसे निकाल दें। और फिर लाल बत्ती को दिमाग से जोड़ कर मोदी ने एक नया पेंच डाल दिया है। इस पर प्रतिभाशाली कार्टूनिस्ट कीर्तीश का एक कार्टून लाजवाब है। इसके मुताबिक एक मंत्री दिमाग से लाल बत्ती निकलवाने एक डाॅक्टर के पास जाता है। डाॅक्टर दिमाग खोलकर लाल बत्ती सर्च करता है। बेचैन मंत्री पूछता है- डाॅक्टर लाल बत्ती मिली? परेशान डाॅक्टर जवाब देता है- पहले दिमाग तो मिले।
लेखक मप्र के वरिष्ठ पत्रकार हैं।
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