वीरेंदर भाटिया।
उर्जित पटेल संसदीय समिति के सामने पेश हुए। इस समिति के सदस्यों में मनमोहन सिंह भी शामिल हैं। उर्जित पटेल को एक मिनट में सवालों में उलझा सकने की सामर्थ्य है मनमोहन सिंह में। लेकिन मनमोहन सिंह क्योंकि राजनीतिज्ञ नहीं है इसलिये इन्होंने उर्जित पटेल को सवालों में घेरने की बजाय उर्जित पटेल का साथ दिया कि ऐसे सवालों के जवाब मत देना जिस से रिज़र्व बैंक जैसी संस्था की साख गिरे। बेशक उर्जित पटेल इस संस्था की साख को मिट्टी में मिला देने के बाद ही समिति के सामने पेश हो रहे थे लेकिन मनमोहन सिंह ने कांग्रेस के सदस्यों के सवाल के जवाब देने से ही उर्जित पटेल को रोक दिया। एक कांग्रेस से संबद्ध सदस्य ने सवाल किया कि क्या नकद निकासी की सीमा बढ़ाने से अराजकता फ़ैल सकती है। उर्जित पटेल जवाब देते इस से पहले ही मनमोहन सिंह बोल पड़े कि आपको इस सवाल का जवाब नहीं देना चाहिए।
गौरतलब है कि इस समिति के अध्यक्ष वीरप्पा मोइली हैं जो सोनिया गांधी के अत्यंत नजदीक हैं। लेकिन मनमोहन सिंह की अपनी समझ है जिसके लिए वह स्वतंत्र तरीके से काम करते हैं। उर्जित पटेल ना जाने यहाँ से क्या संदेश ले कर गए लेकिन मनमोहन सिंह ने फिर एक संदेश दिया है कि देश के संवैधानिक ढांचे की स्वायत्ता बेहद जरुरी है। मोदी जैसे कम पढ़े लिखे लोग स्वायत्ता का गहरा मर्म नहीं जानते तभी सलमान खान जैसे लोग हर पतली गली में से निकल जाने की सामर्थ्य जुटा जाते हैं।
मनमोहन सिंह के शासन में पहली बार हमने देखा कि जो जो सरकार का मंन्त्री घोटालों में लिप्त पाया गया वही जेल गया और तो और सहयोगी पार्टी की सांसद और करुणानिधि की बेटी भी जेल गयी। कैग, सूचना आयोग, आरबीआई, अदालतें, मीडिया और तमाम अन्य संस्थाएं स्वतंत्र रहीं।
आज हाल यह है कि स्मृति ईरानी दिल्ली विश्व विद्यालय को लिख रही हैं कि उनकी डिग्री किसी को ना दिखाई जाए। मोदी जी को कालांतर में इस बात का जवाब देना पड़ेगा कि किस अधिकार से आप की मंन्त्री ने यह चिठ्ठी लिखी। खुद मोदी की डिग्री दिखाने का आदेश देने वाले सूचना आयुक्त को आप बदल देते हैं। किसी एक मंन्त्री की जांच नहीं बल्कि अपनी शक्तियों का दुरूपयोग करके किसी तड़ी पार को भी क्लीन चिट दिलवा देते हैं। आरबीआई जैसी सम्मान अर्जित कर चुकी संस्था की दुर्दशा तो देश ने सरेआम देखी ही है।
मनमोहन सिंह कम बोलने वाले लेकिन रीढ़ वाली शख्सियत हैं। इतना ऊंचा इनका व्यक्तित्व है कि मोदी जैसे 100 लोग भी उतनी ऊंचाई प्राप्त नहीं कर सकते।
नरेंद्र मोदी फुल टाइम राजनेता हैं जिन्हें "बस जीतना है"जैसी असुरक्षा ने घेर रखा है। आज ढाई साल में ही वह खुद के बोल और कामों के बीच बड़ा असंतुलन ले आये हैं। 2019 तक राम जाने क्या होगा। लेकिन संस्थाओं के सम्मान के लिये मनमोहन सिंह जैसे पांच सात लोग हमेशा चाहिये इस देश में।
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