पुण्य प्रसून बाजपेयी।
अमेरिका में ट्रंप-मोदी का गले मिलना चीन से लेकर पाकिस्तान और ईरान तक के गले नहीं उतर रहा है, तो चीन सिक्किम और अरुणाचल में सक्रिय हो चला है। उधर पाकिस्तान कश्मीर और अफगानिस्तान के लिये नई रणनीति बना रहा है और पहली बार अमेरिका के इस्लामिक टैररइज्म के जिक्र के बीच ईरान ने बहरीन, यमन के साथ साथ कश्मीर को लेकर इस्लामिक एकजुटता का जिक्र कहना शुरु कर दिया है। इन नये हालातों के बीच चीन ने एक तरफ मानसरोवर यात्रा पर अपने दरवाजे से निकलता रास्ता बंद कर दिया है, तो दूसरी तरफ कल जम्मू से शुरु हो रही अमरनाथ यात्रा में अब तक सबसे कम रजिस्ट्रेशन हुये हैं जबकि, परसों से भक्त बाबा बर्फानी के दर्शन कर सकेंगे। तो क्या आतंकवाद के खिलाफ भारत के साथ खड़े हुये अमेरिका को लेकर साउथ-इस्ट एशिया नये तरीके से केन्द्र में आ गया है।
पहली बार अमेरिका ने आतंकवाद को इस्लाम से जोड़ा और भारत ने इस्लामिक आंतकवाद का शब्द इस्तेमाल ना कर आतंकवाद को कट्टरता से जोड़ा है। बावजूद इसके तीन हालातों पर अब गौर करने की जरुरत है। पहला, ट्रंप ने नार्थ कोरिया का नाम लिया लेकिन पाकिस्तान का नाम नहीं लिया। दूसरा, ईरान को इस्लामिक टैररइज्म से ट्रंप जोड़ चुके हैं। लेकिन भारत ईरान पर खामोश है। तीसरा,ईरान कश्मीर के आतंक को इस्लाम से जोड़ इस्लामिक देशों के सहयोग की बात कर रही है।
सवाल कई हैं मसलन आतंक को इस्लामिक टैररइज्म माना जाये। आतंक को दहशतगर्दों का आतंक माना जाये। आतंक को पाकिसातन की स्टेट पॉलेसी माना जाये। अगर तीनों हालात एकसरीखे ही हैं सिर्फ शब्दो के हेर फेर का खेल है तो नया सवाल अमेरिका के अंतराष्ट्रीय आतंकवादियों की सूची सैयद सलाउद्दीन के डालने का है। क्योंकि अमेरिकी सूची में लश्कर का हाफिज सईद है, आईएसएस का बगदादी है, हक्कानी गुट का सिराजुद्दीन हक्कानी है,अलकायदा का जवाहरी है।
लेकिन इन तमाम आतंकवादियों की हिंसक आतंकी कार्रवाई लगातार जारी है और अमेरिकी आंतकी सूची पर यूनाइटेड नेशन ने भी कोई पहल नही की और खास बात ये है कि अमेरिका के ग्लोबल आतंकवादियों की सूची में 274 नाम है। इसी बरस 25 आतंकवादियों को इस सूची में डाला गया है। यानी नया नाम सैयद सलाउद्दीन का है। अब नया सवाल कश्मीर का है क्योंकि 1989 में सलाउद्दीन घाटी के इसी आतंकी माहौल के बीच सीमापार गया था और तभी से पाकिस्तान ने अभी तक सैय्यद सलाउ्द्दीन को अपने आतंक के लिये सलाउद्दीन को ढाल बनाया हुआ था। लेकिन सवाल है कि क्या वाकई अमेरिकी ग्लोबल टैरर लिस्ट में सैयद सलाउद्दीन का नाम आने से हिजबुल के आंतक पर नकेल कस जायेगी। तो जरा आतंक को लेकर अमेरिकी की समझ को भी पहले समझ लें। दरअसल 16 बरस पहले अमेरिकी वर्लड ट्रेड टावर पर अलकायदा के हमले ने अमेरिका को पहली बार आतंकवादियों की लिस्ट बनाने के लिये मजबूर किया।
बीते 16 बरस में अलकायदा के 34 आतंकवादियों को अमेरिका ने ग्लोबल टैरर लिस्ट में रख दिया। लेकिन आतंक का विस्तार जिस तेजी से दुनिया में होता चला गया उसका सच ये भी रहा कि बीते सोलह बरस में एक लाख से ज्यादा लोग आतंकी हिंसा में मारे गये । और अमेरिकी टेरर लिस्ट में अलकायदा के बाद इस्लामिक स्टेट यानी आईएस के 33 आतंकवादियों के नाम शामिल हुये। लेबनान में सक्रिय हिजबुल्ला के 13 आतंकवादी तो हमास के सात आंतकवादियो को ग्लोबल टैटरर लिस्ट में अमेरिका ने डाल दिया। अमेरिकी लिस्ट में लश्कर और हक्कानी गुट के चार चार आतंकवादियों को भी डाला गया। यानी कुल 274 आंतकवादी अमेरिकी लिस्ट में शामिल है।
अब कल ही सैयद सलाउद्दीन का नाम भी अमेरिकी ग्लोबल टैरर लिस्ट में आ गया । तो याद कर लीजिये जब पहली बार सलाउद्दीन ने बंदूक ठायी थी। 1987 के चुनाव में कश्मीर के अमिरकदल विधानसभा सीट से सैयद सलाउद्दीन जो तब मोहम्मद युसुफ शाह के नाम से जाना जाता था। मुस्लिम यूनाइटेड फ्रांट के टिकट पर चुनाव लड़ा। हार गया या कहें हरा दिया गया। तब युसुफ शाह का पोलिंग एंजेट यासिन मलिक था।
जो अभी जेकेएलएफ का मुखिया है और पिछले दिनो पीडीपी सांसद मुज्जफर बेग ने कश्मीर के हालात का बखान करते करते जब 1987 का जिक्र ये कहकर किया कि सलाउद्दीन हो या यासिन मलिक उनके हाथ में बंदूक हमने थमायी। यानी उस चुनावी व्यवस्था ने दिल्ली के इशारे पर हमेशा लूट लिया गया। तो समझना होगा कि अभी कश्मीर में सत्ता पीडीपी की ही है और पहली बार कश्मीर की सत्ता में पीडीपी की साथी बीजेपी है जिसे घाटी में एक सीट पर भी जीत नहीं मिली।
इसी दौर में पहली बार किसी कश्मीरी आतंकवादी का नाम अमेरिका के अपनी ग्लोबल टैरर लिस्ट में डाला है। यानी उपरी तौर पर कह सकते हैं कि पाकिस्तान को पहली बार इस मायने में सीधा झटका लगा है कि कश्मीर की हिंसा को वह अभी तक फ्रीडम स्ट्रगल कहता रहा। कभी मुशर्रफ ने कहा तो पिछले दिनो नवाज शरीफ ने यूनाइटेड नेशन में कहा। और इसकी वजह यही रही कि भारत ने कश्मीरियों की हिसा को आतंकवाद से सीधे नहीं जोडा लेकिन अब जब सैयद सलाउद्दीन का नाम ग्लोबल टैरर लिस्ट में डाला जा चुका है तो अब कशमीरियों की हिसा भी आंतकवाद के कानूनी दायरे में ही आयेगी।
लेकिन भारत के लिये आंतक से निपटने का रास्ता अमेरिकी सूची पर नहीं टिका है। क्योंकि सच तो ये भी है कि अमेरिकी ग्लोबल लिस्ट में जिस भी संगठन या जिस भी आतंकवादी का नाम है उसकी आंतकवादी घटनाओ में कोई कमी आई नहीं है। यानी सिर्फ ग्लोबल टैरर लिस्ट का कोई असर पड़ता नहीं। और तो और यूएन की लिस्ट में लश्कर के हाफिज सईद का नाम है। लेकिन हाफिज की आतंकी कार्रवाई थमी नहीं है। कश्मीर में आये दिन लश्कर की आंतकी सक्रियता आंतक के नये नये चेहरो के जरीये जारी है।
यानी अमेरिकी पहल जब तक पाकिसातन को आंतकी देश घोषित नहीं करती तब तक पाकिस्तान पर कोई आर्थिक प्रतिबंध लग नहीं सकता। प्रतिबंध ना लगने का मतलब अरबो रुपयो की मदद का सिलसिला जारी रहेगा। यानी अमेरिका अपनी सुविधा के लिये भारत के साथ खडा होकर उत्तर कोरिया का नाम लेकर चीन पर निशाना साध सकता है। लेकिन पाकितानी आंतकी संगठन जैश ए मोहम्मद के मुखिया अजहर मसूद को यूएन में चीन के क्लीन चीट पर भारत के साथ भी खडा नहीं होता। पाकिस्तान को आंतकी राज्य नहीं मानता क्योंकि अफगानिस्तान में उसे पाकिसातन की जरुरत है, तो फिर गले लगकर आतंक से कैसे लड़ा जा सकता है जब गले लगना गले की फांस बनती हो।
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