पहली सरकार जिसके शासन में दांव पर लगी रिजर्व बैंक की साख!

खरी-खरी            Jan 31, 2017


विनय ओसवाल।
इस देश के आमजन की निगाह में मोदी सरकार पहली ऐसी सरकार बन गयी है, जिसके शासन में भारतीय रिजर्व बैंक की साख (इज्जत) को पिछले 80 सालों में पहली बार बट्टा लगा है। नोटबंदी के मामले में आमजन को मोदी सरकार सक्रिय और रिजर्व बैंक लगभग निष्क्रिय नजर आयी।
ये बात दीगर है, कि मोदी सरकार की निगाह में रिजर्व बैंक की साख को बचाने से बडी समस्या कालेधन, भ्रस्टाचार, नकली नोट, आतंकवादियों तक भारतीय मुद्रा की पहुँच जैसी अहम समस्या का समाधान करना रहा होगा ।

ये एक अकेला लक्ष्य नही रहा सरकार का जो उसने नोटबंदी से हासिल करना चाहा हो। देश को जाती और धर्म की चाहरदिवारियों से बाहर निकाल के विपन्न (गरीब) और संपन्न (अमीर) वर्ग के दो " फाड़ों " में ला के खड़ा करना भी एक लक्ष रहा है। 70 सालों से देश का हर गाँव ,जाती के आधार पर उम्मीदवारों को वोट करता आरहा है। राजनैतिक पार्टियाँ भी उम्मीदवार उसी जाती का खड़ा करना पसंद करती हैं जिस जाती का बाहुल्य उस क्षेत्र में होता है।

2014 के चूनावों में अप्रत्याशित जीत हाँसिल करलेने के बाद अब मोदी सरकार का एक सूत्रीय लक्ष्य है हर प्रदेश में विपक्ष को नख-दन्त विहीन बना देना। सो उसने विपन्न वर्ग (आर्थिक रूप से कमजोर ) के दिल-ओ-दिमाग में सदियों से संम्पन्न वर्ग के प्रति बैठी ईर्ष्या को विस्तार दे दिया। ऐसा करके विपन्न वर्ग के दिल-ओ-दिमाग में खुद मोदी ने अपनी ऐसी छवि बना ली मानो इस देश में उनके लिए मोदी से बड़ा मसीहा कोई है ही नहीं।

संपन्न वर्ग ,आर्थिक रूप से मजबूत और ऊद्योग व्यापार के क्षेत्र में विपन्न वर्ग की रोजी रोटी का जरिया बनने वाला वर्ग लेकिन इसमें अम्बानी अडानी, विजय शेखर, सरकार में मंत्री जो उद्योग धंधों, सैकड़ों बीघा के फ़ार्म हाउसों के मालिक राजनेता आदि सरीखे ईमानदारी की प्रतिमूर्तियाँ हैं, को छोड़ कर, बाकी सब टैक्स चोरी करके अकूत कालाधन जमा करने वाले होते हैं और ऐसे कालेधन वालों के दुश्मन मोदी। ऐसा मानना है इस देश के उन लोगों का जिन्हें न उद्योग व्यापार की समझ है न काले सफेद धन की ।

कम से कम शहरी युवा और गावों में रोज कुआ खोद कर पानी पीने वाले मजदूर सहित 60 प्रतिशत लोग आज भी यकीन रखते है कि मोदी "देश से कालाधन और भृष्टचार को समाप्त करके ही दम लेंगे। ये वो लोग हैं जिन्हें नही पता कि सफ़ेद और काले धन की पहचान बैंक वाले नोटों को देख कर कैसे करेंगे ? कालाधन कैसे पैदा होता है ? उन्हें तो बस ये विश्वास है कि मोदी जी सब जानते हैं। ये तथ्य बातचीत के बाद निकल कर सामने आये हैं। मोदी इसी बात से उत्साहित हैं कि लोगों को कालेधन की न तो जानकारी है और नही जानने की इच्छा है। उन्हें विशवास है कि उत्तरप्रदेा में लोग उनके चेहरे को वोट करेंगे। वो जिसको चाहेंगे नवनिर्वाचित विधायक भी उसी को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठाएंगें।

मोदी इस देश के आमजन की रग—रग को पहचानते हैं, उन्हें भली भांति पता है कि देश में कोई नही चाहता कि तंत्र में रचपच चुका भृष्टाचार समाप्त हो। वो ये भी जानते हैं, कि सार्वजनिक रूप से भ्रस्टाचार का समर्थन भी कोई नही करेगा। भृष्टाचार के सहारे बाधक बन रहे कानून को दरकिनार करना आसान है। अपात्र होते हुए भी किसी सुविधा को प्राप्त करना भृष्टाचार के जरिये बहुत आसान हो जाता है। यही कारण है कि इन ढायी महीनों में (8 नोव0 2016 के बाद से आज तक) भ्रष्टाचार के लेशमात्र भी कम न होने पर पूरा देश मौन साधे पड़ा है।

बैंकों के बाहर नोट बदलने के लिए सम्पन्न वर्ग , बड़े ओहदों पर बैठा कोई अधिकारी या राजनेता लाइन में खड़ा नही दिखा क्यों? क्योंकि यही भ्रष्टाचार और रुतबा दोनों इस वर्ग के नोट बदलने में काम आया।

भृष्टाचार, रिश्वत दोनों कालाधन के माँ-बाप हैं। मंचों से इन सब का विरोध करने और सख्त दिखने के लंबे चौड़े भाषण देने वाले मोदी और उनके श्रोता दोनों को जानते हैं कि ये जुमलेबाजी से ज्यादा और कुछ नही है इसलिए सड़कों पर उनके साथ खड़ा दिखना चाहता है।

विनय ओसवाल।



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