नेता तो निर्मल हृदय होते हैं, दुष्ट मीडिया बात को घुमा देता है

खरी-खरी            Oct 10, 2017


राकेश कायस्थ।
नेताओं के बयान अक्सर तोड़े-मरोड़े जाते हैं। नेता तो बेचारे निर्मल ह्रदय होते हैं। दुष्ट मीडिया बात को घुमा देता है और भोली जनता कुछ और समझ बैठती है। बढ़ रही बेरोजगारी पर मोदी सरकार के सबसे काबिल मंत्री पीयूष गोयल का बयान आया— यह एक बहुत अच्छा संकेत है। जनता को नौकरी मांगने वाला नहीं बल्कि नौकरी देनेवाला बनना चाहिए।

बयान सुनते ही मैं समझ गया कि पाप मेरे मन में है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का सबसे योग्य मंत्री ऐसी बात कर ही नहीं सकता। फ्रांस के शासक लुई सिक्सटींन की पत्नी ने देश की गरीब जनता से पूछा था— रोटी नहीं है तो केक क्यों नहीं खा लेते? इसे मानव जाति के इतिहास का सबसे मूर्खतापूर्ण बयान माना जाता है।

गोयल जी का बयान भी इसी के टक्कर का है। इतिहास में `मांगो मत दो’ बयान भी उसी तरह अमर होगा जैसे `रोटी नहीं तो केक’ अमर हुआ था। शुरू में मुझे गोयल जी के बयान की सत्यता पर संदेह हुआ। इसका कारण यह था कि मैं यह मानता हूं कि बीजेपी जब भी मूर्खता करेगी तो स्वदेशी किस्म की करेगी। फ्रांस की महारानी की नकल कोई बीजेपी नेता नहीं कर सकता। लेकिन जब वीडियो देखा तो संशय दूर हो गया।

फिर याद आया कि मोदीजी इससे मिलते-जुलते कई बयान पहले दाग चुके हैं। मोदीजी अक्सर कहते हैं, नौकरी मांगो मत देने वाला बनो। पूरा देश अगर उनकी सलाह पर चल पड़ा तो फिर नौकरी करने वाला बचेगा कौन? लालकृष्ण आडवाणी भी मोदीजी की इसी सलाह पर चलना चाहते थे। वे पीएम बनकर नौकरियां देना चाहते थे। बदले में मोदीजी ने उन्हे पेंशन देकर मार्गदर्शक मंडल में भेज दिया।

वैसे पीयूष गोयल ने एक बहुत गंभीर बात कही है। मोदीजी या उनके किसी मंत्री की बुद्धिमता पर संदेह करना नर्क का टिकट कनफर्म करवाना है। इसलिए आप ये मान लीजिये कि उन्होने कहा है तो इसका असर भी देश में दिखेगा। आनेवाले बरसो में देश में सिर्फ नौकरी देनेवाले होंगे, नौकरी करने वाला कोई नहीं होगा। हर जगह स्टार्ट अप ही स्टार्ट अप नज़र आएगा।

नौकरी से निकाला गया ड्राइवर रिक्शा खरीदकर चला रहा होगा और पंक्चर बनाने वाले छोटू को नौकरी दे रहा होगा। फाइव स्टार होटल का बेरोजगार हो चुका शेफ चाय की टपरी लगाकर वहीं खड़ा इस बात की चर्चा कर रहा होगा कि बेरोजगार हूं तो क्या हुआ, एक दिन मैं भी पीएम बन सकता हूं। धंधा चल गया तो ग्लास धोनेवालों के कुछ जॉब पक्के तौर पर क्रियेट होंगे।नौकरी से निकाला गया पत्रकार एक छोटी-मोटी कंपनी बनाकर सोशल मीडिया विंग के ठेके उठा रहा होगा और नये बच्चो को व्हाट्स ऐप पत्रकारिता में लगाकार उनका भविष्य बना रहा होगा।

सवाल पूछना पाप है। लेकिन ये मन बड़ा पापी है। पूछ रहा है कि आखिर रोजगार मांगने के बदले रोजगार देनेवाला बनने की शिक्षा बीजेपी ने अपने त्रिपुंडधारी प्रवक्ता संबित पात्रा को क्यों नहीं दी? उन्हे तो रोजगार दे दिया वो भी ओएनजीसी का डायरेक्टर बनाकर। पात्रा जी के पास रोजगार के ढेरो विकल्प थे और कुछ नहीं तो कर्मकांडी ब्राहण होने के नाते मेरठ में बन रहे मोदीजी के भव्य मंदिर के मुख्य पुजारी नियुक्त हो सकते थे। चढ़ावा इतना मिलता कि दोबारा नोटबंदी भी होती तो कोई टेंशन नहीं होता। फिर पात्रा जी को किसी सरकारी कंपनी में एक पद घेरने की क्या ज़रूरत थी?

बीजेपी यही शिक्षा पहलाज निहलानी और गजेंद्र चौहान जैसे अपने दर्जनों समर्थकों को भी दे सकती थी, जो नागपुर से चिट्टी लिखावकर लाये और बिना किसी योग्यता के ऊंचे सरकारी ओहदो पर जा बैठे। अपनी भरपूर जगहंसाई करवाई और जिन संस्थानों में गये उनका भी बेड़ा गर्क किया। जनता की गाढ़ी कमाई के पैसे चलने वाली निर्जीव संस्थाओं में राजनीतिक सिफारिशों से कितने लोग बैठे हैं, ज़रा इसका पता कर लीजिये। यह भी देख लीजिये कि बैंको ने जो खरबो के लोन बांटे हैं और उनमें से लाखो करोड़ के जो लोन डूबत खाते हैं, वे किन लोगो को दिये गये हैं। मलाईदार नौकरियां अपने लोगो को, लोन बड़े उद्योगपतियों को और स्टार्ट अप शुरू करने का ज्ञान बेरोजगार हो रहे भारतवासियों को। इससे अच्छे दिन भला और क्या हो सकते हैं?

 



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