राकेश अचल।
हिंदुस्तान की सियासत में मुगलिया तेवर अब उभर कर सामने आने लगे हैं। बीते दो दिन में अरुणाचल और उत्तर प्रदेश में जो कुछ हुआ उसे देखकर लगता है कि सत्ता पाने के लिए सियासत में कुछ भी हो सकता है। उत्तरप्रदेश में जहां सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी में मुख्यमंत्री और पार्टी अध्यक्ष पार्टी से निकाल दिए गए हैं ठीक इसी तरह अरुणाचल में मुख्यमंत्री पेमा खांडू और छह अन्य को पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में पीपीए से निलंबित कर दिया गया।
पार्टी ने खांडू को विधायक दल के नेता पद से भी हटा दिया। पीपीए विधानसभा में तकाम परियो को अपना नेता और मुख्यमंत्री घोषित कर सकती है। तकाम परियो अरुणाचल प्रदेश के सर्वाधिक अमीर विधायक हैं। यानी पिछले एक साल में वे चौथे व्यक्ति हैं, जो राज्य के मुख्यमंत्री पद पर काबिज होंगे।
सत्ता पाने के लिए रिश्ते-नाते और नैतिकता का परित्याग इन क्षेत्रीय दलों ने ही नहीं किया बल्कि भाजपा जैसे राष्ट्रीय दल भी नहीं बचे।
दो साल पहले लालकृष्ण आडवाणी जैसे दिग्गज को धकियाकर नरेंद्र मोदी सत्ताशीर्ष तक जा पहुंचे। इससे पहले दक्षिण में एंटी रामाराव और जे जय लीलता के साथ भी इसी तरह के घात-प्रतिघात हुए ऐसी उठा-पटक पंद्रहवीं-सोलहवीं सदी में मुगलिया सल्तनत में हुआ करती थी कांग्रेस में परिवारवाद के कारण मुगलिया रंगत पनप नहीं सकी,और आज भी कांग्रेस इस बीमारी से बची है।
आने वाले दिनों में सियासत पर मुगलिया सत्ता संघर्ष और तेज हो सकता है इस संघर्ष से देश की सियासत का कल्याण होगा या नुक्सान अभी कहना कठिन है क्योंकि अभी जनता मौन है जनता चुनाव के समय ही बोलती है।
फेसबुक वॉल से।
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