डॉ राकेश पाठक।
इतनी नस्लीय नफरत कहाँ से
लाये हो "तरुण विजय"...?
नाम है तरुण विजय...संघ के मुख पत्र "पाञ्चजन्य" के संपादक रहे हैं..बीजेपी से राज्यसभा में सुशोभित हुए थे..पूर्वोत्तर के जानकार कहाये जाते हैं..सम्भवतः केंद्र और अलगाववादियों के बीच बिचौलिए का जिम्मा भी निभा चुके हैं।
अब मुद्दे की बात...तरुण विजय ने एक टीवी डिबेट में कहा कि "अगर हम नस्लवादी होते तो क्या काले मद्रासियों (यानि दक्षिण भारतीयों) को बर्दाश्त कर के साथ रहते...? तब हम अफ्रीकीयों को क्यों पीटेंगे.."।
भारी बवाल मचा तो अब किन्तु परंतु,अगर मगर लगा कर तरुण विजय माफ़ी मांग रहे हैं।
सवाल यह है कि आखिर तरुण विजय कहना क्या चाहते हैं...? बड़ी साफ़ बात है कि वे सिर्फ "काले रंग" के आधार पर दक्षिण भारतीयों को अपने से कमतर बता रहे हैं...और यह भी कि हम गोरे रंग वाले काले मद्रासियों के साथ निबाह कर अहसान कर रहे हैं...!
तरुण विजय जी...ये बात कब से आपके जेहन में होगी पता नहीं लेकिन आज जुबान पर आ ही गयी।
और ठीक भी है अब भी न कहते तो कब कहते...?
तो अब आप धर्म,जाति के बाद रंग के आधार पर बांटने आये हैं..?
अच्छा एक बात बताइये...ये जो बाकी के भारत में यानि दक्षिण के अलावा जिन लोगों का रंग काला है उनके साथ रह कर भी तो आप कृपा ही कर रहे हैं...है ना...!
यानि पूरे भारत में जिनका भी रंग काला है उन पर आप अहसान कर रहे हैं साथ रहने देकर...!
अच्छा ये बताइये ये जो देश भर के शहरों और कस्बों तक में "अन्ना डोसे वाले" हैं उनका क्या करना है...और इंडियन कॉफी हाउस ,उनमें मुस्कुरा कर कॉफी सर्व करने वाले सफ़ेद कड़क कलगीदार पगड़ी वालों को भी अब इसी नज़र से देखना है क्या....?
अच्छा दक्षिण भारत से आने वाली नर्सों के बारे में आपका क्या ख़याल है..? देश भर के अस्पतालों में सेवा करने वाली इन नर्सों का रंग भी तो आम तौर पर वही होता है जो आपके हिसाब से "काले मद्रासी" कहलाते हैं...तो अब इन्हें भी उसी नज़र से देखना है क्या..? बताइये न..!
नईं...मने हम तो पूछ रहे हैं..! अच्छा बस इतना बता दीजिये इतनी नस्लीय नफरत आप लाये कहाँ से हैं..?
हमको तो पता ही नहीं था कि ये काले मद्रासी दोयम दर्ज़े के भारतीय हैं और "हम इनके साथ रह ही रहे हैं"( शब्दशः आपका ही कथन)।
अच्छा तो अब भारत वर्ष में से कितने भूभाग वाले, कैसे रंग वाले, कैसे नाक नक्श वाले असली भारतीय हैं यह भी बता ही दीजिये...!
अरे हाँ याद आया...आप तो पूर्वोत्तर के अलगाववादियों से वार्ताकार भी रहे हैं न...तो मंगोल या चाइनीज़ नाक नक्श वाले भारतीयों को तो आप भारतीय मानते ही न होंगे..! बड़ी मुश्किल होती होगी इनसे बातचीत में..है ना??
तरुण विजय साहेब...सदियाँ लग गयीं इंसानियत को इस रंगभेद से लड़ते...अमेरिका जैसा देश आज तक इस रंगभेद से निजात नहीं पा सका है..
जार्ज वाशिंगटन,मार्टिन लूथर किंग और नेल्सन मंडेला की कुर्बानिया इस धरती के इतिहास में दर्ज़ हैं...गांधी के देश में अब रंगभेद का ज़हर मत बोइये...
आप समझ रहे हैं न... हिन्दुस्तानियत और इंसानियत को लम्हों की खता पर सदियों सजा भुगतना पड़ेगी...
प्लीज़ ऐसा मत कहिये...!
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