वीरेंदर भाटिया।
विश्व आर्थिक मंच में प्रस्तुत की गयी रिपोर्ट पर चर्चा जोर पकड रही है कि विश्व के 8 लोगो के पास विश्व की 50 प्रतिशत पूँजी है। इन आठ लोगो में से 6 अमेरिका के हैं और 2 यूरोप के। अंदाज लगाइए कि मुकेश अम्बानी जैसे लोग उनमें शामिल नहीं है। कल का लड़का मार्क जुकरबर्ग देखते ही देखते इन 8 लोगो में शामिल हो गया।
ये तो हुआ पूँजी का फैलाया इनका तंत्र। अर्थशास्त्रीय भाषा में पूँजी का जितना विस्तार है विश्व में उसका 50 प्रतिशत इन आठ लोगों के पास है। आगे बढ़ें तो 83 लोगो के पास विश्व की 95 प्रतिशत पूँजी है उनमें मुकेश अंबानी भी है।
मेरा सवाल कुछ और है यहाँ, जिसका कंसर्न इस बात पर है कि क्या इसका मतलब यह निकालें कि विश्व के 50 प्रतिशत संसाधनों पर इनका अधिपत्य हो गया? क्या इसका अर्थ यह निकालें कि विश्व में 83 लोगो के पास विश्व के 95 प्रतिशत संसाधन आ गए हैं? अगर वह जिद करें कि हाँ हमें विश्व के 95 प्रतिशत संसाधनों पर काबिज होना है तो क्या यह कभी संभव है?
खतरा सिर्फ इसी चीज का है कि किताबो में पूँजी बढ़ने से हम नहीं रोक सकते उन्हें। उनकी संसाधनों पर काबिज होने की प्लानिंग क्या है इसे जांचा जाए।
एक कड़वा सच यह भी है कि एक पूँजी बनाने वाला व्यक्ति हमेशा ही पूँजी बनाने में आक्रामक नहीं रहता। किसीं बड़े झटके से वह रसातल में भी जाता है। ऐसा विश्व के बहुत से पूंजीपतियों के साथ हुआ है। इसलिए संसाधन बचा कर रखिये इनकी नजर से। पूँजी की गलाकाट प्रतियोगिता में ये खुद ही कट मरेंगे एक दिन। पूँजी के बढ़ना किताबी आंकड़ा है जिसे जनता नहीं रोक सकती और सरकारों की औकात नहीं है।
भारत में जो सबसे मजबूत शक्ति है जनतंत्र, उसे मजबूत करें, शिक्षित करें, संसाधन जनता के हैं, जनता ही बचाएगी।
फेसबुक वॉल से।
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